सनातन। समर्पण। संदेश। साहस। संबंध। साख। संकल्प।
देखने को ये केवल शब्द मात्र हैं। जीने के लिए लेकिन मूलमंत्र। ऑपइंडिया इन्हीं मूलमंत्रों पर चलता है। सनातन के लिए समर्पण ही हमारा आधार है। धारा के विपरीत चलने का साहस रख संदेश पहुँचाना ही हमारा धर्म। साख पर आँच न आए और पाठकों के साथ संबंध बनाए रखना ही हमारा कर्तव्य। जारी प्रयासों में कुछ नया और बेहतर जोड़ेंगे, यही हमारा संकल्प।
भारत अगर है तो उसका मूल सनातन है। इसलिए हिंदू, हिंदुत्व, मंदिर, भारतीय सभ्यता-संस्कृति, राष्ट्र, राष्ट्रीय गौरव, विकसित होता भारत, सामाजिक संरचना – इन विषयों पर हम लिखते रहे हैं, लिखते रहेंगे। सनातन पर मंडरा रहे खतरों मसलन धर्मांतरण, आतंक, राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़, इतिहास से छेड़छाड़, मीडिया के मकड़जाल आदि मुद्दों को हम उठाते रहे हैं, इन्हें बेनकाब करते रहेंगे। यही सनातन के प्रति हमारा समर्पण रहा है, रहेगा।
“रुके न तू, थके न तू… झुके न तू, थमे न तू… सदा चले, थके न तू”
किशोरावस्था में जब यह कविता पढ़ी थी, तो मतलब सिर्फ इतना समझ में आया था कि याद करना है। हरिवंश राय बच्चन की कविता समझ कर याद भी कर ली थी। जिस मकसद के लिए कविता लिखी गई होगी, कर्तव्य-पथ पर उसे ही साहस कहते हैं – यह अब समझ चुका हूँ। ऑपइंडिया की पूरी टीम इसी साहस के साथ आप पाठकों तक संदेश पहुँचाती है। राष्ट्र-विरोधी हरकतों या गतिविधियों, हिंदू धर्म को नीचा दिखाने वाले कार्यों की हम रिपोर्ट करते हैं और यह हमसे अपेक्षित भी है। अपनों में से ही जब कोई पथभ्रष्ट हो जाता है, दिग्भ्रमित हो जाता है – साहस हम तब भी दिखाते हैं, रिपोर्ट कर वापस उन्हें रास्ते पर लाते हैं। ध्येय एक है, संदेश उसी के लिए। और उस रास्ते पर कोई नाम बड़ा नहीं – इसलिए साहस है, इससे कोई समझौता नहीं।
रावण महाज्ञानी था। इतना कि स्वयं प्रभु राम ने भी उसके ज्ञान का मान रखा। हुआ क्या लेकिन? क्या समाज ने रावण को आदर्श माना? कितने बच्चों का ‘रावण’ नाम सुना है आपने? साख जब चली जाती है, तो ज्ञान-बुद्धि-बल-पराक्रम सब रखा रह जाता है। ऑपइंडिया इस शब्द की महिमा को जानता है। जानता यह भी है कि इंसान ही यहाँ काम करते हैं, गलतियाँ हो सकती हैं। साख पर आँच आ जाए, ऐसी गलती नहीं हो… इसके लिए सतत प्रयास संपादकीय टीम करती रहती है। पाठकों के साथ संबंध और उनका भरोसा इसी साख पर टिका है। जब तक यह है, हमारा अस्तित्व है।
क्या होता अगर पाठक हमारे साथ न होते? गला-काट प्रतिस्पर्द्धा, करोड़ों-अरबों रुपए की थैली लिए मीडिया मठाधीशों से टक्कर, बिग-टेक कंपनियों के वामपंथी झुकाव में क्या ऑपइंडिया टिक पाता? क्या हम अपने आदर्शों और मूलमंत्रों के सहारे बाजार में खड़े रह पाते? नहीं। एकदम नहीं। एक कदम भी नहीं चल पाते। और यही सच्चाई है। पाठक ही हमारी रीढ़ हैं। पाठकों के दम पर ही हम साल 2022 की लड़ाई लड़ पाए। आप पाठकों के समर्थन से ही साल 2023 में कुछ नए मापदंड भी छुएँगे, कुछ नए और कुछ अनछुए, कुछ भूले-बिसरे विषयों को आपके सामने लाएँगे – यही हमारा संकल्प है।
आप सबका आभार 🙏
आपसे है ऑपइंडिया
सादर
अजीत झा, सुधीर गहलोत, अनुपम कुमार सिंह, जयन्ती मिश्रा, राहुल पांडेय, सुनीता मिश्रा, आकाश शर्मा, राजन कुमार झा, राहुल आनंद के साथ चंदन कुमार