14 मार्च, 1883 को कार्ल मार्क्स इस दुनिया को अलविदा कह गए। कुछ वर्षों बाद उनकी मौत को 150 वर्ष हो जाएँगे लेकिन आज भी उनके बात-विचार वामपंथ के अनुयायियों में नई उर्जा और जोश का संचार करते हैं। हालाँकि गौर से देखेंगे-पढ़ेंगे तो वैज्ञानिक समाजवाद की परिभाषा देने वाले मार्क्स विभिन्न वर्गों के बीच संघर्ष के कपटी सिद्धांत के पैगम्बर मात्र थे। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उन्हें आर्थिक समतावाद का जनक मानते हैं। ऐसे में कार्ल मार्क्स की जिंदगी के बारे में बहुत कम चीजें ही हैं, जिनके बारे में लिखा-सुना गया हो, अन्यथा उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में बहुत कम ही लोगों को पता है। ग़रीबी और संताप्त्ता से पीड़ित मार्क्स एक मिथ्यावादी और अव्यावहारिक व्यक्ति थे, जो पूरी दुनिया पर अपने विचार थोपना चाहते थे।
उन्हें लगता था कि दुनिया उनके विचारों से प्रभावित नहीं हो रही है, इसीलिए वह लगातार पहचान पाने के लिए लालायित रहते थे। मार्क्स के जीवन का एक ऐसा राज़ भी है, जिसे छिपाने की उन्होंने भरपूर कोशिश की और वह उसमें सफल भी हुए, लेकिन उनकी मौत के बाद कई लोगों को इस विषय के बारे में पता चला। मार्क्स के घर में लम्बे समय तक काम करने वाली हेलेन देमुथ से उसका अवैध सम्बन्ध था और दोनों को एक बेटा भी हुआ था, जिसका नाम था- फ्रेड्रिक देमुथ। अपनी सार्वजनिक छवि को बिगड़ने और शादी को टूटने से बचाने के लिए मार्क्स ने बड़ी चालाकी से अपने इस कृत्य को छिपाने के लिए एक योजना तैयार की थी।
मार्क्स ने इसके लिए अपने दोस्त फ्रेड्रिक एंजेल्स की मदद ली थी, जिसने उस बच्चे के पिता होने का दावा किया और हेलेन देमुथ ने इस बात की सार्वजनिक पुष्टि की। इस तरह से मार्क्स और हेलन का बेटा अब एंजेल्स और हेलेन का बेटा हो गया। 40 वर्षों तक इस राज़ को कोई और नहीं जान पाया। 1895 में जब एंजेल्स मृत्युशैया पर थे, तब उन्होंने मार्क्स की बेटी इलिनर मार्क्स को यह बात बताई। इलिनर यह बात सुन कर सन्न रह गई। हालाँकि, मार्क्स की संतानों में तब तक 2 ही बचे थे, और 3 वर्षों बाद इलिनर ने भी आत्महत्या कर ली। इसी तरह 1911 में मार्क्स की एक अन्य बेटी लौरा ने भी आत्महत्या कर ली।
इस तरह अकेलेपन से पीड़ित फ्रेडिक देमुथ एक उपेक्षित बच्चे के रूप में बड़ा हुआ। मार्क्स उसके लिए कुछ नहीं कर सके। मार्क्स गुज़र-बसर के लिए एंजेल्स पर निर्भर थे और वह कभी-कभी कुछ रुपए-पैसे भी भेज दिया करते थे। ऐसे में मार्क्स और एंजेल्स, दोनों ने ही फ्रेडिक देमुथ से दूरी बना ली। मार्क्स कभी उसे देखने भी नहीं जाते थे, जिस कारण फ्रेडिक देमुथ की शिक्षा-दीक्षा अच्छे से नहीं हो पाई। वो जिंदगी भर मजदूर और कल-पूर्जे बनाने वाला काम करता रहा।
मार्क्स और एंजेल्स दोनों ने अपनी संपत्तियों में से कुछ भी फ्रेडिक देमुथ के लिए नहीं छोड़ा था हालाँकि मार्क्स की बेटियों ने अपनी संपत्ति में से कुछ रुपए फ्रेडी को दिए थे। आखिरकार 1929 में 78 वर्ष की उम्र में फ्रेडिक देमुथ की मृत्यु हुई, लंदन की एक ग़रीब बस्ती में – वो भी इस विश्वास के साथ कि वो फ्रेडिक एंजेल्स का बेटा है, ऐसा बेटा जो नालायक है, दुष्ट है, नकारा है। मार्क्स के अलावा जीवन भर हेलेन और एंजेल्स ही थे, जो इस राज़ को जानते थे। किसी और को इस राज़ के बारे में भनक तक नहीं लगी।
मार्क्स के अनुयायी फ्रेड्रिक देमुथ का जिक्र तक नहीं करते, जैसे इस विषय को दूर से देखना भी उनके लिए एक महापाप हो। मार्क्स के इस ‘नैतिक’ रवैये को छिपाकर उनका जो महिमामंडन किया गया है, आखिर वामपंथी उसे कैसे मिटने दे सकते हैं! आखिर मार्क्स भी ब्रिटेन के अन्य लोगों की तरह ही थे, वैसे ही विचार रखते थे, जो चीजें सबको डराती थीं, वो मार्क्स के लिए भी डरावनी थीं। तभी तो मार्क्स के मरने के बाद एंजेल्स ने उन सारी चिट्ठियों को भी लापता कर दिया, जिसमें फ्रेड्रिक देमुथ का जिक्र था।
(यह लेख ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ के एक लेख पर आधारित है, जो जनवरी 14, 1983 को प्रकाशित किया गया था।)