शनिवार (अगस्त 15, 2020) को भारत अपना 74वाँ स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से इस बार अन्य सालों के मुकाबले जश्न कुछ फीका है। इससे एक दिन पहले पाकिस्तान ने अपना स्वतंत्रता दिवस मनाया था।
अब आप सोच रहे होंगे कि भला पाकिस्तान हमसे पहले क्यों आज़ाद हो गया, या फिर पाकिस्तान के प्रति ब्रिटिश ज्यादा मेहरबान थे? जैसा कि हमें पता है, भारत की आज़ादी से पहले ही ‘पाकिस्तान मूवमेंट’ शुरू हो गया था, जिसमें इस्लाम मानने वालों के लिए एक अलग मुल्क पाकिस्तान की माँग की गई थी। ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग’ ने मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में देश भर में इसके लिए अभियान चलाया था।
1947 में 14 अगस्त के दिन रमज़ान महीने के 26वाँ दिन था। रमजान के 27वें दिन के पहले की शाम और रात को इस्लाम में काफी पवित्र माना गया है। इसके पीछे कहा गया है कि इसी दिन अल्लाह ने फ़रिश्ते गेब्रियल के जरिए पैगम्बर मुहम्मद को कुरान का ज्ञान दिया था, इसीलिए इसे ‘लायलत-अल-कद्र’, अर्थात प्रकाश और सौभाग्य वाली रात करार दिया गया। इस्लाम के शिया और अहमदिया सेक्ट के लोगों को प्रताड़ित करने वाले पाकिस्तान में तभी से सुन्नियों का वर्चस्व रहा है।
सुन्नी ही इस दिन को सबसे ज्यादा पवित्र मानते हैं, क्योंकि धरती पर कुरान का ज्ञान आने के लिए इस्लाम के अलग-अलग पंथों में अलग-अलग तारीखों को पवित्र माना जाता है। अगस्त 14, 1947 को वही शाम थी जब ब्रिटिश ने पाकिस्तान नाम के एक अलग मुल्क को औपचारिक रूप से सत्ता हस्तांतरित की, लेकिन इस दिन समारोह हुआ था जो माउंटबेटन की मज़बूरी थी। वहीं भारत को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन ने अगस्त 15,1947 का दिन मुक़र्रर किया।
दरअसल, इस दिन 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसी दिन जापान ने आत्मसमर्पण किया था, इसीलिए ब्रिटिश को ये दिन खासा प्रिय था। जापान के सम्राट द्वारा आत्मसमर्पण की घोषणा के बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति की ओर चल निकला था। हालाँकि, इस पर औपचारिक हस्ताक्षर सितम्बर 2, 1945 को हुई थी। अमेरिका और ब्रिटिश ने चीन के साथ मिल कर जापान के आत्मसमर्पण की शर्त रखी थी और जापान की नौसेना भी किसी बड़े ऑपरेशन को अंजाम देने में अक्षम नज़र आ रही थी।
एक और कारण ये है कि लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की स्वतंत्रता से एक दिन पहले पाकिस्तान के गठन एवं स्वतंत्रता का निर्णय इसीलिए लिया क्योंकि वो दोनों ही देशों के समारोहों में हिस्सा लेना चाहते थे और एक ही दिन में ऐसा करना संभव नहीं था। इसीलिए उन्होंने दो अलग-अलग दिन मुक़र्रर किया। लेकिन, यहाँ एक और पेंच है। दरअसल, अगर आप ‘इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट, 1947’ को पढ़ेंगे तो पाएँगे कि भारत और पकिस्तान, दोनों की आज़ादी की आधिकारिक तारीख अगस्त 15, 1947 ही है।
इसमें लिखा है कि इसी दिन भारत और पाकिस्तान नाम के दो Dominions का जन्म हुआ। पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना ने भी जब अपने मुल्क को सम्बोधित किया तो उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि संप्रभु एवं आज़ाद मुल्क पाकिस्तान का जन्मदिन 15 अगस्त को मनाया जाएगा। इस तरह से देखा जाए तो पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस गलत तारीख पर मनाता आ रहा है, क्योंकि अपने भाषण में जिन्ना ने स्पष्ट रूप से इस तारीख का जिक्र किया था। आधिकारिक रूप से 15 अगस्त ही वो तारीख है।
दरअसल, इंडियन इंडिपेंडेंस बिल को ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई को पेश किया गया था। इसे 15 जुलाई को क़ानून का रूप दिया गया एवं 14-15 की अर्द्धरात्रि से भारत एवं पाकिस्तान की आज़ादी की घघोषणा की गई। पेंच ये था कि लॉर्ड माउंटबेटन को व्यक्तिगत रूप से दोनों देशों के समारोहों में उपस्थित रह कर औपचारिक रूप से सत्ता का हस्तांतरण करना था और क़ानूनी रूप से वो 15 अगस्त को दिल्ली में ऐसा करने के बाद कराची जाकर ये काम नहीं कर सकते थे, क्योंकि तब तक वो ‘डोमिनियन ऑफ इंडिया’ के गवर्नर जनरल बन गए होते।
ब्रिटिश ने ‘डोमिनियन ऑफ इंडिया’ और ‘डोमिनियन ऑफ पाकिस्तान’ के रूप में विभाजन और आज़ादी की घोषणा की थी, जो बाद में क्रमशः ‘रिपब्लिक ऑफ इंडिया’ और ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान’ बना। बंगाल और पंजाब जैसे बड़े प्रदेशों को दोनों देशों के बीच बाँट दिया गया। इसी एक्ट में अंग्रेजों ने गवर्नर जनरल के पद के गठन की घोषणा की और दोनों देशों के बीच संपत्ति के बँटवारे का ऐलान किया। मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल के रूप में शपथ ली।
इसके अलावा और भी कई सबूत हैं जो बताते हैं कि पाकिस्तान का असली स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को है। जिन्ना पाकिस्तान की आज़ादी के 13 महीने बाद ही चल बसे थे। 1948 में भी पाकिस्तान ने 14 अगस्त को ही स्वतंत्रता दिवस मनाया था, जो जिन्ना के जीवनकाल का भी आखिरी था। साथ ही पाकिस्तान का पहला कमेमोरेटिव स्टाम्प भी 15 अगस्त की ही बात करता है। हर साल 14 अगस्त को वहाँ जिन्ना का रेडियो मैसेज चलाया जाता है, लेकिन उसमें तारीख 15 अगस्त बताई जाती है।
यहाँ बात पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के तारीख को लेकर हो रही है लेकिन जब भी विभाजन की बात आएगी तो 20 लाख लोगों की मौत की भी बात की जाएगी, जो सांप्रदायिक दंगों में मारे गए। साथ ही क़रीब 2 करोड़ लोग विस्थापित हुए। महात्मा गाँधी ने ऐसे समय में सक्रियता दिखाने की बजाए बंगाल जाकर बैठना उचित समझा था। नेहरू और जिन्ना जैसे नेता अपने-अपने देशों में सांप्रदायिक दंगों को रोकने में पूरी तरह असफल रहे। इधर दोनों देशों की राजधानियों और कुछ इलाक़ों में जश्न चल रहा था, वहीं अधिकतर क्षेत्रों में खून बह रहा था।
हालाँकि, पाकिस्तान के गठन की माँग और इसके लिए हिन्दुओं के नरसंहार की धमकी तो 30 के दशक से ही दी जा रही थी, लेकिन लाहौर में 22-24 मार्च, 1940 को हुए ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग’ के सेशन में इस्लाम मानने वालों के लिए औपचारिक रूप से अलग देश की माँग करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया, जिसे ‘लाहौर रिजॉल्यूशन’ नाम दिया गया। इसीलिए, 1956 में पकिस्तान जब डोमिनियन से गणतंत्र बना, तो उसने इसके लिए 23 मार्च का दिन चुना और इसे ‘पाकिस्तान डे’ घोषित किया।
इसी तरह भारत ने 1950 में 26 जनवरी की तारीख को गणतंत्र दिवस के रूप में अपनाया। आज गलत दिन पर स्वतंत्रता दिवस मनाने वाले पाकिस्तान की स्थिति ये है कि वो कंगाल हो चला है और चीन की कृपा से सऊदी का लोन सधा रहा है, वहीं भारत दिन पर दिन उन्नति की नई गाथा लिख रहा है। पाकिस्तान अभी भी कश्मीर लेने के सपने देख रहा है, जबकि भारत सही मायनों में स्वतंत्रता के ध्येय को साकार करने की ओर बढ़ चला है।