सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत पहली अपना स्पेस मिशन आज शनिवार 2 सितंबर 2023 को लॉन्च कर रहा है। इसे श्रीहरिकोट्टा से 11:50 में लॉन्च किया जाएगा। दुनिया का कोई भी मिशन अभी तक सूर्य और उससे संबंधित डेटा अभी तक लगातार नहीं भेज पाया है, लेकिन आदित्य एल-1 ऐसा पहली बार करेगा। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के पूर्व कमांडर क्रिस हेडफील्ड ने भारतीय तकनीक कौशल की सराहना की।
भारतीय एस्ट्रोफिजिक्स संस्थान (IIA) के प्रोफेसर जगदेव सिंह ने हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत की और इसके बारे में जानकारी दी। प्रोफेसर जगदेव सिंह के शुरुआती प्रयास ही थे, जिसके परिणामस्वरूप विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC) पेलोड का विकास हुआ। इस पेलोड को आदित्य एल-1 अंतरिक्ष यान पर ले जाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि प्रारंभिक योजना के तहत आदित्य एल-1 को 800 किलोमीटर की पृथ्वी की निचली कक्षा में लॉन्च करने की थी, लेकिन 2012 में इसरो के साथ चर्चा के बाद इसे बदल दिया गया। निर्णय लिया गया कि मिशन को L-11 (लैग्रेंज प्वाइंट-1) के चारों ओर की हेलो कक्षा में इसे प्रक्षेपित किया जाएगा। यह एल-1 बिंदु से पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर है।
प्रोफेसर सिंह ने कहा, “16 फरवरी 1980 को भारत में पूर्ण सूर्य ग्रहण हुआ था और उस समय संस्थापक-निदेशक एमके वेनु बप्पू ने मुझे सूर्य के बाहरी वातावरण का अध्ययन करने के लिए प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया था। मैंने 1980 और 2010 के बीच 10 ऐसे अभियान चलाए… मुझे एहसास हुआ कि ग्रहण के दौरान आपको अवलोकन के लिए केवल 5-7 मिनट मिलते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “ये अवलोकन दीर्घकालिक अध्ययन करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। मैंने निरंतर अवधि के लिए सूर्य के पहलुओं का अध्ययन करने में मदद करने के मिशन के लिए इसरो और अन्य एजेंसियों में कई लोगों से बात की। साल 2009 के आसपास ऐसे संभावित मिशन के बारे में बातचीत शुरू हुई और बाद में 2012 में एक ठोस योजना विकसित की गई।”
आदित्य मिशन की कार्य-प्रणाली को लेकर प्रोफेसर सिंह ने कहा, “अंतरिक्ष यान को वहाँ पहुँचने में 127 दिन लगेंगे। उम्मीद है कि अगले साल फरवरी या मार्च तक डेटा आना शुरू हो जाएगा। आम तौर पर एक उपग्रह को पाँच साल तक रहने की योजना बनाई जाती है, जो कि किसी न्यूनतम मिशन जीवन है। हालाँकि, आदित्य एल-1 हमें 10-15 साल तक डेटा प्रदान करना जारी रख सकता है।”
उन्होंने कहा, “चूँकि उपग्रह को एल-1 पर रखा जाएगा, जो एक स्थिर बिंदु है, वहाँ हमें बहुत अधिक दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसलिए हम इसके अधिक जीवन होने की उम्मीद कर रहे हैं। यह पहली बार है, जब हम दृश्यमान उत्सर्जन रेखा पर डेटा प्राप्त करेंगे… सौर कोरोना में कैसे परिवर्तन हो रहे हैं और ये छोटे परिवर्तन प्लाज्मा के गर्म होने और क्रोमोस्फीयर से कोरोना तक ऊर्जा के हस्तांतरण में कैसे भूमिका निभाते हैं, आदि। अब तक कोई भी लगातार डेटा हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाया है, लेकिन हम ऐसा करने में सक्षम होंगे।”
प्रोफेसर सिंह ने कहा कि उनकी टीमों ने प्रयोगशाला में उपकरण का कई बार परीक्षण किया है। परीक्षणों से पता चला है कि व पूरी तरह काम कर रहे हैं। उपकरणों को हर चरण में शेकर्स, वाइब्रेटर और तापमान में उतार-चढ़ाव के माध्यम से वे स्थिर और अच्छी तरह से कैलिब्रेट किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि अगर सब कुछ ठीक रहा है तो इसके बाद के मिशन पर विचार होगा।
भारत के तकनीकी कौशल की सराहना करते हुए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के पूर्व कमांडर क्रिस हेलफील्ड ने कहा, “चंद्रमा पर उतरने और सूर्य पर यान भेजने या कम से कम सूर्य की निगरानी करने और भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में उड़ान भरने के लिए तैयार करने का यह उदाहरण वास्तव में भारत में हर किसी के लिए उदाहरण प्रदान करता है। वहीं, दुनिया भर के लोगों को भारतीय तकनीकी कौशल कहाँ पहुँचा है, ये उसका भी उदाहरण है।”
उन्होंने आगे कहा, “मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे पिछले कई वर्षों से देख रहे हैं। वह भारतीय अंतरिक्ष और अनुसंधान संगठन से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं… इसलिए इस समय इसे आगे बढ़ाना, भारत के नेतृत्व की ओर से यह वास्तव में एक स्मार्ट कदम है। इसे विकसित किया जा रहा है, लेकिन इसके निजीकरण की प्रक्रिया भी चल रही है ताकि व्यवसायों और इसलिए भारतीय लोगों को फायदा हो सके।”