कोविड-19 रोधी वैक्सीन कोविशील्ड की निर्माता कम्पनी ने स्वीकार किया है कि उसकी वैक्सीन कुछ मामलों में साइड इफेक्ट हो सकते हैं। निर्माता कम्पनी एस्ट्राजेनेका ने यह बात इंग्लैंड के एक कोर्ट में स्वीकार की है। यह वैक्सीन भारत में भी बड़े पैमाने पर लोगों को लगाई गई थी। इस खुलासे के बाद एस्ट्राजेनेका पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।
जानकारी के अनुसार, एस्ट्राजेनेका ने हाई कोर्ट में दाखिल किए गए कागजों में यह बात स्वीकार की है कि इसकी वैक्सीन लेने वालों पर कुछ बहुत ही दुर्लभ मामलों साइड इफेक्ट हो सकते हैं। यह जानकारी एस्ट्राजेनेका ने कोर्ट को फरवरी, 2024 में दी थी।
एस्ट्राजेनेका ने कोर्ट को बताया है कि उसकी वैक्सीन से TTS नाम का साइड इफ़ेक्ट हो सकता है। इस TTS का पूरा नाम थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम है। इसके कारण खून में थक्के जम सकते हैं और प्लेटलेट्स की सँख्या कम हो सकती है। इन कारणों से खून का बहाव शरीर में प्रभावित हो सकता है।
एस्ट्राजेनेका ने इसी के साथ कोर्ट में यह भी कहा है कि लोगों को TTS की समस्या बिना वैक्सीन के भी हो सकती है। ऐसे में इस समस्या से जूझने वाले प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग परीक्षण करना होगा, ताकि असल वजह पता लगाई जा सके।
दरअसल, एस्ट्राजेनेका को यह जानकारी कोर्ट में इसलिए देनी पड़ी हैं क्योंकि इसके खिलाफ इंग्लैंड में 51 मामले दायर किए गए हैं। मुकदमा दायर करने वालों का आरोप है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन लेने के कारण लोगों की मृत्यु या भारी बीमारी हुई।
इस मामले में जेमी स्कॉट नाम एक व्यक्ति ने पिछले वर्ष एक मुकदमा दायर किया था कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन लेने के बाद उनके दिमाग में खून के थक्के बने जिसके कारण वह अस्पताल में भर्ती हुए। अस्पताल में डॉक्टरों ने उनके बचने की उम्मीद ना के बराबर बताई थी।
एस्ट्राजेनेका ने पहले अपने खिलाफ लगाए गए इन आरोपों को नकार दिया था। एस्ट्राजेनेका के खिलाफ मुकदमा दायर करने वालों ने इस कम्पनी से 100 मिलियन पाउंड (लगभग ₹1040 करोड़) का हर्जाना माँग रहे है। एस्ट्राजेनेका इसके खिलाफ लड़ रही है।
गौरतलब है कि एस्ट्राजेनेका ने जिस वैक्सीन से साइड इफ़ेक्ट की जानकारी दी है, वह भारत में कोरोनारोधी टीके के रूप में बड़े स्तर पर दी गई थी। भारत में यह कोविशिल्ड के नाम से दी गई थी। कई देशों में यह वैक्सीन वैक्सज़ेव्रिया नाम से बेची गई थी। भारत में इसका उत्पादन सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया ने किया था।
एक आँकड़े के अनुसार, भारत में कोविशिल्ड की 170 करोड़ डोज लोगों के लगाई गई थीं। कई लोगों को इसकी डबल तो कई लोगों को तीन डोज लगाई गई थीं। भारत में स्थानीय रूप से निर्मित कोवैक्सीन भी उपलब्ध थी लेकिन उसके प्रमाणन में समय लगा था इसलिए कोविशिल्ड का ही अधिक उपयोग किया गया था।