ये दुनिया पहले ऐसी नहीं थी, जैसा आज हम इसे देख रहे हैं। ये सड़कें, ये सुपरमार्केट्स और ये रेस्टॉरेंट्स पहले नहीं हुआ करते थे। हम बात कर रहे हैं लाखों वर्ष पूर्व की। पाषाण युग में सिर्फ माँस का भक्षण करने वाला मनुष्य शिकारी था और उसके पास पत्थर के बने अत्याधुनिक हथियार थे, जिससे जानवर बच नहीं पाते थे। ये कोई आदत नहीं, बल्कि जीवन जीने की ज़रूरत थी। इजरायल की ‘तेल अवीव यूनिवर्सिटी’ में इसे लेकर एक रिसर्च हुआ है।
रिसर्च के लिए पाषाण युग के मनुष्यों के न्यूट्रिशन इंटेक का अध्ययन किया, जिससे पता चलता है कि मनुष्य कभी सर्वोत्तम किस्म का शिकारी हुआ करता था। ये बात लगभग 20 लाख साल पहले की है। न्यूट्रिशन इंटेक के रिकंस्ट्रक्शन की प्रक्रिया के बाद मनुष्य के विकास को लेकर कई राज़ खुले हैं। पहले मनुष्य बड़े जानवरों का शिकार किया करता था। जबकि अब तक माना जा रहा था कि भोजन में विविधता के कारण मनुष्य अब तक टिका रहा।
लेकिन, नया रिसर्च कहता है कि वो पूर्णतः माँसाहारी था। वैज्ञानिकों का कहना है कि पाषाण युग का अंत होते-होते बड़े जानवरों की कमी हो गई। इसे ‘MegaFauna’ भी कहा जाता है। इस कारण लोगों ने शाकाहारी चीजें खानी शुरू की और सब्जियों का प्रचलन बढ़ा। स्थिति जब और बिगड़ती चली गई तो मनुष्य माँस के साथ-साथ शाकाहार पर भी जोर देने लगा और वो किसान बन गया। उसने पेड़-पौधों से मिलने वाला भोजन लेना शुरू कर दिया।
ये अध्ययन कहता है कि पाषाण युग के अंत में ही मनुष्य ने पेड़-पौधों से भोजन बनाना शुरू किया। इसके बाद पूरा का पूरा इकोसिस्टम भी बदलने लगा। मेटाबॉलिज्म, जेनेटिक्स और फिजिकल बिल्ड के रूप में आज के मनुष्य के भीतर ही उसके खानपान का इतिहास छिपा हुआ है, ऐसा शोधार्थियों का कहना है। जहाँ मनुष्य का व्यवहार भले ही तेज़ी से बदलता हो, शरीर का विकास होना एक बेहद ही धीमी प्रक्रिया है।
इसके लिए मनुष्य के पेट में एसिड कंटेंट का ध्यायन किया गया। किसी अन्य माँसाहारी या सर्वाहारी जीव के मुकाबले मनुष्य के पेट में एसिड कंटेंट की मात्रा कहीं बहुत ज्यादा है। इसका अस्तित्व अति-प्राचीन काल में माँस भक्षण को लेकर राज़ खोलता है। प्रागैतिहासिक काल के मनुष्य के लिए पुराने जानवरों के माँस को पचाने और माँस में मौजूद बैक्टेरिया से अपने पाचन सिस्टम की सुरक्षा के लिए अधिक एसिड की ज़रूरत पड़ती होगी, जो उनके भीतर मौजूद था।
In a world far older than our tame streets lined with fast-food joints, cafes and global supermarkets, a stone-age man stalked his large prey to attack it at the right moment with the most advanced stone tools available to him. #Discovery #evolution
— The Weather Channel India (@weatherindia) April 6, 2021
इजरायल की रिसर्च में बताया गया है कि तगड़े शिकारी रहे मनुष्य की बायोलॉजी के सिर्फ माँस खाने की दावे की पुष्टि पुरातत्व भी करता है। प्रागैतिहासिक मनुष्य की हड्डियों में मौजूद स्टेबल आइसोटोप्स के अध्ययन से पता चला है कि मनुष्य अधिक फैट की मात्रा वाले बड़े और माध्यम आकार के जानवरों का शिकार करता था। स्टेबल आइसोटोप्स के माध्यम से कार्बन और नाइट्रोजन एटम्स का अध्ययन करते हैं, जो कभी सड़ते नहीं। हालाँकि, आज के लोगों के लिए ये स्वीकार करना कठिन है कि उनके पूर्वज पूर्णतया माँसाहारी थे।
इस रिसर्च का कहना है कि मनुष्य ने शाकाहारी चीजें खानी लगभग 85,000 वर्ष पहले ही शुरू की है। जैसे आज के शेर और चीता जैसे जानवर शिकार पर निर्भर हैं, वैसे ही मनुष्य के जीवन का भी कभी एक ही लक्ष्य था – शिकार। जहाँ मनुष्य अधिक फैट वाला भोजन करता था, चिम्पांजियों पर अध्ययन में पता चला कि वो अधिक शुगर की मात्रा वाला भोजन करते थे। हमारे फैट सेल्स में ही हमारा ये इतिहास छिपा है।