प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज बुधवार (मार्च 26, 2019) को भारत के अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की घोषणा की गई। उन्होंने कहा कि भारत ने आज एक अभूतपूर्व सिद्धि हासिल की है। भारत ने आज अपना नाम ‘स्पेस पावर’ के रूप में दर्ज करा लिया है। अब तक रूस, अमेरिका और चीन को ये दर्जा प्राप्त था, अब भारत ने भी यह उपलब्धि हासिल कर ली है। दरअसल, हमारे वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में 300 किलोमीटर दूर LEO (Low Earth Orbit) में एक सक्रिय सैटेलाइट को मार गिराया है। ये लाइव सैटेसाइट जो कि एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था, उसे एंटी सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) द्वारा मार गिराया गया है।
ऐसे में आपके मन में ऐसे प्रश्न ज़रूर उठ रहे होंगे कि क्या ऐसा करने से भारत ने किसी अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन किया है? इसका सपाट जवाब है, नहीं। भारत ने अंतरराष्ट्रीय दायरे में रहते हुए सबकुछ किया है। भारत और चीन में यही अंतर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सारी जानकारी देश-दुनिया को दे दी है। बता दें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष के नियम-क़ानून पर जो संधि है, उसे बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) नाम दिया गया है। ये चन्द्रमा सहित सभी खगोलीय पिंडों पर लागू होता है। इसे 1967 में ड्राफ्ट किया गया था। अंतरिक्ष में हथियारों के प्रयोग को लेकर भी इस संधि में नियम-क़ानून बनाए गए थे।
#MissionShakti किसी देश के विरुद्ध नहीं है। यह किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून या संधि समझौतों का उल्लंघन नहीं करता है। हम आधुनिक तकनीक का उपयोग देश के 130 करोड़ नागरिकों की सुरक्षा के लिए किया है। एक मजबूत भारत का होना बेहद जरूरी है। हमारा मकसद युद्ध का माहौल बनाना नहीं है।
— Chowkidar Birender Singh (@ChBirenderSingh) March 27, 2019
अगर ये संधि नहीं होती तो हो सकता है कुछ देश विध्वंसक मिसाइलों या हथियारों को चन्द्रमा पर तैनात कर देते। यही वो संधि है, जो देशों को ऐसा करने से रोकती है। यहाँ तक कि आउटर स्पेस में भी हथियारों की तैनाती से रोकती है। इस संधि में कहा गया है कि कोई भी देश चाँद या किसी खगोलीय पिंड पर अपना अधिकार नहीं जता सकता। इन पर किसी भी प्रकार के सैनिक केंद्र की स्थापना नहीं कर सकता। कुल मिलकर सार यह कि बाह्य अंतरिक्ष में कोई भी देश अपना प्रभुत्व नहीं जता सकता।
अंतरिक्ष में परमाणु-शस्त्र और सामूहिक विनाश के दूसरे साधनों से सुसज्जित उपग्रहों, अंतरिक्ष यानों आदि के छोड़ने पर प्रतिबंध है। यह संधि इस बात की भी व्यवस्था करती है कि गलती से किसी दूसरे देश के सीमा क्षेत्र में उतर जाने वाले अंतरिक्ष यात्री उस देश को सौंप दिए जाएँगे जिसके वे नागरिक होंगे। अक्सर आपने सुना होगा कि फलाँ कम्पनी चाँद पर ज़मीन बेच रही है या फलाँ उद्योगपति ने वहाँ ज़मीन ख़रीदी। यह सब आउटर स्पेस ट्रीटी की अस्पष्टता के कारण होता है।
दुनिया की कोई भी सरकार चाँद पर ज़मीन के टुकड़ों के व्यापार की वैधता की गारंटी नहीं देती है, लेकिन चाँद पर ज़मीन की ख़रीद-बेच कर रही कंपनियों का मानना है कि 1967 की संयुक्त राष्ट्र बाह्य अंतरिक्ष संधि के एक अस्पष्ट प्रावधान के कारण उनका धंधा पूरी तरह क़ानून के अनुरूप है। दरअसल इस संधि में बाह्य अंतरिक्ष पिंड पर किसी देश या सरकार के दावे को तो ख़ारिज़ किया गया है, लेकिन इसमें यह सुनिश्चित नहीं किया गया है कि ऐसे किसी पिंड पर व्यक्तिगत या कंपनी विशेष के दावे की क्या क़ानूनी स्थिति होगी। संयुक्त राष्ट्र के वकीलों ने भी साफ़ किया है कि चाँद पर कंपनियों के दावे में कोई दम नहीं है।
While international experts meeting in #Geneva clash over how to prevent an #armsrace in outer #Space, Europe is hoping that efforts to replace an ageing #ColdWar treaty will find a way to rein in space pollution. https://t.co/JKIrqLGfU2
— RFI English (@RFI_English) March 25, 2019
ताजा हालात में भारत ने अंतरराष्ट्रीय दायरे में रह कर कार्य किया है। भारत ने अपने ही सैटेलाइट को मार गिराया है। इसके लिए जिस तकनीक का प्रयोग किया गया, उसे भी भारत में ही विकसित किया गया है। सबसे बड़ी बात यह कि भारत की इस कार्यवाही से किसी भी दूसरे देश के एयरस्पेस का कुछ भी लेना-देना नहीं है। प्रधानमंत्री ने यह भी साफ़ कर दिया है कि भारत अंतरिक्ष में शांति का वाहक है और तकनीकों का उपयोग कृषि, मेडिकल और विज्ञान आदि से सम्बंधित अच्छे कार्यों में होना चाहिए।