दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों की 10 कहानियाँ: ताकि याद रहे उस ‘डरी हुई’ मजहबी भीड़ का अताताई चेहरा

दिल्ली दंगा: रूह कॅंपा देने वाला सच (प्रतीकात्मक चित्र)

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों के दौरान विशेष समुदाय की भीड़ ने सुनियोजित तरीके से बहुसंख्यक आबादी और उनकी संपत्तियों को निशाना बनाया। कहीं हिंदुओं के घरों को आग के हवाले किया गया, तो कहीं उनके शैक्षणिक संस्थानों को। अल्पसंख्यक कहे जाने वाले समुदाय की भीड़ ने न हिंदुओं की दुकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया। धार्मिक स्थलों को भी नहीं छोड़ा। लेकिन बावजूद इसके हिंदू अपने बच्चों के लिए, अपनी महिलाओं के लिए इस भीड़ के सामने खड़े रहे और इनके उपद्रव को रोकने के लिए, इनका जवाब देने के लिए उनसे लड़ते रहे। इसमें कई हिंदुओं को जान गॅंवानी पड़ी। कुछ ने अपनी आँखों के सामने जीवन भर की कमाई को स्वाहा होते देखा। मरने वालों की सूची में 15 साल के लड़के से लेकर आईबी और दिल्ली पुलिस के जवान तक हैं।

हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल को गोली मारी

24 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में किसी दंगाई के तमंचे से निकली गोली ने रतनलाल की जान ले ली। उनकी मौत गोकुलपुरी में हुई। साल 1998 में दिल्ली पुलिस में शामिल होने के बाद रतनलाल आखिरी समय में गोकुलपुरी में एसीपी ऑफिस में तैनात थे। उनके परिवार के अनुसार सोमवार को बुखार होने के बावजूद वो अपनी ड्यूटी करने गए थे। ड्यूटी पहुँचकर उन्होंने ही अपने परिवार को दिल्ली दंगों के बारे में बताया था। मगर उन्हें क्या पता था कि ये दंगे जिनके बारे में वो अपने परिवार को आगाह कर रहे हैं, वहीं उनकी जान ले लेंगे। वो न अपने घर लौटेंगे और न ही होली पर अपनी माँ के पास।

आईबी कॉन्सटेबल अंकित शर्मा को गोदा

25 फरवरी को हुए दंगों में आईबी के अंकित शर्मा की क्रूरता से हत्या की गई। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक AAP के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन के गुंडे उन्हें घसीट कर उसकी बिल्डिंग में ले गए थे। बाद में उनका शव नाले से मिला। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक करीब 6 लोगों ने मिलकर 2 से 4 घंटे तक 400 बार उन्हें चाकुओं से गोदा होगा। अंकित की गलती सिर्फ़ इतनी थी कि उन्हें लगा जो लोग उनके घर के बाहर लड़ रहे हैं, वे उन्हें जानते हैं, और अगर वे मना करेंगे तो सब शांत हो जाएँगे। लेकिन अंकित को नहीं पता था, वो भीड़ तो बर्बता की पराकाष्ठा लिखने चली थी।

आलोक तिवारी फिर घर नहीं लौटे

26 फरवरी को खाना खाने के बाद घर से बाहर निकले आलोक तिवारी अपने घर दोबारा न लौट सके। उन्हें दंगाइयों ने पत्थर मारकर घायल किया और जीटीबी अस्पताल में उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। आलोक की पत्नी के मुताबिक, जिस समय उनके पति घर से निकले, वो निश्चिंत थी, क्योंकि उन्हें बाहर के माहौल के बारे में नहीं पता था। लेकिन जब उनके फोन पर आलोक के फोन से किसी और का फोन आया, तो वो घबरा गईं। फोन करने वाले ने उन्हें आलोक के घायल होने की बात बताई, जिसके बाद वो भागकर अपने पति के पास गईं। मगर, अफसोस जब तक आलोक की पत्नी या आसपास के लोग उनके लिए कुछ कर पाते तब तक उनका बहुत खून बह चुका था। उनकी हालत इतनी बिगड़ गई थी कि अस्पताल पहुँचने के बाद भी उन्हें कोई बचा न सका।

अप्रैल में होने वाली थी रोहित सोलंकी की शादी

इस हिंसा में बाबूनगर मुस्तफाबाद के रहने वाले हरि सिंह सोलंकी ने अपना बेटा रोहित सोलंकी खो दिया। रोहित की शादी अप्रैल में होने वाली थी। वह एक निजी कंपनी में काम करता था। लेकिन दंगाइयों की गोली ने उसे भी नहीं छोड़ा।

हाथ-पैर काट दिलबर नेगी को आग में फेंका

दिलबर नेगी के साथ हुई निर्ममता तो रूह कँपा देने वाली है। 24 फरवरी को जिस समय दिल्ली में हिंसा भड़की थी, उसी शाम इन दंगों की क्रूर वास्तविकता का शिकार 20 साल के दिलबर सिंह नेगी को होना पड़ा था। दिलबर सिंह नेगी को दंगाइयों की भीड़ ने तलवार से काटने के बाद जलते हुए घर में आग के हवाले कर दिया था। बाद में जलकर राख हुए दिलबर नेगी की विडियो भी वायरल हुई थी।

‘अल्लाहु अकबर’ के नारों के बीच हत्या

24 तारीख को हिंसा भड़कने के बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इलाकों से दिल दहला देने वाली खबर आती रही। इसी दौरान विनोद नाम के हिंदू व्यक्ति की मौत की भी खबर आई। विनोद अल्लाह हु अकबर और नारा ए तकबीर का एलान करती भीड़ के शिकार हुए। भीड़ ने विनोद को मारने के बाद न केवल उनके बाइक में आग लगाई, बल्कि वहाँ रहने वाले सभी हिंदुओं को धमकी दी कि उन्हें रात भर इसी तरह लाशें मिलती रहेंगी।

न चाउमिन खा सका, न खिला सका

गोकुलपुरी में 26 फरवरी को 15 साल का एक मासूम अपने घर से चाउमिन लेने निकला था। नितिन की गलती सिर्फ़ इतनी थी कि अपने घर के आसपास के माहौल को शांत देख उसने घर से बाहर पैर तो रखा, लेकिन दंगाइयों से अपनी जान बचा पाने में असफल रहा। उसे गोली लगी या पत्थर… किसी को कुछ नहीं पता। लेकिन जब उसे अस्पताल ले जाया गया तब वो जिंदा था, मगर सिर में चोट इतनी गहरी थी कि वो 3-4 घंटे में ही जिंदगी की जंग हार गया।

विवेक के सिर में घुसाई ड्रिल मशीन

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में दंगाइयों ने 19 साल के विवेक पर हमला किया और उसके सिर में ड्रिल मशीन से छेद कर दी। जिस समय इस दर्दनाक घटना को अंजाम दिया गया उस समय विवेक अपनी दुकान के भीतर था। हालाँकि डॉक्टरों ने उसे सर्जरी के बाद ठीक होने की बात कही, लेकिन उसके सिर में घुसी ड्रिल को देखकर वे भी हैरान थे।

दलित दिनेश की जिहादियों ने ली जान

दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों में जान गँवाने वालों में एक दिनेश कुमार खटीक का नाम भी शामिल है। वे हिंसा वाले दिन अपने बच्चों के लिए दूध लेने निकले थे। लेकिन उनकी गलती ये थी कि वो दुकान बंद होने के कारण दूर निकल गए और दूध खोजते-खोजते फैसल फ़ारूक़ के राजधानी स्कूल के बगल से जा गुजरे। बस फिर क्या? यही पर उन्हें गोली लगी और वो खत्म हो गए। बता दें दिनेश के भाई ने हमसे बात करते हुए स्पष्ट तौर पर बताया कि उनके भाई की जान जिहाद ने ली है- इस्लामी कट्टरपंथियों के जिहाद ने। उन्होंने कहा कि पूरे मुस्तफाबाद ने उनके भाई को मार डाला।

अनूप के गर्दन में लगी ताहिर के गुंडो की गोली

24 फरवरी को चांदबाग में मरते-मरते बचने वालों में एक नाम अनूप सिंह का है। अनूप को ताहिर के गुंडों ने गोली मारी थी। वैसे तो जिस तरह गोली अनूप को लगी थी, उसे देखकर कोई उनके जिंदा रहने की कल्पना नहीं कर सकता। लेकिन ये चमत्कार ही था कि वो जिंदा बचे। अनूप बताते हैं कि जिस समय उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा था उस समय भी हिंसक भीड़ उनपर लगातार पत्थर फेंक रही थी और उनकी जान लेने की कोशिश में जुटी थी।

40-50 लोग घुसे और दुकान को आग के हवाले किया

दिल्ली हिंसा में करोड़ों का नुकसान हुआ। कई लोगों ने अपनी दुकानें अपनी आखों के आगे आग में जलते हुए देखीं। दिलीप भी उन्ही लोगों में से एक नाम हैं। दिलीप के अनुसार, करीब 2 बजे से उस दिन पथराव शुरू हुआ था। लेकिन, वह अपनी दुकान को 1 बजे बंद कर चुके थे। वह उस समय दुकान में ताला मारकर अंदर बैठे थे, जब दंगाइयों ने उनपर अचानक हमला किया। उनके मुताबिक 2 से ढाई बजे के बीच 40-50 ऐसे लोग उनकी दुकान का ताला तोड़कर अंदर घुस आए और दुकान को आग के हवाले कर दिया।