16 दिसंबर 1971। शाम 4.35 बजे। ये वही पल था जब भारतीय सेना के पराक्रम का लोहा पूरी दुनिया ने माना। पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया और भारतीय सेना की बहादुरी की वजह से दुनिया में एक नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ। जनरल नियाजी ने लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। हालाँकि बांग्लादेश को पाकिस्तान से मिली यह मुक्ति इतनी सरल न थी। इससे पहले पाकिस्तानी सेना से खूनी खेल खेला और रूह कंपा देने वाले जुल्म किए। न सिर्फ बंगलादेशी बल्कि कई भारतीय भी बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्ति दिलाने में अपना योगदान दे रहे थे जिसके चलते उन्हें भी पाकिस्तानी सेना के जुल्मों का शिकार होना पड़ा। ऐसी ही 10 दर्दनाक घटनाओं का जिक्र आज हम करने जा रहे हैं…
फरीदपुर नरसंहार : जब 10 हजार हिंदुओं को मारकर उनकी संपत्तियों पर लिख दिया ‘H’
इस नरसंहार के बारे में दुनिया को 4 जुलाई 1971 को पता चला था, जब न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस संबंध में रिपोर्ट छापी थी। फरीदपुर में अंजाम दिए गए इस नरसंहार में पाकिस्तानी फौज ने हिन्दुओं को विशेष तौर पर चिह्नित कर उनका कत्लेआम किया था। तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के केंद्र में स्थित फरीदपुर में हिंदुओं के दमन की एक व्यवस्थित मुहिम चलाई गई थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तानी फौज ने हिंदुओं की पहचान करने के लिए उनकी संपत्तियों पर पीले रंग में बड़े अक्षरों में ‘H’ लिखा था। इस रिपोर्ट के मुताबिक फरीदपुर में 10,000 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया था।
हिंदुओं के खिलाफ पाकिस्तानी फौज के इस अभियान को ‘फरीदपुर कैम्पेन’ कहा जाता है। यह कैम्पेन 21 अप्रैल 1971 को शुरू हुआ था। पाकिस्तानी फौज ने जैसे ही फरीदपुर में प्रवेश किया उन्हें श्री आँगन आश्रम से भजन.कीर्तन की आवाज सुनाई दी। पाकिस्तानी फौज को देख कई साधु वहाँ से भाग निकले लेकिन 9 ब्रह्मचारी संतों ने भागना स्वीकार नहीं किया। सेना उन सभी 9 संतों को खींचकर बाहर लाई। वहाँ से बच निकले एक संत नबकुमार ब्रह्मचारी ने बताया था कि सभी संतों को एक लाइन में खड़ा करके पाकिस्तानी फौज ने एक-एक को 12 गोलियाँ मारी थी।
अटायकुला नरसंहार : 35 महिलाओं का रेप, 52 पुरुषों की हत्या
पाकिस्तानी सेना की बर्बरता की कहानी आज भी अटायकुला में जीवित है। जिन 35 महिलाओं का रेप किया गया था, उनमें नीवा पॉल एक थीं। बकौल नीवा, “बात 25 अप्रैल 1971 की है। पंजाबियों ने हमारे गाँव को घेर लिया था। मैं अपने पति के साथ थी। तीन लोगों ने दरवाजा तोड़कर मेरे पति को उठाया। उस समय मैं दो बच्चों की माँ थी। उन्होंने मुझे कस कर पकड़ा कि मैं भाग नहीं पाई। काश मैं वहाँ से निकल पाती। पाकिस्तानियों ने मेरे पति को मारा। मैं उस समय प्रेगनेंट थी। उन्होंने मेरे पेट पर मारा। जिसके बाद मुझे एक मृत बच्चे को जन्म देना पड़ा।”
स्थानीय लोग 1971 के उस दौर को याद करते हुए बताते हैं कि कैसे अटायकुला में 6 नावों पर बैठकर 150 पाकिस्तानी नदी पार कर आए और जोगेंद्रनाथ पाल के आँगन में 60 पुरुषों को खड़ा किया। इसके बाद सारे पुरुषों को दो पंक्ति में बाँटा गया। एक जो अपना पैसा और सोना मर्जी से देने को तैयार हो गए और दूसरे वो जिन्होंने मना कर दिया। सेना ने पहले उन पर गोली चलाई जो पैसा नहीं दे पाए। 60 पुरुषों में से कुल 8 बचे।
6 जून 1971 : मारवाड़ियों के साथ विश्वासघात की रात
पाकिस्तानी सेना ने मारवाड़ियों के साथ 6 जून 1971 जो विश्वासघात किया था, जिन्हें शायद ही कभी मारवाड़ी भूल पाएँगे। पाकिस्तानी सेना ने मारवाड़ी समुदाय के लोगों को यह विश्वास दिलाया था कि उन्हें एक ट्रेन के माध्यम से भारत वापस भेज दिया जाएगा। ट्रेन को चिल्हाटी सीमा होते हुए पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी की तरफ जाना था। ट्रेन बमुश्किल 2 किलोमीटर चली और आधीरात को सुनसान स्थान पर रोक दिया गया। बकौल इंडिया टुडे, ट्रेन को बिहारी मुस्लिम और पाकिस्तानी सैनिकों ने घेर लिया और दरवाजे बाहर से बंद कर दिए। महिलाओं के साथ बलात्कार किया। ट्रेन में बंद पुरुषों को गोलियों से भून डाला गया और सुबह होते-होते ट्रेन एक कब्रगाह में तब्दील हो चुका था।
सोहागपुर : वह गाँव जिसे पाकिस्तानी सेना के कत्लेआम ने बनाया ‘विधवाओं का गाँव’
25 जुलाई 1971 की रात। बांग्लादेश का सोहागपुर गाँव। पाकिस्तानी सेना ने उस रात 164 पुरुषों की हत्या की और 57 महिलाओं का बलात्कार किया। यह सब बंगालियों का नामोनिशान मिटा देने की रणनीति का हिस्सा था। इस गाँव को आज भी ‘विधवाओ का गाँव’ कहा जाता है। पाकिस्तानी सेना ने यहाँ बड़े पैमाने पर पुरुषों का नरसंहार किया, जिससे कई महिलाओं को विधवा का जीवन गुजरना पड़ा। 2014 में अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने इन अपराधियों में से एक को मौत की सजा सुनाई। इसके बाद कुछ महिलाओं ने अपनी आपबीती बताई कि किस तरह से उनपर अत्याचार किया गया था।
20 मई 1971 : जब पाकिस्तानी सैनिकों ने 10,000 शरणार्थियों को मार डाला
पाकिस्तानी सैनिकों ने 25 मई 1971 को अपनी क्रूरता की कहानी लोगों के खून से लिखी थी। पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे बांग्लादेश के चुकनगर गाँव में पाकिस्तानी सैनिकों ने एक बहुत बड़े नरसंहार को अंजाम दिया था। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक इस नरसंहार में भारत आने की कोशिश करने वाले 10 हजार से ज्यादा शरणार्थियों को मौत के घाट उतार दिया गया था। बताया जाता है कि घटना में भद्र नदी हजारों मासूमों के रक्तों से लाल हो गई थी। यहाँ के दलदली इलाके से लेकर मंदिरों, खेल के मैदानों, स्कूल परिसर और नदियों तक, हर जगह बेजान लाशें बिखरी पड़ी थीं।
26 मई 1971 : पाकिस्तानी सैनिकों ने 94 हिंदुओं को गोली मारी, फिर जलाया
पाकिस्तानी सैनिक मुक्ति संग्राम को दौरान अपने कट्टर इस्लामवादी सोच के चलते हिंदुओं को चुन-चुन कर मारते थे। कई दफे मुस्लिमों को चुनकर अलग कर दिया जाता था और हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया जाता था। ऐसी ही एक घटना बांग्लादेश के सिलहट जिले में घटी, जहाँ बुरुंगा गाँव के बुरुंगा हाई स्कूल में न सिर्फ 94 हिंदुओं को मार डाला गया बल्कि मौत सुनिश्चित करने के लिए जला भी दिया गया। इन्हें मारने से पहले इनके हाथ बाँध दिए गए थे। दरअसल शांति समिति का पहचान पत्र के बहाने हिंदुओं और मुसलमानों को अलग-अलग कर दिया गया था। हिंदुओं को स्कूल के कार्यालय कक्ष में ले जाया गया, जबकि मुसलमानों को एक दूसरी क्लास में रखा गया। दोनों समूहों को कलमा सिखाया गया और पाकिस्तान का राष्ट्रगान गाने को कहा गया। इसके बाद मुसलमानों को जाने दिया गया, और हिंदुओं को मार डाला गया।
मीरपुर नरसंहार : पम्प हाउस से मिले सैकड़ों कंकाल
1971 में मीरपुर में हुए कत्लेआम का पता 1991 में तब चला, जब यहाँ पंप हाउस से 70 से अधिक कंकाल और 5,000 से अधिक हड्डियाँ बरामद हुई। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार इनकी हत्या पाकिस्तानी सेना और बिहार से बांग्लादेश आकर बसे मुस्लिमों ने की थी। पाकिस्तानी सेना ने यहाँ हजारों लोगों को इस दौरान मौत की नींद सुला दिया। इनमें से कइयों के सिर काट दिए गए और उनके शवों को पंप हाउस के पास स्थित कुएँ में फेंक दिया गया।
श्रीमंगल चाय बगान नरसंहार : जब खून से लाल हो गई थी मिट्टी
1 मई, 1971 को मौलवी बाजार के श्रीमंगल उपजिला की किराए के चाय बागान में इस नरसंहार को अंजाम दिया गया था। नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी भानु हाजरा ने बताया कि उस दिन बगान से गोली की लगातार आवाज आ रही थी। इस घटना से कुछ दिन पहले उसके पिता की पाकिस्तानी जवानों ने हत्या कर दी थी। हाजरा ने बताया कि जैसे ही वह दोबारा बगान गया तो वहाँ की मिटटी खून से लाल पड़ी थी और 47 मजदूर की मौत हो चुकी थी।
डकरा नरसंहार : जहाँ हिंदुओं को चुन-चुन कर मारी गई गोली
21 मई 1971 की रात इस नरसंहार को अंजाम दिया गया था। जगह रामपाल उपजिला के पेरीखली संघ के डकरा गाँव। यहाँ पाकिस्तानी सेना के सहयोगी रज्जाब अली फकीर की रजाकार बाहिनी सेना ने 600 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया था। चुन-चुन के हिंदुओं के घरों की तलाशी ली गई और उन्हें गोली मार दी गई। सैकड़ों हिंदू दरअसल वहाँ सुंदरबन के रास्ते भारत जाने के लिए मंगला नदी के समीप इकट्ठे हुए थे। वहाँ के मुस्लिम रजाकार ने हिन्दुओं को सुरक्षित रखने का भरोसा भी दिलाया, लेकिन यह भरोसा पीठ में खंजर घौपने जैसा था। रज्जाब अपनी सेना लेकर आया और 600 हिंदुओं की हत्या कर दी।
पाकिस्तानी सेना ने सैकड़ों बुद्धिजीवियों का अपहरण किया, प्रताड़ित कर हत्या की
पाकिस्तानी सेना ने उस दौरान कई बुद्धिजीवियों की हत्या की। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, कुल मिलाकर ऐसे 1,111 लोगों की हत्या की गई थी। उनमें से 991 शिक्षाविद, 13 पत्रकार, 49 डॉक्टर, 42 वकील और कलाकार और 16 इंजीनियर थे। एक ही दिन 14 दिसंबर 1971 को करीब 200 पढ़े-लिखे और विरोध करने वाले लोगों का अपहरण कर लिया गया और उन्हें विभिन्न यातनागृह में ले जाकर मार डाला गया। इनमे से कई के क्षत-विक्षत शव कई दिन बाद बरामद किए गए।