हाथरस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शुरुआती रिपोर्ट ने बड़ा खुलासा किया है। मीडिया खबरों में ईडी की रिपोर्ट का हवाला देकर बताया जा रहा है कि इस कांड के बहाने जातीय दंगा फैलाने के लिए पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पास मॉरिशस से 50 करोड़ रुपए आए थे।
इसके अलावा ईडी ने दावा किया है कि पूरी फंडिंग 100 करोड़ रुपए से अधिक की थी। अब आगे पूरे मामले की पड़ताल की जा रही है। जानकारी के अनुसार, सोशल मीडिया से अफवाहों को फैला कर प्रदेश और देश की शांति व्यवस्था को बिगाड़ने की साजिश रची जा रही थी। हालाँकि, यूपी पुलिस की मुस्तैदी और खूफिया एजेंसियों के अलर्ट होने के कारण इस पूरी साजिश का पर्दाफाश हो गया।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली से उत्तर प्रदेश के हाथरस जाते हुए 4 संदिग्ध लोगों को मथुरा पुलिस ने 5 अक्टूबर को गिरफ्तार किया था। पड़ताल में पता चला था कि इनके लिंक पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) से हैं। टोल प्लाजा पर चेकिंग के दौरान इनकी गिरफ्तारी हुई थी। अब मथुरा पुलिस इनसे जुड़े हर पहलू पर जाँच कर रही है।
पुलिस ने इनकी पहचान उर रहमान पुत्र रौनक अली निवासी नगला थाना रतनपुरी जिला मुजफ्फरनगर; सिद्दीकी पुत्र मोहम्मद चैरूर निवासी बेंगारा थाना मल्लपुरम केरल; मसूद अहमद निवासी कस्बा व थाना जरवल जिला बहराइच व आलम पुत्र लईक पहलवान निवासी घेर फतेह खान थाना कोतवाली जिला रामपुर, के रूप में की थी।
इनमें से एक पीएफआई सदस्य जामिया का छात्र है। इसका नाम मसूद अहमद है। मसूद बहराइच जिले के जरवल रोड के मोहल्ला बैरा काजी का रहने वाला है और दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया में एलएलबी का छात्र है। वह 2 साल पहले पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की स्टूडेंट विंग कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) से जुड़ा था।
यहाँ बता दें कि इससे पहले इस मामले में खुलासा हुआ था कि विरोध प्रदर्शन की आड़ में ‘जस्टिस फार हाथरस’ नाम से रातों रात वेबसाइट तैयार हुई और वेबसाइट में फर्जी आईडी के जरिए हजारों लोग जोड़े गए। इसमें देश और प्रदेश में दंगे कराने और दंगों के बाद बचने का तरीका बताया गया। यहाँ मदद के बहाने दंगों के लिए फंडिंग की जा रही थी। जाँच एजेंसी को फंडिंग के जरिए अफवाहें फैलाने के लिए सोशल मीडिया के दुरूपयोग के भी सुराग मिले हैं।