बहराइच में माँ दुर्गा के विसर्जन जुलूस में 13 अक्टूबर को भड़की हिंसा के बाद प्रभावित क्षेत्रों में हालात अब सामान्य हो रहे हैं। पुलिस का पहरा भी काफी हद तक कम हो गया है। CCTV फुटेज, गवाहों व अन्य सबूतों के आधार पर पुलिस आरोपितों की गिरफ्तारियाँ कर रही है। पुलिस के हाथों से बेकाबू हुए हालात संभालने में PAC का बेहद अहम रोल रहा, जिसकी वजह से प्रशासन को केंद्रीय बलों की जरूरत नहीं पड़ी।
ऑपइंडिया की ग्राउंड रिपोर्ट में यह बात निकल कर सामने आई कि पुलिस का ज्यादातर फोकस इस बात पर केंद्रित रहा कि पीड़ित हिन्दुओं की व्यथा सामने न आने पाए। उनके गाँवों के रास्तों पर बैरिकेड कर दिए गए थे जबकि सोशल मीडिया पर भी हिंदूवादियों को हड़काया गया। वहीं मुस्लिम पक्ष खुल कर मीडिया इंटरव्यू देता रहा। सोशल मीडिया पर भी पुलिस इस्लामी हैंडलों के प्रति नरम रही। हालाँकि इन सबके बावजूद हिन्दू पक्ष का कहना है कि वो डरने वाले नहीं हैं और आने वाले समय में इससे भी बड़ी शोभा यात्रा निकालेंगे।
पीड़ित हिन्दुओं से मिलने की राह पर ही पहरा
अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में हमने ये पाया कि शुरुआत में पुलिस का फोकस इस बात पर ज्यादा था कि हिंसा में पीड़ित हिन्दुओं की व्यथा सामने न आने पाए। इसकी शुरुआत रामगोपाल से ही करते हैं। मेरे द्वारा उनके घर जाने के कम से कम 5 अलग-अलग दिनों व भिन्न-भिन्न समय पर किए गए प्रयास सफल नहीं हो पाए। कभी घर के ठीक बाहर मौजूद भारी फ़ोर्स ने मुझे रोक दिया तो कभी 3 किलोमीटर पहले ही सोतिया भट्टा क्षेत्र में लगे बैरिकेड से आगे नहीं जाने दिया। हमने जब इसकी वजह पूछी तो बताया गया कि ‘ऊपर’ से आदेश हैं।
रामगोपाल के बाद हमने विनोद और सत्यवान मिश्रा के भी गाँव सिपहिया प्यूली जाने के प्रयास किए तो रास्ते में पुलिस वाले मिल गए। यहाँ भी हमें रोका और आगे नहीं जाने दिया गया। तीसरी जगह गौरिया घाट थी, जहाँ प्रतिमाओं का विसर्जन होना था। वहाँ भी जाने के क्रम में खूब रोकटोक हुई। महसी बाजार के निवासी आदित्य मिश्रा ने ऑपइंडिया को जैसे-तैसे छिप कर इंटरव्यू दिया भी, तो अगले ही दिन उनके घर पुलिस पहुँच गई और गिरफ्तारी के बाद चालान कर जेल भेज दिया गया। बंद कैमरे पर चोटिल विनोद मिश्रा ने भी हमें बताया उन पर चुप रहने का दबाव है। तिवारी का पुरवा की तरफ जाने में भी कमोबेश यही दिक्क्तें झेलनी पड़ीं।
कई ऐसे हिन्दू भी रहे, जिन्होंने खुद को हिंसा पीड़ित बता कर हमसे फोन नंबर शेयर किया था। इन्होने अगले दिन या थोड़ी देर बाद मिलने का वादा किया था। हालाँकि बाद में उनको कई बार कॉल करने के बावजूद उनके फोन नहीं उठे। जब हम दिव्यांग पीड़ित सत्यवान मिश्रा का इंटरव्यू कर रहे थे, तब उनके परिवार के ही सदस्य विनोद मिश्रा के मोबाइल नंबर पर किसी की कॉल भी आई और उनको मीडिया से दूर रहने के लिए कहा गया। मीडिया से दूरी बनाने के लिए आदित्य मिश्रा पर भी दबाव बनाया गया है।
हालाँकि इसके ठीक उलट मुस्लिम पक्ष खुद को पीड़ित बताते हुए लगातार इंटरव्यूदेता रहा। उनके द्वारा दुकानों से सामान निकालने से ले कर घरों के हिस्से खुद तोड़े जाने के एक-एक पल को बाकायदा सभी चैनलों पर बिना आपत्ति के लाइव प्रसारित किया गया। नथुआपुर से महसी के बीच लगभग 8 किलोमीटर की दूरी में हमें तमाम मुस्लिम परिवार पूरी तरह से भयमुक्त हो, बिना किसी दबाव के मीडिया में इंटरव्यू देते मिले। इसी दोहरे रवैये की वजह से शुरुआत में हिंसा का एकतरफा पीड़ित मुस्लिम पक्ष और हमलावर के तौर पर हिन्दुओं को साबित करने की साजिश रची गई थी।
सोशल मीडिया पर भी हिंदूवादी ही हड़काए गए
बहराइच प्रशासन का दोतरफा रवैया सिर्फ जमीनी स्तर पर ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी साफ देखने को मिला। उन तमाम हैंडलों को बहराइच पुलिस द्वारा एक्शन लेने की धमकी दी गई, जिन्होंने या तो हिन्दुओं की पीड़ा दिखाई या मुस्लिम पक्ष के कारनामों को उजागर करना चाहा। यह धमकी ऑपइंडिया और पांचजन्य सहित कई अन्य संस्थानों को मिली। तमाम चश्मदीदों के बयानों के बावजूद मस्जिद से हमले के एलान की बात को सिरे से नकारने वाली पुलिस ने तो दैनिक जागरण को नोटिस भी जारी करने का फरमान सुना डाला। हिंदूवादी लोगों और संस्थानों से हर ट्वीट और हर शब्द का सबूत भी माँगा गया।
वहीं दूसरी तरफ द वायर जैसी संस्थाएँ अपने मनमाफिक खबरों को परोसती रहीं। एकतरफा हिन्दुओं को ही दोषी बताने वाले मुस्लिमों के इंटरव्यू पर बहराइच पुलिस ने न तो कोई आपत्ति जताई और न ही उनसे सबूत माँगा। गिरफ्तारी के बाद अपने परिजनों को बेगुनाह बताती मुस्लिम महिलाओं के बयानों के बीच प्यार भरे कमेंट कर के किसी बेगुनाह के साथ अन्याय न होने देने जैसा भरोसा भी दिया जाता था। हालत तो यहाँ तक पहुँच गए थे कि बहराइच पुलिस ने आतंकियों को वकील दिलाने वाली संस्था जमीयत को शाँति दूत समझा और उनके उर्दू भाषा में लिखे पत्रों को आधिकारिक तौर पर शेयर किया।
कुछ ऐसा ही हुआ था, जब सोशल मीडिया में खबर उड़ी कि रामगोपाल मिश्रा के शव के साथ बर्बरता हुई थी। तब नाखून आदि उखाड़ लेने का दावा कई जगहों पर हुआ जिस पर फ़ौरन ही बहराइच पुलिस एक्टिव हुई और इसे भ्रामक बताते हुए खंडन जारी कर दिया। हालाँकि इस खंडन के बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आई। इसके उलट जब मुस्लिम पक्ष अपने घरों को बेरहमी से जलाने और महिलाओं संग छेड़खानी आदि करने जैसे गंभीर आरोप बिना सबूत के मढ़ रहे थे, तब बहराइच पुलिस की तरफ से कोई खंडन जारी नहीं हुआ।
कितना भी दबा लो, शोभा यात्रा निकलती रहेगी
पहले मज़हबी हमला और अब तमाम प्रकार के दबाव झेल रहे महसी क्षेत्र के पीड़ित हिन्दुओं का साफ ऐलान है कि वो अपनी धार्मिक भावनाओं पर कुठाराघात नहीं होने देंगे, भले ही इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े। विनोद मिश्रा, सत्यवान, आदित्य और मारुति नंदन आदि ने साफ़ तौर पर कहा कि ये हमला सिर्फ इसलिए हुआ, जिससे हिन्दू समाज अपनी शोभा यात्रा निकालना बंद कर दे। इन सभी ने ‘मुस्लिम इलाका’ शब्द पर आपत्ति जताते हुए कहा उन्हें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े, लेकिन वो अगले साल भी आने वाले हर साल वो शोभा यात्रा निकालते रहेंगे।
पीड़ित हिन्दुओं ने एक स्वर में एलान किया है कि ये तमाम सनातनी परम्पराएँ उनके पूर्वजों द्वारा एक धरोहर के तौर पर उनको सौंपी गई हैं। इन परम्पराओं पर कुठाराघात कतई सहन नहीं किया जाएगा, भले ही उनका किसी भी स्तर पर कितना ही दमन क्यों न हो। यहाँ तक कि पीड़ितों ने खुद को रामगोपाल की तरह बलिदान देने के लिए भी तैयार बताया। वहीं रामगोपाल मिश्रा की पत्नी ने भी एलान किया है कि वो अपने पति के हत्यारों को मृत्युदंड की सजा दिलाने के लिए अंतिम साँस तक संघर्ष करेंगी।
हिंसा काबू करने में PAC की भूमिका अहम, नहीं उतारने पड़े केंद्रीय बल
बहराइच हिंसा की शुरुआत में बहराइच पुलिस पर लापरवाही बरतने और लॉ एन्ड ऑर्डर न संभाल पाने के आरोप लगे हैं। ये आरोप मृतक रामगोपाल के परिजनों ने भी सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिल कर लगाए। कार्रवाई के तौर पर तत्काल ही चौकी इंचार्ज, थाना प्रभारी और डिप्टी एसपी को सस्पेंड कर दिया गया। कुछ ही घंटों बाद एडिशनल एसपी को भी मुख्यालय अटैच कर दिया गया। हालत बिगड़ने के बाद UP पुलिस की ही एक विंग PAC ने मोर्चा संभाला था।
PAC ने कुछ ही घंटों में स्थिति को संभाल लिया था। कई मौकों पर हमें सीनियर आईपीएस अजय कुमार न सिर्फ घटनास्थल महराजगंज बल्कि आसपास के गाँवों में भी दल-बल के साथ गश्त करते मिले। STF प्रभारी आईपीएस अमिताभ यश के आने से भी सरकारी मशीनरी काफी एक्टिव हुई थी। इसी सामूहिक सक्रियता से 13 अक्टूबर को भड़की हिंसा उसी दिन रुक गई। यही वजह थी कि केंद्रीय बलों को भी उतारने की जरूरत नहीं पड़ी। थानों और जिले में तमाम नए अधिकारी तैनात कर दिए गए हैं। वो भी आरोपितों को चिन्हित कर के आगे की कानूनी कार्रवाई में जुटे हुए हैं।