28 साल पहले हुई 19 साल की नन सिस्टर अभया की संदिग्ध मौत के मामले में फैसले की घड़ी आ गई है। मंगलवार (दिसंबर 22, 2020) को तिरुवनंतपुरम में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) की अदालत फैसला सुनाएगी। केरल के कोट्टायम में सेंट पायस कॉन्वेंट (Pious X Convent) में सिस्टर अभया का शव कुएँ से मिला था। ख़ास बात यह है कि इतने वर्षों तक चर्च भी इस अपराध के आरोपितों को निर्दोष बताती रही।
सेंट पायस कॉन्वेंट (Pious X Convent) के कुएँ से सिस्टर अभया 27 मार्च 1992 को मृत मिली थी। इसी पायस कॉन्वेंट में पढ़ने वाली बिना थॉमस को सिस्टर अभया नाम भी दिया गया। शुरुआत में मामले की जाँच स्थानीय पुलिस और राज्य अपराध शाखा ने की थी, जिसमें कहा गया था कि अभया ने आत्महत्या की है और फाइल को बंद कर दिया गया।
लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता जोमोन पुथेनपुराकल के संघर्ष और कानूनी लड़ाई के बाद 29 मार्च, 1993 को इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया। CBI ने वर्ष 2008 में कोट्टूर, पूथरुकायिल और सेफी को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था।
इस हत्या को आत्महत्या साबित करने के अगले दो दशकों तक इस केस में कोई नई जानकारी नहीं आई। इसके बाद सीधे 27 साल बाद इस मामले की फिर से सुनवाई शुरू हुई और एक-एक कर गवाह मुकरने लगे। सिस्टर अभया हत्या मामले में अहम फैसले से एक दिन पहले ही इस केस के मुख्य गवाह राजू उर्फ अदकाका राजू ने एक समाचार चैनल को बताया कि उसे पुलिस अधिकारियों द्वारा इस अपराध के लिए कई दिनों तक प्रताड़ित किया गया।
दरअसल, सिस्टर की हत्या के दिन राजू, जो कि एक छोटा-मोटा चोर था, वह बिजली का सामान चुराने कॉन्वेंट में घुसा था और हादसे के दौरान कॉन्वेंट परिसर में मौजूद था। बाद में, राजू ने कथित तौर पर सीबीआई अधिकारियों को बताया कि उसने रहस्यमय परिस्थितियों में कॉन्वेंट में दो पादरी (प्रीस्ट) और एक नन को देखा। उसने बताया, “मुझे बहुत पीड़ा हुई। मुझे अपराध कबूलने के लिए कहा गया, लेकिन मैंने इनकार कर दिया। मैं चाहता हूँ कि सच्चाई सामने आए।”
सीबीआई ने इस मामले में कैथोलिक पादरी थॉमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी पर चार्जशीट दायर की। इन लोगों पर हत्या, सबूत नष्ट करने, आपराधिक साजिश और अन्य आरोप लगाए गए। एक अन्य आरोपित फादर जोस पूथरुकायिल को पिछले साल अदालत ने सबूत न मिलने के कारण छोड़ दिया था।
इस मामले में वर्ष 2007 में CBI ने तीनों आरोपितों का NARCO टेस्ट भी किया और कहा गया कि इसकी रिपोर्ट के साथ भी छेड़छाड़ की गई। इसके बाद, आखिरकार वर्ष 2008 में आरोप-पत्र दायर किया गया और नवंबर, 2008 में तीनों आरोपितों को गिरफ्तार किया गया। हालाँकि, एक ही माह बाद उन्हें जमानत भी मिल गई।
क्या हुआ था 28 साल पहले
सीबीआई के आरोप-पत्र के अनुसार, घटना के दिन सिस्टर अभया एग्ज़ाम के लिए सुबह के चार बजे उठी और पानी लेने किचन में गईं। अभया ने दो पादरियों और एक नन- थॉमस कुट्टूर, जोस पूथरुकायिल, और सिस्टर सेफी को ‘आपत्तिजनक स्थिति’ में पाया। सिस्टर अभया ये बात किसी को बता न दें, इस डर से तीनों ने मिलकर उस पर हमला किया और सिस्टर अभया बेहोश हो गई। इसके बाद तीनों ने मिलकर उसे कुऍं में डाल दिया।
घटना के समय फादर थॉमस ने कथित तौर पर रसोई में उसका गला घोंट दिया, जबकि तीसरे आरोपित ने उस पर कुल्हाड़ी से वार किया। इसके बाद फादर जोस सहित तीनों लोगों ने फिर उसे एक कुएँ में फेंक दिया, जबकि वह तब भी जिन्दा थी। सिस्टर अभया की डूबने से मौत हो गई। हमले के समय एक पानी की बोतल किचन में गिर गई थी, उनके बाहर निकलते समय दरवाजे के नीचे एक कपड़ा मिला था और रसोई में विभिन्न स्थानों पर पाए गए अभया के चप्पल सभी सबूत का हिस्सा बने।
इस भयावह केस की चर्चा के गर्म रहने के बावजूद, चर्च भी यह कहते हुए आरोपितों के साथ खड़ी रही कि वे निर्दोष थे। CBI ने 177 गवाहों की भी एक सूची बनाई थी लेकिन अगस्त, 2019 में सुनवाई के पहले दिन ही पता चला कि जिन तीन गवाहों को बुलाया गया, उनमें से दो की मौत हो चुकी है जबकि तीसरा गवाह मुकर गया।
जिन दो गवाहों को दूसरे दिन बुलाया गया, उनमें से एक की मौत हो चुकी थी, और दूसरा गवाही देने से ही मुकर गया। सिस्टर अभया के माँ-बाप थॉमस और लीलाम्मा, दोनों की वर्ष 2016 में मौत हो चुकी है।
सिस्टर अभया के साथ की 67 ननों ने केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के करुणाकरण के पास अपील की कि इस मौत को हत्या मानकर इसकी जाँच की जाए। सबसे पहले, केरल पुलिस ने मामले की जाँच की और इसे आत्महत्या करार दिया। बाद में क्राइम ब्रांच ने भी यही बात कही। भारी हंगामे के बाद यह मामला फिर सीबीआई को सौंप दिया गया था। पिछले महीने केंद्र सरकार ने सीबीआई एसपी नंदकुमार नायर के साथ कई अन्य लोगों की भी सेवा को बढ़ाया था, जिन्होंने इस मामले की जाँच की थी।