इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी फर्म इन्फ़ोसिस के शेयर मूल्य में आज (22 अक्टूबर, 2019 को) एक दिन में 17% की कमी आई है। एक विसलब्लोअर की शिकायत के बाद हुए इस वाकये में कंपनी के बाजार मूल्य (मार्केट कैप) में कुल ₹53,541 करोड़ की कमी आई है (टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार), और सुबह ₹643.3 पर खुले शेयर दिन के कारोबार का अंत होते-होते ₹638.3 पर बंद हुए। अप्रैल 2013 के बाद से यह सबसे बड़ी गिरावट है। अब कंपनी का मूल्य ₹2,76,300.08 है।
इस गिरावट के पीछे कारण जो विसलब्लोअर की शिकायत है, उसमें आरोप लगाया गया है कि कंपनी के दो चोटी के कार्यकारी अधिकारी (एग्जीक्यूटिव) अल्पकालिक कमाई और मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए अनैतिक (अनएथिकल) तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस आरोप से हुए नुकसान के चलते सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही स्टॉक एक्सचेंजों की सबसे बड़ी गिरावट वाली कंपनियों की फेहरिस्त में शुमार हो गई है। अगर बेचे गए शेयरों की बात करें तो सेंसेक्स (BSE) पर 117.7 लाख और निफ्टी (NSE) पर इन्फ़ोसिस के 9 करोड़ शेयरों की बिकवाली हुई।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक खुद को ‘एथिकल एम्प्लॉईज़’ कहने वाले कंपनी के ही कर्मचारियों के एक समूह ने इन्फ़ोसिस के सीईओ सलिल पारेख और सीएफ़ओ नीलांजन रॉय पर अल्पकालिक कमाई और मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए अनैतिक (अनएथिकल) तरीकों के प्रयोग का आरोप लगाया था। कल (सोमवार, 22 अक्टूबर, 2019 को) इन्फ़ोसिस ने मुद्दे पर बयान जारी करते हुए कि विसलब्लोअर की शिकायत को कम्पनी के नियमों के अनुसार ऑडिट समिति के सामने रख दिया गया है, और उस पर कार्रवाई कंपनी की विसलब्लोअर पॉलिसी के अनुसार की जाएगी।
वहीं आज कंपनी के चेयरमैन नंदन नीलकेणी ने एक दूसरा बयान जारी करते हुए कहा कि कंपनी की ऑडिट कमेटी विसलब्लोअर की शिकायत की एक स्वतंत्र जाँच करेगी। ऑडिट कमेटी ने स्वतंत्र आंतरिक ऑडिट बॉडी EY के साथ सलाह मशविरा शुरू कर दिया है। इसके अलावा स्टॉक एक्सचेंजों को इंगित कर दिए गए बयान में नीलकेणी ने लॉ फर्म शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी को भी एक स्वतंत्र जाँच के लिए नियुक्त किए जाने की बात भी कही है।
विवादों के साथ हाल के सालों में कंपनी का यह पहला वास्ता नहीं है। इसके पहले कंपनी में सबसे ताकतवर माने जाने वाले सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने 2017 में तत्कालीन सीईओ और एमडी विशाल सिक्का के खिलाफ कम्पनी बोर्ड के कई सदस्यों को पत्र लिखकर मोर्चा खोल दिया था। इस रस्साकशी का अंत सिक्का के इस्तीफे से हुआ।