केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोपित प्रोफेसर डॉ. शहरयार अली की अग्रिम जमानत याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है। जस्टिस जेजे मुनीर की एकल पीठ ने प्रोफेसर की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि उनके द्वारा पोस्ट की गई सामग्री विभिन्न समुदायों के बीच घृणा को बढ़ावा देती है।
हाई कोर्ट ने कहा कि एक प्रोफेसर जो इतिहास विभाग का विभागाध्यक्ष है, उसके द्वारा दो समुदाय के बीच घृणा फैलाने वाले आचरण के लिए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। इसे अभिव्यक्ति की आजादी नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने ये भी कहा कि फेसबुक पर पोस्ट की गई सामग्री को सह आरोपित हुमा नकवी ने भी शेयर किया था, जबकि वास्तव में वह पोस्ट विभिन्न समुदायों के बीच द्वेष या घृणा को बढ़ावा देने या सभी आशंका को बढ़ावा दे सकती है।
बता दें कि केंद्रीय मंत्री ईरानी पर आपत्तिजनक पोस्ट किए जाने के संबंध में भारतीय जनता पार्टी के एक जिला मंत्री ने अली के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। उनके विरुद्ध आईपीसी की धारा 505 (2), आईटी एक्ट की धारा 67 ए के तहत प्राथमिकी दर्ज हुई थी।
अली के वकील ने कोर्ट में जमानत पाने के लिए कहा कि उनका फेसबुक अकाउंट हैक कर लिया गया था। उन्हें उस पोस्ट के लिए खेद है जो स्मृति ईरानी के संबंध में लिखा गया। आरोपित ने यह भी कहा कि भाजपा के जिला मंत्री के कहने पर उन्हें फँसाया जा रहा है। वह पोस्ट के संबंध में माफी माँग चुके हैं। कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर न ही अकाउंट हैक होने की बात है और न ही माफी माँगने के लिए कोई पोस्ट है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, मामले में पैरवी कर रहे वकील शशि शेखर तिवारी ने कहा कि फेसबुक पोस्ट में केंद्र सरकार की एक मंत्री और राजनीतिक दल की वरिष्ठ नेता के बारे में अश्लील टिप्पणी की गई है। एक प्रोफेसर से ऐसी पोस्ट करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। दो समुदाय के बीच घृणा फैलाने की कोशिश क्षम्य नहीं है। वह अग्रिम जमानत पाने के हकदार नहीं है।