जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के 2 महीने बाद भी इस पर होने वाली चर्चा पर विराम नहीं लगा है। अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में कुलभूषण जाधव का केस लड़ने वाले भारत के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे का कहना है कि अनुच्छेद-370 एक ग़लती थी, जिससे निजात पाना बेहद ज़रूरी था। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है, न सिर्फ़ इधर वाला कश्मीर बल्कि POK भी भारत का ही है।
इंडिया टुडे से हुई बातचीत में उन्होंने कहा, “मैं काफ़ी लंबे समय से अनुच्छेद-370 के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता रहा हूँ, ये एक बड़ी ग़लती थी।” उन्होंने कहा कि इसे एक झटके में हटाना ही सही फ़ैसला था, अब अगर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो वो ही तय करेंगे। हरीश साल्वे ने बुधवार (2 अक्टूबर, 2019) को लंदन में इंडियन हाईकमीशन में बात की।
इसके अलावा, उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम वाले मामले में ब्रिटेन कोर्ट के द्वारा भारत के पक्ष में सुनाए गए फ़ैसले की भी तारीफ़ की। उनका कहना था कि पाकिस्तान के द्वारा इस मामले पर अब तक जो दावा किया जा रहा था, वो पूरी तरह से ग़लत था। अब अगर पाकिस्तान इस पर फिर से अपील करना चाहता है तो वो कर सकता है।
ग़ौरतलब है कि ब्रिटेन के एक हाई कोर्ट ने हैदराबाद के निजाम के 3.5 करोड़ पाउंड के फंड को लेकर दशकों से चल रहे मामले में बुधवार (2 अक्टूबर, 2019) को भारत के पक्ष में फ़ैसला सुनाया। देश के विभाजन के बाद हैदराबाद के निज़ाम उस्मान अली ख़ान ने 1948 में लंदन के नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक में 10 लाख पाउंड (क़रीब 8.87 करोड़ रुपए) जमा किए थे। इस पर दावे को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले 70 सालों मुक़दमा चल रहा था। अब यह रक़म बढ़कर करीब 35 मिलियन पाउंड (करीब 306 करोड़ रुपए) हो चुकी है।
रुपए के मालिकाना हक को लेकर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चल रही इस क़ानूनी लड़ाई में निज़ाम के वंशज प्रिंस मुकर्रम जाह और उनके छोटे भाई मुफ्फखम जाह भारत सरकार के साथ थे। हैदराबाद के तत्कालीन निज़ाम ने 1948 में ब्रिटेन में पाकिस्तान के उच्चायुक्त को ये रक़म भेजी थी। फ़िलहाल, यह रक़म लंदन के नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक में जमा है।
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा गया कि यूके की अदालत ने पाकिस्तान के इस दावे को ख़ारिज कर दिया है कि इस रक़म का मक़सद हथियारों की शिपमेंट के लिए पाकिस्तान को भुगतान के रूप में किया गया था। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने कई बार यह कोशिश की थी कि यह मामला किसी तरह से बंद हो जाए, लेकिन उसके मंसूबे पर पानी फेरते हुए लंदन की अदालत ने उसके हर प्रयास को विफल कर दिया।