उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन अतीक अहमद की कहानी कल (15 अप्रैल 2023) सरेआम खत्म हो गई। दशकों तक लोगों के जहन में डर पैदा करने वाले अतीक को हमलावरों ने पुलिस और मीडिया दोनों के सामने मौत के घाट उतारा। उसके सीधे भेजे में गोली दागी गई जिसके बाद अतीक फौरन जमीन पर ढेर हो गया।
अतीक ने 44 साल तक अपना आतंक फैलाया था। 17 साल की उम्र में तो उसके ऊपर हत्या का आरोप लग चुका था। इसके अलावा रंगदारी वसूली उसके लिए सामान्य चीजें थी। उसकी खतरनाक हिस्ट्रीशीट होने के बावजूद पिछली सरकारों में उसे राजनैतिक संरक्षण मिला।
गेस्ट हाउस हत्याकांड
इसी संरक्षण का नतीजा था कि वह 1995 के गेस्ट हाउस कांड में मायावती पर हमला करने से भी नहीं चूँका। इस संबंध में तो मायावती ने माफिया अतीक का नाम कई बार मंचों से भी लिया। उन्होंने बताया कि अतीक ने ही उन्हें मारने की साजिश रची थी। कहा जाता है कि अगर मायावती के साथ उस दिन दो कनिष्ठ पुलिस अधिकारी नहीं होते तो गेस्ट हाउस में घुसी भीड़ कुछ भी कर सकती थी। घटना के अगले दिन मायावती ने प्रदेश की सीएम के तौर पर शपथ ली थी।
राजू पाल हत्याकांड के बाद बढ़ी मुश्किलें
अतीक के राजनैतिक करियर की बात करें तो उसकी शुरुआत 1989 से हुई थी। वो कभी निर्दलीय, कभी सपा और कभी अपना दल से चुनावी मैदान में उतरा और इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा से 5 बार विधायक व 2004 में फूलपुर से सांसद बना।
जब उसके सांसद बनने पर इलाहाबाद वाली विधायक की सीट खाली हुई तो उसने अपनी ताकत का इस्तेमाल करके अपने भाई अशरफ को विधायकी लड़वाई। हालाँकि, राजू पाल से मुँह की खाने के बाद दोनों भाई बिदक गए और कुछ ही दिन में एमएलए राजू की हत्या करवा दी गई। उमेश पाल जिन्हें अतीक के गुर्गों ने फरवरी 2023 में मौत के घाट उतारा, वो इसी केस के गवाह थे। उन्हीं की गवाही पर अतीक अहमद समेत सभी आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई थी।
बसपा ने खुंदस में कसी अतीक पर नकेल, योगी सरकार ने डर निकाला
2005 में हुई एमएलए राजू की हत्या से पहले अतीक का नाम लखनऊ के चर्चित गेस्ट हाउस कांड में आया था। अतीक इस कांड का मुख्य आरोपित था। उस पर गेस्ट हाउस कांड की साजिश रचने का आरोप था। सीएम बनने के बाद मायावती ने उसे लंबे समय तक माफ नहीं किया था। जब-जब मायावती की सरकार आई उन्होंने अतीक पर एक्शन लिया। माफिया के खिलाफ शिकंजा कसना, उसकी संपत्तियों पर कार्रवाई होना बसपा काल में शुरू हो गया था।
हालाँकि अतीक का जो डर गायब करने का काम था वो 2017 के बाद हुआ, जब योगी सरकार आई और माफियाओं के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति पर प्रतिबद्ध दिखी। अतीक 2019 के बाद से लगातार सलाखों के पीछे रहा। वहीं 2005 के राजू पाल हत्याकांड में 2022 में जाकर आरोप तय हुए।
बसपा में शामिल अतीक का परिवार
इस दौरान अतीक के साथ मायावती की नाराजगी भी हल्की होती दिखी। खुद बसपा प्रमुख ने आगे आकर उसके परिवार को संरक्षण दे दिया। 6 जनवरी 2023 को अतीक का परिवार बसपा में शामिल हुआ। बताया जाता है कि मायावती के निर्देश पर अतीक का परिवार बसपा के साथ जुड़ा था। जिसके कुछ समय बाद बसपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य घनश्याम चंद्र खरवार ने शाइस्ता परवीन को प्रयागराज से मेयर का अपना प्रत्याशी भी बना दिया।
मिट्टी में मिला अहमद खानदान
इससे पहले बसपा के साथ अतीक के परिवार का करियर फिर फलता-फूलता उन्होंने उमेश पाल हत्याकांड अंजाम दे दिया और फिर योगी सरकार ने विधानसभा में माफियाओं को मिट्टी में मिलाने का अभियान शुरू किया। हत्याकांड के कुछ दिन बाद ही अतीक के गुर्गे मारे जा चुके थे। अतीक की भी हालत पस्त थी। उसने पुलिस के सामने अपने आतंकी कनेक्शन खोलने शुरू कर दिए थे। पुलिस को बताने लगा था कि कैसे वो डी कंपनी से हथियार मंगाता था, लश्कर से उसके संबंध थे… मगर तभी असद का एनकाउंटर हो गया और खबर सुनते ही अतीक टूट गया।
इसके बाद अतीक ने फिर हेकड़ी दिखाई और यूपी एसटीएफ के अधिकारियों को धमकी दी कि वो जेल से निकलने के बाद बताएगा। हालाँकि इस धमकी के एक दिन बाद ही उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। उसके साथ उसके 44 साल पुराने आतंक का भी अंत हो गया जो उसने 1979 में अमीर बनने की लालच में शुरू किया था।
उसके अब्बा टांगा चालक थे लेकिन उसमें अमीर होने का ऐसा भूत था कि वो उसने न कभी वसूली करने से पहले कुछ सोचा और न हत्याएँ करवाते टाइम। रिपोर्ट्स की मानें तो अतीक पर 101 से ज्यादा मामले दर्ज थे। इनमें राजूपाल हत्याकांड और गेस्ट हाउस हत्याकांड सबसे चर्चित थे। राजूपाल को मारकर अतीक-अशरफ फूले नहीं थे लेकिन आज यही केस है जिनके कारण अतीक, उसका भाई, बेटा, गुर्गे मिट्टी में मिले। वहीं माफिया की हत्या के पीछे का कारण क्या है ये जाँचने में पुलिस अब भी जुटी है।