दीनी तालीम के नाम पर चल रहे मदरसे कैसे प्रताड़ना के केंद्रों में बदल चुके हैं इसकी पुष्टि करती हुई एक और घटना सामने आई है। घटना राजस्थान के भरतपुर की है। यहॉं के एक मदरसे से तीन बच्चे मौलवी की रोजाना की पिटाई से तंग आकर भाग गए। पुलिस को संदिग्ध हालात में मिले। एक बच्चे के पैर में जंजीर बॅंधी दी। शुरुआती जॉंच से पता चला है कि बच्चा मदरसा से भाग न जाए इसलिए मॉं ने ही मौलवी से कह जंजीर बॅंधवाई थी।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार भरतपुर के मछली मोहल्ला स्थित मदरसे में रोज-रोज की पिटाई से परेशान होकर 3 बच्चे मंगलवार (फरवरी 04, 2020) सुबह भाग गए। तीनों बच्चों की उम्र क्रमश: 12,13 और 14 साल थी। पुलिस को जयपुर-आगरा हाइवे स्थित विश्व प्रिय शास्त्री पार्क में ये बच्चे संदिग्ध हालात में घूमते हुए मिले। पुलिस को इनमें से एक बच्चे के पैर में लोहे की जंजीर बँधी मिली। वक्फ बोर्ड से मान्यता प्राप्त इस मदरसे में छोटे बच्चों के लिए आवासीय सुविधा भी है। ये तीनों बच्चे भी वहीं रहकर पढ़ाई कर रहे थे।
जाँच में पुलिस को पता चला कि पिटाई के डर से बच्चे भाग न जाएँ, इस वजह से बच्चे की माँ ने ही मौलवी से कहकर उसके पैर में लोहे की जंजीर बँधवाई थी। मौलवी यूसुफ ने हालॉंकि मदरसे में बच्चों की पिटाई की बात को गलत बताया है। उसने कहा कि बच्चों को मदरसे से भागने से रोकने के लिए उनके पैरों में जंजीर बाँधी गई थी।
इस घटना के सामने आने के बाद भरतपुर जिला प्रशासन ने तीनों बच्चों को बाल सुधार गृह में भिजवाया है। साथ ही, समाज कल्याण विभाग के उप निदेशक को मामले की जाँच के आदेश दिए गए हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में बताया गया है कि ये तीनों बच्चे मदरसे में नहीं बल्कि सरकारी मांटेसरी स्कूल में पढ़ना चाहते हैं। बच्चे के पैरों में बँधी जंजीर को खोलने के लिए मदरसे के संचालक से चाबी मँगवाई गई।
गौरतलब है कि मुस्लिम समाज आज भी मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली को छोड़कर दीनी तालीम को ही महत्व देना पसंद करता है। मदरसे से भागे हुए इन बच्चों की कहानी ऐसी पहली घटना नहीं है। सितंबर के महीने में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था जब भोपाल के एक मदरसे में बच्चा जंजीर से बँधा हुआ मिला था।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में सितंबर 15, 2020 को पुलिस ने दो बच्चों को प्रताड़ना से मुक्त कराते हुए एक मदरसे के संचालक और उसके सहायक को गिरफ्तार किया था। इनमें से एक बच्चे की उम्र 10 साल और दूसरे की 7 साल थी। इस मदरसे में 10 साल का बच्चा चेन से बॅंधा था और उसे आजाद कराने के लिए गैस कटर का इस्तेमाल करना पड़ा था।
ऐसा केवल भारत में ही नहीं होता है। अफ्रीकी देश सेनेगल, जहॉं की डेढ़ करोड़ की आबादी में से 90 फीसदी लोग मुस्लिम हैं, वहॉं के मदरसों के अमानवीय बर्ताव सुन देह में सिहरन पैदा हो जाती है। सेनेगल में मदरसों को डारा कहते हैं। उनमें पढ़ने वाले बच्चों को तालिब और पढ़ाने वाले मौलवी को माराबू कहते हैं। डारा में कुरान के अलावा शराफत भी सिखाई जाती है। यूॅं तो शराफत का मतलब विनम्रता होता है, लेकिन डारा शराफत के नाम पर बच्चों को भीख मॉंगने के लिए मजबूर करते हैं।
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक सेनेगल में करीब 1 लाख तालिब भीख मॉंग रहे हैं। ऐसे ज्यादातर तालिब की उम्र 12 साल से कम है। कुछ तो 4 साल के ही हैं। इसी संस्था ने 2010 के अपने अध्ययन में अनुमान लगाया था कि सेनेगल के मदरसों में पढ़ने वाले करीब 50 हजार बच्चे भीख मॉंग रहे हैं। यानी करीब 10 साल में इनकी संख्या दोगुनी हो चुकी है।
शिक्षा की इस मदरसा पद्दति से निपटने के भारत सरकार कई प्रयास करती आ रही हैं। उत्तराखंड राज्य में मुस्लिमों एवं रोजगार सम्बन्धी चहुमुखी विकास के लिए भी सरकार द्वारा ’15 सूत्रीय कार्यक्रम’ जारी किए गए थे। लेकिन प्रश्न यह है कि समाज जब अपनी मजहबी कट्टरता से स्वयं बाहर नहीं आना चाहता है तो फिर कोई और आकर हमारी मदद कैसे कर सकता है?
यही कारण है कि आज भी देश के युवाओं का एक बड़ा हिस्सा पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी अनपढ़ ही रह जाता है। जाहिर सी बात है कि एक ओर जहाँ मुख्यधारा की शिक्षा में विज्ञान पर बात हो रही है, बच्चे प्रतिस्पर्धा के माहौल के बीच रोजाना कुछ नया सीख रहे हैं, ऐसे में मदरसे में सदियों पुरानी तालीम लेकर वह बच्चा समाज से आखिर किस तरह से जुड़ पाएगा? उसे तो यह अवसर ही नहीं दिया जा रहा है कि वह अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके।