बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार (18 सितंबर 2024) को कहा कि यदि गणेश उत्सव के दौरान स्वीकार्य ध्वनि सीमा से अधिक लाउडस्पीकर बजाना हानिकारक है तो यह ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के जुलूस के दौरान भी इस स्तर पर लाउडस्पीकर बजाना हानिकारक है। मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की दो न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
इन जनहित याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं ने ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के जुलूसों के दौरान ‘डीजे’, ‘डांस’ और ‘लेजर लाइट्स’ के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की माँग की थी। उन्होंने बॉम्ब हाई कोर्ट के पीठ से आग्रह किया था कि वह नगर निकायों और पुलिस को निर्देश जारी बेहद ऊँची आवाज के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के उपयोग की अनुमति ना दे।
याचिकाकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि ना तो मुस्लिमों की दीनी किताब कुरान में ही और न ही हदीस में ही इस उत्सव के लिए डीजे सिस्टम और लेजर लाइट के उपयोग के लिए का गया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ओवैस पेचकर ने अदालत से अनुरोध किया कि वह अपने पहले के आदेश में ईद को भी शामिल करें।
कार्यवाही के दौरान पीठ ने पिछले महीने गणेश उत्सव से पहले पारित अपने पहले के आदेश का हवाला दिया। अपने पहले के आदेश में पीठ ने त्योहारों के दौरान मान्य सीमा से अधिक शोर करने वाले ध्वनि प्रणालियों और लाउडस्पीकरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने पर जोर दिया था। बता दें कि स्वीकार्य सीमा ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 के तहत दी गई है।
ओवैस पेचकर की बात पर पीठ ने कहा कि आदेश में ‘सार्वजनिक उत्सवों’ का उल्लेख किया गया था। याचिकाओं का निपटारा करते हुए अदालत ने कहा, “यदि यह गणेश चतुर्थी के लिए हानिकारक है तो यह ईद के लिए भी हानिकारक है।” इस बीच लेजर लाइट के इस्तेमाल और इसके कथित नुकसान के बारे में दो जजों की बेंच ने याचिकाकर्ताओं से अपने दावे के समर्थन में वैज्ञानिक सबूत पेश करने को कहा।
पीठ ने यह साबित करने के लिए शोध कार्य की माँग की कि ऐसी लाइटों का इंसानों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। बॉम्बे हाई कोर्ट की पीठ ने कहा, “आपने अपना शोध क्यों नहीं किया? जब तक यह वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं हो जाता कि इससे मनुष्यों को नुकसान होता है, हम ऐसे मुद्दे पर कैसे निर्णय ले सकते हैं?”
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाओं से अदालतों को उनकी दलीलों पर प्रभावी निर्देश देने में मदद मिलनी चाहिए, क्योंकि उनके पास सभी मुद्दों पर विषय वस्तु विशेषज्ञता नहीं है। पीठ ने कहा, “यही समस्या है। जनहित याचिका दायर करने से पहले आपको बुनियादी शोध करना चाहिए। आपको प्रभावी निर्देश देने में अदालत की सहायता करनी चाहिए। हम विशेषज्ञ नहीं हैं। हम लेजर का ‘एल’ नहीं जानते।”
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
संयोग से इसी प्रकार की एक याचिका पर 17 सितंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों, समारोहों और त्योहारों के दौरान होने वाले कार्यक्रमों में लाइट लेजर बीम और लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को नियमित करने की माँग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। पीठ में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल थे।
याचिकाकर्ताओं ने बॉम्बे हाई कोर्ट के 20 अप्रैल के आदेश को चुनौती देने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने धार्मिक जुलूसों और अन्य समारोहों के दौरान स्वीकार्य सीमा से ज़्यादा लेज़र बीम और साउंड सिस्टम के इस्तेमाल के खिलाफ़ जनहित याचिका का निपटारा कर दिया था।
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इस मामले में कोई ठोस निर्देश पारित करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसमें पीड़ित व्यक्तियों द्वारा अधिकारियों के समक्ष शिकायत दर्ज कराने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। ध्वनि प्रणालियों और लाउडस्पीकरों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के बजाय कोर्ट ने कहा कि संबंधित अधिकारियों के समक्ष शिकायत दर्ज कराई जानी चाहिए, जो तब स्वीकार्य ध्वनि सीमाओं पर स्थापित नियमों के अनुसार कार्रवाई करेंगे।