देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) को लेकर जारी बहस के बीच नॉर्थ-ईस्ट के एक प्रभावशाली चर्च ने इसका विरोध किया है। मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग स्थित कैथोलिक चर्च ने विधि आयोग (Law Commission) को चिट्ठी लिखकर UCC पर गंभीर आपत्ति जाहिर की है।
कैथोलिक चर्च, शिलांग ने भी विधि आयोग को लिखी चिट्ठी में आशंका जताई है कि समान नागरिक संहिता उन विशेष अधिकारों एवं प्रावधानों को खत्म कर देगी, जो जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाते हैं। चर्च ने सवाल किया, “केंद्र सरकार को UCC लागू करने की क्या जल्दी है?”
देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं करने का आग्रह करते हुए चर्च ने लिखा, “हम संबंधित विभाग और भारत सरकार को दृढ़ता से अनुशंसा करते हैं कि वे हमारे विविधतापूर्ण देश में यूसीसी को लागू न करें।”
उन्होंने कहा कि राज्य के लोग अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं और मान्यताओं का अत्यंत सम्मान करते हैं। समान नागरिक संहिता के जरिए उन्हें विकृत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। चर्च ने यह भी कहा कि एक धर्म के रीति-रिवाजों को लागू करना संविधान के अनुच्छेद 25 के खिलाफ है, जो देश के सभी धार्मिक समूहों को अपने मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है।
पत्र में यह भी कहा गया है कि अनुच्छेद 341 और 342 के साथ-साथ भारत के संविधान की छठी अनुसूची देश के जनजातीय समुदाय को विशेष अधिकार प्रदान करती है। समान नागरिक संहिता जनजातीय समुदायों के सदस्यों को दिए गए विशेष अधिकारों को खत्म कर देगा।
बताते चलें कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पहले नागालैंड सरकार को आश्वासन दिया था कि केंद्र ईसाई समुदाय और कुछ जनजातीय क्षेत्रों को समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर करने पर विचार कर रहा है। नागालैंड की सरकार ने भी इसकी घोषणा भी की।
नागालैंड सरकार के प्रवक्ता और मंत्री केजी केन्ये ने पिछले महीने कहा था, “अमित शाह ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि केंद्र 22वें विधि आयोग के दायरे से ईसाइयों और कुछ जनजातीय क्षेत्रों को छूट देने पर विचार कर रहा है।” UCC का सबसे कड़ा विरोध मेघालय, मिजोरम और नागालैंड से हुआ है। ये राज्य ईसाई बहुल हैं।
समान नागरिक संहिता का ईसाई संगठन ही नहीं, बल्कि मुस्लिम संगठन भी खुलकर कर रह हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने तो यहाँ तक कहा है कि भारत में समान नागरिक संहिता की ज़रूरत नहीं है। विधि आयोग की कार्रवाई देश के संसाधनों की बर्बादी है।
AIMPLB ने जनजातीय समाज के अधिकारों को ढाल बनाते हुए कहा कि इससे उन्हें मिले विशेष अधिकार खत्म हो जाएँगे। बोर्ड ने यह भी कहा कि मुस्लिमों के कानून कुरान से लिए गए हैं, जिसे काटने की इजाजत किसी मुस्लिम को भी नहीं है तो सरकार कैसे इसमें हस्तक्षेप कर सकती है। बोर्ड ने इस मामले को लेकर देश में दंगा भड़कने की भी धमकी दे दी।