100 करोड़ रुपए की वसूली के मामले की जाँच कर रही केंद्रीय जाँच एजेंसी (सीबीआई) ने दायरा बढ़ाते हुए महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को पूछताछ के लिए समन भेजा है। सीबीआई ने 14 अप्रैल को अनिल देशमुख को हाजिर होने को कहा है। गौरतलब है कि मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि अनिल देशमुख ने 100 करोड़ की वसूली के लिए सचिन वाजे को टारगेट दिया था।
इससे पहले केंद्रीय जाँच एजेंसी ने देशमुख के दो सहायकों से संजीव पलांडे और सचिव कुंदन शिंदे से मुंबई सांताक्रूज स्थित डीआरडीओ ऑफिस के गेस्ट हाउस में पूछताछ की थी। बता दें कि परमबीर सिंह के आरोपों के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनिल देशमुख के खिलाफ जाँच का आदेश सीबीआई को दिया था।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक एसपी रैंक के दो आईपीएस अघिकारी पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख से पूछताछ करेंगे। जाँच एजेंसी 100 करोड़ रुपए की वसूली के मामले में अब तक परमबीर सिंह, निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे, एसीपी संजय पाटिल और शिकायतकर्ता जैश्री पाटिल से पूछताछ कर चुकी है।
महाराष्ट्र सरकार के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के वसूली कारोबार का खुलासा 20 फरवरी को हुआ था, जब मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने इस मामले में सीएम उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा। इसमें आईपीएस अधिकारी ने आरोप लगाया कि एनसीपी नेता ने ही सचिन वाजे से मुंबई के 1750 बार, रेस्टोंरेंट और अन्य प्रतिष्ठानों से प्रति माह 100 करोड़ रुपए की वसूली करने को कहा था। इसके साथ ही परमबीर सिंह ने देशमुख के उस बयान का भी खंडन किया था कि एंटीलिया बम केस में चूक के कारण उनका ट्रांसफर किया गया था।
बीते 8 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ देशमुख और महाराष्ट्र सरकार की अपील पर सुनवाई की थी। उस दौरान महाराष्ठ सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने केवल महाधिवक्ता की दलीलें सुनीं, जबकि राज्य सरकार को काउंटर दायर करने का मौका तक नहीं दिया। देशमुख की तरफ से वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि हाईकोर्ट ने उनके मुवक्किल की बात ही नहीं सुनी।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में सीबीआई पर बल देते हुए कहा था, “हाईकोर्ट ने जो आदेश जारी किया है उसे हम देख रहे हैं और हम आरोपों और व्यक्ति इसकी गंभीरता को देखते हुए इसकी जाँच के लिए एक स्वतंत्र जाँच एजेंसी की आवश्यकता है। यह लोगों के विश्वास का मामला है। हम यह भी जोड़ सकते हैं कि जो निर्देश दिया गया है वह एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा केवल एक प्रारंभिक जाँच है।”