दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण की छूट दिए जाने के बाद अब इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। अधिवक्ता प्रदीप कुमार द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट का यह कहना गलत है कि इसमें काम करने वाले श्रमिक परियोजना स्थल पर रह रहे हैं।
उन्होने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का निर्माण करने वाली कंपनी ने अपने एफिडेविट में कहा था कि श्रमिक सराय काले खाँ में रह रहे थे, जो परियोजना स्थल से काफी दूर था और उन्हें वहाँ तक आने-जाने के लिए पास जारी किए गए थे।
खास बात यह है कि एडवोकेट प्रदीप यादव हाई कोर्ट में सेंट्रल विस्टा के मामले में पक्षकार नहीं थे। बता दें कि बीते 20 मार्च 2021 को केंद्र सरकार ने 20 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट के स्वरूप में बदलाव के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था, जो कि सेंट्रल दिल्ली की 86 एकड़ की जमीनों से जुड़ा हुआ था। इसमें राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और केंद्रीय सचिवालय समेत कई इमारतें शामिल हैं।
5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
इससे पहले इसी साल 5 जनवरी 2021 को सर्वोच्च न्यायालय की तीन जजों की बेंच ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हरी झंडी देते हुए भूमि उपयोग और पर्यावरण मानदंडों के कथित उल्लंघन के आरोप वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
गौरतलब है कि इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार (31 मई 2021) को केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी सेन्ट्रल विस्टा पुनरोद्धार परियोजना पर रोक लगाने से इनकार करते हुए इसके लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया था। इस याचिका में कोरोना महामारी के मद्देनजर इस प्रोजेक्ट को रोकने की अपील की गई थी, जिसके तहत नए संसद भवन का निर्माण होना है। इसी के साथ हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर ही एक लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए सेंट्रल विस्टा को ‘राष्ट्रीय महत्व का एक अत्यावश्यक परियोजना’ कहा था।