केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आज (12 मार्च 2023) समलैंगिक विवाह की माँग करने वाली याचिका का विरोध किया। भारतीय लोकाचार के विरुद्ध बताते हुए केंद्र ने मामले में हलफनामा दायर किया। इसमें उन्होंने बताया कि समान सेक्स के लोगों का पार्टनर बनकर साथ रहना और समलैंगिक संबंध बनाने को भारतीय परिवार की अवधारणा से नहीं तोला जा सकता जहाँ एक महिला और पुरुष के बीच शादी के संबंध से बच्चे का जन्म होता है।
#BREAKING
— Bar & Bench (@barandbench) March 12, 2023
Central Govt opposes plea seeking recognition of same sex marriage before the #SupremeCourtOfIndia
Says same sex relation "cannot be compared to the Indian family concept of a husband, a wife and children born out of the union" #Samesexmarriage pic.twitter.com/d0JXzhgELr
केंद्र ने कहा कि शुरुआत से ही विवाह की धारणा अनिवार्य रूप से अपोजिट सेक्स के दो व्यक्तियों के बीच एक मिलन को मानती है। यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विवाह के आइडिया और कॉनसेप्ट 6 में शामिल है और इसे विवादित प्रावधानों के जरिए खराब नहीं किया जाना चाहिए।
Centre files affidavit before Supreme Court, opposes the legal recognition of same-sex marriage.
— ANI (@ANI) March 12, 2023
Centre tells SC that same-sex relationships & heterosexual relationships are clearly distinct classes which cannot be treated identically. pic.twitter.com/Fs7C3gGdqC
केंद्र ने जवाबी हलफनामे में कहा है कि आईपीसी की धारा 377 का गैर-अपराधीकरण समलैंगिक विवाह के लिए मान्यता प्राप्त करने के दावे को पैदा नहीं कर सकता।
#BREAKING Central Government opposes pleas in #SupremeCourt seeking recognition of same-sex marriage.
— Live Law (@LiveLawIndia) March 12, 2023
Decriminalisation of Section 377 IPC cannot give rise to a claim to seek recognition for same-sex marriage, Centre says in counter-affidavit.#SupremeCourtOfIndia #LGBT pic.twitter.com/QOMwUqyL2i
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, दो लोगों में शादी ऐसी व्यवस्था का निर्माण करती है जिसका अपना सार्वजनिक महत्व है। इसी के चलते कई अधिकार और दायित्व मिलते हैं। अपने 56 पेजों के हलफनामे में सरकार ने समलैंगिक विवाह से जुड़ी 15 याचिकाओं को खारिज करने की पैरवी की। उन्होंने कहा कि याचिका में सुनने लायक कुछ भी नहीं है। मेरिट के आधार पर उसे खारिज किया जाना ही उचित है। अब इस मामले में सुनवाई 13 मार्च को की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि समान सेक्स के बीच विवाह की याचिका कई हाईकोर्ट में लंबित थी। ऐसे में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस नरसिम्हा और जेबी परदीवाला ने इन मामलों को खुद ही सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करवा लिया था। इसके बाद केंद्र से इस बाबत जवाब माँगा गया और अब हलफनामा दायर करते हुए केंद्र सरकार ने साफ कहा है कि इस तरह समान सेक्स के लोगों की शादी को मान्यता देना मौजूदा कानूनों में उल्लंघन होगा।
बता दें कि इन याचिकाओं को दायर करने वालों में एक सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय दांग (गे कपल) द्वारा दायर की गई थी। इन दोनों ने कोविड की सेकेंड वेव के बाद शादी करने की सोची, लेकिन ये शादीशुदा लोगों वाले अधिकारों का लाभ नहीं उठा पाए…इसीलिए उन्होंने इस संबंध में याचिका दी। इसी तरह एक याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज द्वारा डाली गई। उन्होंने दलील दी कि इस तरह समलैंगिक विवाह को मान्यता न देना आर्टिकल 14 के तहत गुणवत्ता के अधिकार और आर्टिकल 21 के तहत जीने के अधिकार का उल्लंघन है।