Friday, November 22, 2024
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कैसे हो गया ‘इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग’ में बदलाव? बालासोर ट्रेन दुर्घटना का यही है कारण, जानिए क्या है और कैसे करता है काम

ओडिशा रेल दुर्घटना में कोरोमंडल एक्सप्रेस मेन लाइन से लूप लाइन पर चली गई थी। यह ट्रेन बाहानगा बाजार स्टेशन से थोड़ा सा पहले लूप लाइन पर चली गई थी, जहाँ पहले से ही एक मालगाड़ी खड़ी थी। इसी मालगाड़ी से कोरोमंडल एक्सप्रेस टकरा गई थी। इस टक्कर के बाद ट्रेन के कुछ डिब्बे दूसरी लाइन पर जा गरे।

ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण ट्रेन हादसे की प्रारंभिक जाँच में सामने आया है कि यह दुर्घटना इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव के कारण हुआ। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने मामले की जाँच की है। घटना के कारणों और इसके लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली है।

उन्होंने कहा कि इसमें अभी तक किसी तरह की साजिश का पता नहीं चला है। हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (Railway Electronic Interlocking) में बदलाव किसी कारण हुआ है या किसी ने जानबूझकर की है, इसकी जाँच की जा रही है।

क्या होता इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग

दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग एक तकनीक है। इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल रेलवे की सिग्नल व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। यह सुरक्षा प्रणाली ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सिग्नल और स्विच के बीच ऑपरेटिंग सिस्टम को कंट्रोल करती है। यह सिस्टम रेलवे लाइनों पर सुरक्षित और अवरुद्ध चल रही ट्रेनों के बीच सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करती है। इसकी मदद से रेल यार्ड के कामों को कंट्रोल किया जाता है।

इंटरलॉकिंग पहले मैनुअली होती थी, लेकिन अब यह मैनुअली नहीं होती है। अब यह इलेक्ट्रॉनिक हो गई है। रेलवे सिग्नलिंग अन-इंटरलॉक्ड सिग्नलिंग सिस्टम, मैकेनिकल और इलेक्ट्रो-मैकेनिकल इंटरलॉकिंग से लेकर अब तक के मॉर्डन हाईटेक सिग्नलिंग तक एक लंबा सफर तय कर चुका है। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग लॉजिक सॉफ्टवेयर बेस्ड होता है।

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (EI) एक ऐसी सिग्नलिंग व्यवस्था है, जिसके जरिए यार्ड में फंक्शंस इस तरह कंट्रोल होते हैं, जिससे ट्रेन के एक कंट्रोल्ड एरिया के माध्यम से सुरक्षित तरीके से गुजर सके। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के कई फायदे हैं। इसमें कोई भी मोडिफिकेशन आसान होता है। ईआई सिस्टम एक प्रोसेसर बेस्ड सिस्टम होता है। फेल होने के मामले में भी इसमें न्यूनतम सिस्टम डाउन टाइम होता है।

EI ऑपरेशनल कमांड, स्विच और सिग्नल स्थितियों को ऑपरेट करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक निर्देश दिए जाते हैं, जबकि इसके पहले के सिस्टम में ऐसा नहीं था। इस सिस्टम में मानवी गलतियों (human errors) की बहुत कम गुंजाइश होती है। इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटर नेटवर्क के इस्तेमाल से ट्रेनों के बीच ट्रांजिशन को कंट्रोल किया जाता है।

कैसे काम करता है इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग

जब एक ट्रेन रेल नेटवर्क पर चलती है तो उसके पास एक इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम द्वारा प्रशिक्षित संकेतक (trained sensor) होते हैं। ये सेंसर ट्रेन की स्थिति, गति और अन्य जानकारी को सिग्नलिंग सिस्टम को भेजते हैं। सिग्नलिंग सिस्टम फिर उस ट्रेन के लिए उचित संकेत जारी करता है। इससे ट्रेन की गति, रुकावट आदि कंट्रोल किया जाता है। यह एक प्रक्रिया है, जो चलती ट्रेन मे लगातार होती रहती है।

इस प्रक्रिया से ट्रेनों को उचित संकेत मिलते रहते हैं, ताकि उनके परिचालन के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित रहे। इस प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाली तकनीकों में माइक्रो प्रोसेसर, सेंसर, इंटरफेस मॉड्यूल, नेटवर्क कनेक्टिविटी और सफलतापूर्वक टेस्ट किए गए एल्गोरिदम शामिल होते हैं। इंटरलॉकिंग सिस्टम इन्हीं सिग्नल, प्वॉइंट्स, ट्रैक और उनकी स्थिति को मॉनिटर करता है।

इसे दूसरे अर्थ में ऐसे समझें, रेलवे स्टेशन के पास यार्डों में कई लाइनें होती हैं। इन लाइनों को आपस में जोड़ने के लिए पॉइंट्स होते हैं और इन पॉइंट्स को चलाने के लिए हर पॉइंट पर एक मोटर लगी होती है। इन पॉइंट्स से ही ट्रेनों को एक ट्रैक से दूसरी ट्रैक पर भेजा जाता है। सिग्नल के जरिए लोको पायलट को अनुमति दी जाती है कि वह ट्रेन के साथ रेलवे स्टेशन के यार्ड में प्रवेश करे।

दरअसल, पॉइंट्स और सिग्नलों के बीच में एक लॉकिंग होती है। लॉकिंग कुछ ऐसी होती है कि पॉइंट सेट होने के बाद जिस लाइन का रूट सेट हुआ हो, उसी लाइन के लिए सिग्नल जाए। ये सिग्नल इंटरलॉकिंग है। इंटरलॉकिंग का मतलब है कि अगर लूप लाइन सेट है तो लोको पायलट को मेन लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा। वहीं, मेन लाइन सेट है तो लूप लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा।

क्या हुआ था बालासोर में?

ओडिशा रेल दुर्घटना में कोरोमंडल एक्सप्रेस (Coromandel Express Train) मेन लाइन से लूप लाइन पर चली गई थी। यह ट्रेन बाहानगा बाजार स्टेशन से थोड़ा सा पहले लूप लाइन (Loop Line) पर चली गई थी, जहाँ पहले से ही एक मालगाड़ी खड़ी थी। इसी मालगाड़ी से कोरोमंडल एक्सप्रेस टकरा गई थी। इस टक्कर के बाद ट्रेन के कुछ डिब्बे दूसरी लाइन पर जा गरे।

जिन मेन डाउन लाइन पर डिब्बे गिरे, उस पर बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट जा रही थी, जिसकी टक्कर इन डिब्बों से हो गई और यह बड़ा हादसा हो गया। इसमें सिग्नल मेन लाइन पर सेट किया जाना था, लेकिन सेट कर दिया गया लूप लाइन पर। यही जाँच की कोशिश की जा रही है कि यह जानबूझकर किसी ने ऐसा किया या फिर किसी अन्य कारणों से यह हुआ। यदि ऐसा हुआ तो वो कौन से कारण थे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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