असम से लेकर पूरे देश में चर्चा का मुद्दा बन चुके नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) पर एक कार्यक्रम में बोलते हुए इसके समर्थन में अपनी बात रखते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कई तथ्य पेश किए। लेखक और पत्रकार मृणाल तालुकदार की किताब ‘पोस्ट कोलोनियल असम’ (1947-2019) के विमोचन समारोह में बोलते हुए मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई ने अपने संबोधन में एनआरसी को लेकर मीडिया की गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग पर भी गंभीर सवाल उठाए।
जस्टिस गोगोई ने अपने संबोधन में कहा “मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जिसे आप पुस्तक विमोचन के कार्यक्रमों में पाएँगे, यहाँ आने की असल वजह थी कि मृणाल ‘नन्द तालुकदार सोशल हिस्ट्री प्रोजेक्ट’ के जिस काम में पूरी निष्ठा से लगे थे।” दरअसल जिस प्रोजेक्ट का ज़िक्र गोगोई ने अपने वक्तव्य में किया वह आज़ादी के बाद से लेकर अब तक असम की सभी महत्वपूर्ण घटनाओं को संकलित करता आ रहा है, इसमें एनआरसी भी शामिल है।
कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि असम का इतिहास अशांति से भरा रहा है, इस प्रदेश के लोगों ने औद्योगिक हमले से लेकर कृषि संघर्ष और बाढ़ की आपदाओं के बीच सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर कई बड़े संकटों का सामना किया है मगर इसके बावजूद यहाँ के लोगों ने हमेशा भारत का सर गर्व से ऊँचा किया है। जस्टिस गोगोई ने बताया कि व्यापक आंदोलनो और परिणामस्वरुप हुई हिंसा ने असम के सामाजिक-राजनीतिक जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ा है, यहाँ सबसे बड़ी समस्या अवैध प्रवासियों की है जोकि राज्य के ज़्यादातर संसाधनों पर काबिज हैं और इस मुद्दे पर स्थानीय लोगों का स्वर भी मुखर है। असम ने पिछले चार दशक में इस मुद्दे पर काफी हिंसक झड़पें देखी हैं। 1978 में इसके लिए ‘थ्री-D’ का नारा प्रचलित हुआ थ्री-D यानी डिटेक्शन, डिलीशन और डिपोर्टेशन यानी अवैध रूप से रह रहे प्रवासी को ढूँढो (डिटेक्शन), मिटाओ (डिलीशन) और बाहर भेज दो (डिपोर्टेशन)।
CJI Ranjan Gogoi: Irresponsible reporting by a few media outlets only worsened the situation. There was an urgent need to ascertain with some degree of certainty the number of illegal migrants, which is what the current exercise of NRC had attempted, nothing more nothing less. https://t.co/FlMUdOyEu9 pic.twitter.com/eFuc3Swvb9
— ANI (@ANI) November 3, 2019
एक समय सभी राजनीतिक दल इस समस्या को सुलझाने की कोशिश में आगे आए और उन्हें इसके लिए जनसमर्थन भी मिला। मगर चार दशकों में तस्वीर इतना बदल गई कि उग्र-राजनीतिक बयानबाजी और लगातार हिंसा से राज्य के लोगों के बीच दहशत और शत्रुता लगातार बढ़ती चली गई और उस वक़्त राज्य की व्यवस्था ऐसे दंगों पर नियंत्रण करने के योग्य नहीं थी।
बता दें कि असम एकॉर्ड 1985 – जोकि असम राज्य के सम्बन्ध में एक आधिकारिक दस्तावेज़ है उसके मुताबिक असम के लिए नागरिकता और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन्स (एनआरसी) का प्रावधान किया गया है, इसीलिए एनआरसी कोई नया मुद्दा नहीं है। एनआरसी का सबसे पुराना कानूनी अस्तित्व 1951 से जुड़ा हुआ है। यहाँ तक कि मौजूदा वक्त में की जा रही कार्रवाई 1951 के तत्कालीन एनआरसी के नियम में संशोधन की ही एक प्रक्रिया है। गोगोई ने कहा कि एनअआरसी को लेकर असम के लोग बेहद उदारदिल हैं। उन्होंने देरी के बावजूद तय की जा रहीं सभी तारीखों का स्वागत किया। यह इन्सानियत की एक स्वीकार्यता ही है जो समावेशिता तक जाती है। इतिहास में असम को मिले घाव अभी तक भर नहीं पाए हैं और अब किसी नए सियासी तमाशे के लिए वहाँ कोई स्थान नहीं।
मुख्य न्यायधीश ने एनआरसी की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि यह सबसे ज्यादा यह लोगों की स्वीकार्यता की बात है कि इसे लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने एनआरसी की गैर-ज़िम्मेदाराना रिपोर्टिंग करते मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठाए। जस्टिस गोगोई ने कहा कि मीडिया-उससे जुड़े संस्थान और खासकर सोशल मीडिया के ज़रिए इस मुद्दे को लेकर लोगों तक पहुँचने वाली बातें ख़ासा प्रभावित हुईं। उनके मुताबिक मीडिया ने अपने दर्शकों और पाठक वर्ग का परिचय असम के वास्तविक हालातों से कराया ही नहीं बल्कि दोनों के बीच एक गहरी खाई बना डाली। कार्यक्रम में जस्टिस गोगोई ने अवैध प्रवासियों पर कानूनी चोट करने वाले एनआरसी के मुद्दे को इतिहास में घटित हिंसक वारदातों से जोड़ते हुए राज्य की शांति व्यवस्था और मीडिया की एकतरफ़ा रिपोर्टिंग पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ज़मीन पर वास्तविक हालातों से अनभिग्य हैं मगर बैठे-बैठे एनआरसी की आलोचना कर रहे हैं।