इस्लामिक भीड़ का आतताई चेहरा एक बार फिर बेंगलुरु में मंगलवार को देखने को मिला। अल्लाह-हू-अकबर और नारा-ए-तकबीर के नारों के बीच संप्रदाय विशेष के 1000 से भी अधिक ने एक पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया।
बताया जा रहा है कि एक स्थानीय विधायक के किसी संबंधी ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर पैगंबर मुहम्मद को लेकर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी। जिसके बाद समुदाय विशेष की भीड़ इतनी भड़क गई कि उन्होंने पहले उस विधायक के घर पर हमला बोला। फिर वाहनों में आग लगाई और बाद में थाने को ही जला डाला।
यह पहली बार नहीं है, जब पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणी के बाद इस्लामिक भीड़ का ऐसा रूप देखने को मिला हो। इतिहास के पन्नों में ऐसे कई मामले दर्ज हैं, जब लोकतंत्र की दुहाई देने वाले समुदाय विशेष के लोग पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणी सुनकर कानून को भूल गए और भीषण हिंसा को अंजाम दिया गया।
इनमें कुछ मामले बहुत हालिया हैं और कुछ थोड़े पुराने हैं। आज हम उन 5 मौकों का जिक्र करेंगे, जब पैगंबर मुहम्मद के नाम पर इस्लामिक कट्टरता का भयावह चेहरा देखने को मिला।
कमलेश तिवारी हत्याकांड
18 अक्टूबर 2019 को हिंदू महासभा के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की उनके आवास स्थित कार्यालय में बर्बरता से हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद मालूम चला था कि इसके पीछे कट्टरपंथियों का हाथ है, जो बहुत पहले से तिवारी के खिलाफ़ साजिश रच रहे थे। कमलेश तिवारी का अपराध केवल यह था कि उन्होंने साल 2015 में पैगंबर मुहम्मद पर विवादित टिप्पणी कर दी थी। इसके बाद से ही उन्हें मारने के प्रयास और ऐलान किए जा रहे थे।
शार्ली ऐब्दो मैग्जीन में जब पैगंबर पर कार्टून छापने से गई 17 लोगों की जान
शार्ली ऐब्दो नामक मैग्जीन कुछ साल पहले पैगंबर मुहम्मद का कार्टून छापने के कारण चर्चा में आई थी। इसके बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों ने उस पर ईशनिंदा का आरोप लगाया। साल 2011 में इसके कार्यालय पर गोलीबारी हुई और बम फेंके गए। फिर 7 जनवरी, 2015 को कट्टरपंथियों ने इसे एक बार दोबारा निशाना बनाया और अल्लाह हू अकबर कहते हुए 12 लोगों को मौत के घाट उतार गए। इनमें तीन पुलिसकर्मी थे।
पैगंबर मुहम्मद की शादी पर आधारित किताब रंगीला रसूल के कारण गई प्रकाशक की जान
साल 1924 में अनाम लेखक के नाम से रंगीला रसूल नाम की एक किताब प्रकाशित हुई थी। इस किताब में मुहम्मद साहब और एक औरत के परस्पर संबंधों का कथानक था। जिसके कारण संप्रदाय विशेष के लोगों ने इसका काफी विरोध किया और इसके प्रकाशक को वैमनस्यता फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन प्रकाशक के रिहा होते ही इल्मुद्दीन नामक कट्टरपंथी ने महाशय राजपाल की हत्या कर दी और इल्मुद्दीन को बचाने के लिए केस फिर मुहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा।
700 वर्ष पुरानी किताब से कोट लेने पर समाचार पत्र ने देखा संप्रदाय विशेष की भीड़ का चेहरा
साल 2000 में न्यू इंडियन एक्सप्रेस नामक समाचार पत्र ने 700 साल पुरानी एक किताब से एक कोट लेकर अपना आर्टिकल लिखा। जिसके कारण संप्रदाय विशेष की भीड़ भड़क गई और बेंगलुरू के इस अखबार ने संप्रदाय विशेष की भीड़ का एक भयानक चेहरा देखा। रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब 1000 की भीड़ ने सिर्फ़ आर्टिकल में पैगंबर का नाम आने से कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया था और 20 उलेमाओं ने बाद में अखबार के चीफ रिपोर्टर से मिलकर माँग की कि लेख लिखने वाले अखबार के सम्पादकीय सलाहकार टीजेएस जॉर्ज माफी माँगें।
साल 1986 में दंगा, 17 की गई थी जान
साल 1986 में डेक्कन हेराल्ड को ऐसे आक्रोश का सामना करना पड़ा था, जब एक छोटी से स्टोरी के कारण देश में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गई और 17 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी। बाद में अखबार ने रेडियो और टेलीविजन के जरिए समुदाय से माफी माँगी। इस घटना में भी संप्रदाय विशेष के लोगों को स्टोरी में यही लगा था कि लिखने वाले ने पैगंबर का अपमान किया है।