दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के मरकज में भीड़ जुटने की घटना को लेकर मचा बवाल अभी थमा भी नहीं है कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में ऐसी ही दूसरी घटना सामने आ गई है। शुक्रवार (अप्रैल 10, 2020) को मुर्शिदाबाद में सैकड़ों की संख्या में लोग मस्जिद में एकजुट हुए और नमाज अदा की। इस दौरान लोगों ने न मास्क पहन रखा था और न ही हाथ में ग्लव्स पहना था।
इतना ही नहीं, वीडियो में आप देख सकते हैं कि मुर्शिदाबाद में जुमे की नमाज अदा करने के लिए इकट्ठा हुए लोग ना सिर्फ लॉकडाउन का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की भी जमकर धज्जियाँ उड़ा रहे हैं।
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बता दें कि पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद अल्पसंख्यक बहुल जिला है। यहाँ की गोपीपुर मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने के लिए शुक्रवार को अल्पसंख्यक समुदाय के लोग काफी संख्या में जमा हुए। जब इसकी जानकारी पुलिस को मिली, तो वो फौरन मौके पर पहुँचे। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग मस्जिदों से बाहर निकलते दिखे। इसके बाद पुलिस ने मौलाना को बुलाया और लोगों से घरों में रह कर ही नमाज पढ़ने की अपील करने के लिए कहा।
अब यहाँ पर सवाल यह उठता है कि शुक्रवार को लॉकडाउन के 17 दिन हो गए, 4 दिन शेष रह गए, तो फिर अब तक प्रशासन की तरफ से यह अपील क्यों नहीं की गई? और अपील अगर की गई तो भीड़ जुटने वाली मस्जिदों के पास प्रशासन ने ज्यादा सख्ती क्यों नहीं बरती?
पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन है, लोगों के घरों से निकलने पर बैन है। देश के सारे धर्मस्थल बंद हैं। लेकिन कुछ लोग मजहब के नाम पर सरेआम लॉकडाउन की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। तो क्या मजहब लॉकडाउन तोड़ने का लाइसेंस देता है? क्या कोई मजहब किसी की जान से खिलवाड़ करने का लाइसेंस देता है? क्योंकि ऐसा करने ये लोग ना सिर्फ अपनी बल्कि दूसरों की जान को भी खतरे में डाल रहे हैं। आखिर पश्चिम बंगाल में लॉकडाउन के नियमों से खिलवाड़ क्यों?
मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान मक्का-मदीना है। कोरोना के संकट काल में मक्का-मदीना तक बंद है, लेकिन भारत में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग ये मानने को तैयार नहीं हैं कि कोरोना से उन्हें कोई खतरा है। इससे पहले दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के मरकज के जलसे में काफी संख्या में लोगों के जुटने और उनके कोरोना पॉजिटिव पाए जाने की घटना ने हड़कंप मचा दिया था।