Sunday, December 22, 2024
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न्यायपालिका में भी है भ्रष्टाचार, ‘एंटी-नेशनल’ घोषित होने चाहिए भ्रष्ट: मद्रास हाईकोर्ट जज

जस्टिस सुब्रमण्यम ने यह भी कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण और पीड़ादायक है कि शैक्षणिक संस्थानों में रिश्वत की जगह कामुक अनुग्रहों (sexual favors) का आदान-प्रदान होता है। जब तक कि लोकसेवकों को घूस न दी जाए, लाशें दफनाए जाने के इंतजार में पड़ी रहतीं हैं; लोगों को सम्मानजनक अंतिम क्रिया के हक से भी वंचित कर दिया जाता है।

जो बात अवमानना कानून के भय से देश के उग्रतम पत्रकार और भ्रष्टाचार से लड़ रहे कार्यकर्ता बोलने से कतरा जाएँ, मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने दो-टूक कह दी।

भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित एक लोकसेवक की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा कि भ्रष्ट न्यायपालिका से बड़ा संविधान का कोई शत्रु हो नहीं सकता। उन्होंने यह भी जोड़ा कि न्यायपालिका को अपने अन्दर फैले भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कठोरतम कदम उठाने चाहिए और भ्रष्ट बाबुओं व न्यायिक अधिकारियों को ‘एंटी-नेशनल’ (देशविरोधी) घोषित किया जाना चाहिए।

‘माँ के पेट से सीखने लगता है घूस’

गुरुवार को ग्रामीण प्रशासनिक अधिकारी पी सरवनन की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुब्रमण्यम ने कहा कि लोकसेवकों को घूस देना व्यक्ति माँ के पेट से ही शुरू कर देता है, और यह शोचनीय है कि जनसामान्य को लोककल्याण की सुविधाओं के लिए भी भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। सरवनन चाहते थे कि अदालत उनका निलंबन रद्द कर उनकी बहाली का आदेश जरी करे, पर अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया।

“यह ‘एंटी-नेशनल’ हैं क्योंकि ये इस महान राष्ट्र के विकास में रुकावट पैदा करते हैं। आतंकवादियों को हम समाज-विरोधी घोषित कर देते हैं। अतः भ्रष्ट और देश के विकास की गतिविधियों में बाधा उत्पन्न कर रहे लोगों को भी राष्ट्र-विरोधी घोषित कर देना चाहिए। इन राष्ट्र-विरोधियों को देश के विकास से कोई मतलब नहीं है; केवल अपना विकास (स्वार्थ) चाहिए इन्हें,” जस्टिस सुब्रमण्यम ने आगे जोड़ा।

जस्टिस सुब्रमण्यम ने यह भी कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण और पीड़ादायक है कि शैक्षणिक संस्थानों में रिश्वत की जगह कामुक अनुग्रहों (sexual favors) का आदान-प्रदान होता है और लोक प्रशासन में इससे बुरी बात क्या हो सकती है। उन्होंने इस पर भी क्षोभ जताया कि लोगों को दफनाए जाने तक में भी भ्रष्टाचार होता है और लोग उसे सहन करते रहते हैं। जब तक कि लोकसेवकों को घूस न दी जाए, लाशें दफनाए जाने के इंतजार में पड़ी रहतीं हैं; लोगों को सम्मानजनक अंतिम क्रिया के हक से भी वंचित कर दिया जाता है।

चुनावी भ्रष्टाचार पर बहुत सख्त  

चुनावी भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करते हुए न्यायमूर्ति ने कहा कि यदि वे ही मतदाताओं को घुस देने जैसे भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएंगे तो लोकतांत्रिक सिद्धांतों की जड़ें हिल जाएँगी, “यह लोक-प्रतिनिधि केवल कानून बनाने ही नहीं, बल्कि उसका अनुपालन कराने के भी उत्तरदायी होते हैं।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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