दिल्ली पुलिस ने 15 जुलाई 2024 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नाज़िम हुसैन अल जाफ़री, मोहम्मद नसीम हैदर और प्रोफेसर शाहिद तसलीम के खिलाफ़ एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(पी) और 3(1)(क्यू) के तहत एफ़आईआर दर्ज की है। ये एफ़आईआर राम निवास सिंह की शिकायत पर दर्ज की गई है, जो विश्वविद्यालय में प्राकृतिक विज्ञान डिपार्टमेंट में असिस्टेंट के पद पर कार्यरत हैं। इस एफआईआर की कॉपी ऑपइंडिया के पास मौजूद है।
इस एफआईआर में आरोपित नाज़िम हुसैन अल-जाफ़री जामिया मिल्लिया इस्लामिया के रजिस्ट्रार हैं तो नसीम हैदर डिप्टी रजिस्ट्रार। इनके साथ ही आरोपित शाहिद तसलीम प्रोफ़ेसर हैं। इस मामले में विश्वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट कार्यरत राम निवास सिंह (एससी वर्ग) ने तीनों पर जाति-आधारित गाली-गलौच, अमानवीय व्यवहार करने और उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करने, दुर्व्यवहार समेत कई गंभीर आरोप लगाए हैं।
एफआईआर के मुताबिक, राम निवास सिंह 2007 से जामिया में अपर डिपीजन क्लर्क के रूप में नौकरी कर रहे थे। बीच में वो दिसंबर 2015 से नवंबर 2021 तक IHBAS में काम कर रहे थे और दिसंबर 2021 में फिर से जामिया लौट आए। इस दौरान वो विश्वविद्यालय में उच्च पदों पर अप्लाई कर सकें, इसके लिए उन्होंने एनओसी माँगा, तो उनके एनओसी एप्लिकेशन को बिना कोई वजह बताए खारिज कर दिया गया। यही नहीं, उन्हें प्रशासनिक कामों का बहाना बताकर हर 2-3 महीनों में ट्रांसफर किया जाता रहा। इसके बाद उन्होंने एससी कमीशन में भी मामला दर्ज कराया था। उन्होंने आरोप लगाया कि जामिया में किसी को भी आगे बढ़ने से नहीं रोका जा रहा, सिवाय उनके।
एससी आयोग में शिकायत के बारे में पता चलने पर रजिस्टार नाजिम हुसैन अल-जाफरी ने उन्हें 13 अप्रैल 2023 को दोपहर 12.30 बजे कनीज फातिमा के निर्देश पर बुलाया और घंटों उन्हें ऑफिस के बाहर इंतजार कराया। इसके बाद जब उन्हें ऑफिस में बुलाया गया, तो अल-जाफरी के साथ कई लोग मौजूद थे।
ऑफिस में मीटिंग के दौरान अल-जाफरी ने कहा, “रामनिवास, तुम किस तरह के कर्मचारी हो? तुम इस विश्वविद्यालय से पैसे ले रहे हो, तुम्हारे बच्चे यहीं पले-बढ़े हैं। तुम सीधे आयोग (एससी कमीशन) के पास नहीं जा सकते।” कुछ मिनट बाद जब वो अज्ञात व्यक्ति बाहर चला गया, तब अल-जाफरी ने राम निवास सिंह को धमकाना शुरू किया। अल जाफरी ने कहा, “तुम निचली जाति के हो, तुम भंगी हो, और तुम्हें ऐसे ही रहना चाहिए। तुम्हारे जैसे लोगों को आरक्षण के आधार पर नौकरी मिलती है, लेकिन फिर भी उन्हें अपनी जगह का पता नहीं होता। यह मत भूलो कि जामिया एक मुस्लिम विश्वविद्यालय है, और तुम्हारी नौकरी हमारी दया पर है।” इस दौरान उन्हें यौन उत्पीड़न के फर्जी मामलों में फंसाने की धमकी दी गई, जिसमें उनकी नौकरी भी जा सकती थी। यही नहीं, अल-जाफरी के खिलाफ किसी भी शिकायत के लिए उच्च अधिकारियों से भी मिलने से मना कर दिया गया और जातिसूचक गालियाँ बकी गईं।
इस दौरान राम निवास ने उनकी बातें रिकॉर्ड करने की कोशिश की, जिसमें कुछ ही हिस्सा ही वो रिकॉर्ड कर सके। इस बीच अल-जाफरी ने उनका फोन देख लिया और उसे छीन लिया। कुछ दिनों के बाद 29 अप्रैल 2023 को जामिया में वैकेंसी निकाली गई, लेकिन एससी-एसटी उम्मीदवारों के लिए आरक्षण नहीं दिया गया। जिसके बाद उन्होंने आरक्षण की माँग करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। इस मामले में 16 जून 2023 को दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया को निर्देश दिया कि वो हर पद के लिए आरक्षण के नियमों के हिसाब से वैकेंसी निकाले।
दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद राम निवास सिंह की जामिया में प्रताड़ना बढ़ा दी गई। इसके बाद अल-जाफरी के इशारे में प्रोफेसर शाहिद तसलीम ने एक फर्जी शिकायत दर्ज कराई, ताकी उनके पेशेवर विकास को बाधित किया जा सके। इसमें उनके लिए ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया गया। इसके कुछ समय बाद उन्हें उनके खिलाफ की गई शिकायत की कॉपी मिली, जिसका उन्होंने आधिकारिक तौर पर जवाब दिया। उन्हें प्रताड़ित करने की सारी सीमाएँ पार कर गई गई। इस बीच, उन्होंने जब दिल्ली राज्य औद्योगिक एवँ अवसंरचना एवँ विकास निगम (DSIIDC) में प्रतिनियुक्ति के आधार पर नौकरी के लिए अप्लाई किया, तो जान बूझकर उनके आवेदन को लटका दिया गया।
यही नहीं, उनके विजिलेंस क्लियरेंस में ‘कारण बताओ’ नोटिस के बारे में भी लिखा गया है, जिसे राम निवास सिंह ने ‘जाति आधारित भेदभाव’ करार दिया। इस बबारे में उन्होंने जब अपने पूर्व एचओडी शाहिद तसलीम से बात की, तो तसलीम ने बताया कि अल-जाफरी के कहने पर ही उन्होंने राम निवास की लिखिति शिकायत की थी। ऐसा करने के लिए उन्हें मजबूर किया गया था।
इस बीच, राम निवास सिंह ने अल-जाफरी से उनके चैंबर में मुलाकात की और इस प्रताड़ना को रोकने की माँग की। लेकिन तब जाफरी ने उनके सामने इस्लाम अपनाने का ऑफर रख दिया। एफआईआर के मुताबिक, अल जाफरी ने कहा, “अपने अंदर ईमान लाओ, मैं सब ठीक कर दूँगा। कलमा पढ़ लो, सब ठीक हो जाएगा। मैं तुम्हारे बच्चों का भविष्य भी बना दूँगा। तुम्हें हिंदू धर्म से क्या मिला? जामिया ने सचिन को मोहम्मद अली बना दिया और उसकी जिंदगी संवार दी। उसे ड्राइवर की स्थाई नौकरी मिल गई क्योंकि उसने दीन को मान लिया।”
पीड़ित राम निवास सिंह ने इसके बाद भी कई बार अल-जाफरी से मुलाकात की, लेकिन इस्लाम अपनाने से इनकार कर दिया। जिसके बाद अल-जाफरी ने उन्हें धमकाते हुए कहा कि “मैं शिकायत वापस नहीं लूँगा। तुमने जामिया को चुनौती दी है, तो इसकी कीमत भी चुकानी पड़ेगी। जामिया मुस्लिमों के लिए है, काफिरों के लिए नहीं।” जाफरी ने सिंह के खिलाफ़ “जाहिल”, “चमार”, “भंगी” और “काफ़िर” जैसे अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया।
विवादों से भरा रहा है जामिया मिल्लिया इस्लामिया का इतिहास
जामिया मिल्लिया इस्लामिया का नाम कई बार विवादों में रहा है। कई मौकों पर एससी/एसटी कर्मचारियों पर अत्याचार की खबरें आई हैं और विश्वविद्यालय के कुलपति को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने 2023 में तलब भी किया था।
यह कार्रवाई हरेंद्र कुमार की 2018 में की गई शिकायत के आधार पर की गई थी। कुमार यूनिवर्सिटी के अधीन आने वाली जामिया मिडिल स्कूल में गेस्ट टीचर थे। उनका आरोप है कि दलित होने की वजह से स्कूल के हेडमास्टर मोहम्मद मुर्सलीन उन्हें अपमानित और प्रताड़ित करते थे। 2018 में नौकरी से निकाले जाने के बाद कुमार ने यह शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें हेडमास्टर पर अन्य शिक्षकों के सामने अपने लिए जातिसूचक संबोधन के इस्तेमाल का आरोप लगाया था।
नियुक्ति और प्रमोशन में एससी/एसटी के लिए आरक्षण का मामला
जामिया की वॉइस चांसलर नजमा अख्तर को 2022 में भी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने समन जारी किया था। आरोप थे कि विश्वविद्यालय नियुक्तियों और प्रमोशन में कानूनन अनुसूचित जनजाति/ जाति के लोगों को मिलने वाले आरक्षण को लागू ही नहीं करता। विश्वविद्यालय प्रशासन को इस जानबूझकर लागू नहीं करने का आरोप है।
विश्वविद्यालय में ही काम करने वाले हरेंद्र कुमार नाम के व्यक्ति आयोग में शिकायत कर नियुक्तियों में आरक्षण संबंधी नियमों का पालन नहीं करने का आरोप लगाया था। अनुसूचित जाति से आने वाले कुमार ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है। उनकी नियुक्ति यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित एक स्कूल में अतिथि कंप्यूटर शिक्षक के रूप में हुई थी। उनका आरोप है कि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने उनके खिलाफ साजिश रची और बाद में उन्हें अवैध तरीके से नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। इसी मामले को लेकर पिछले साल 2021 में भी आयोग ने वीसी को तलब किया था।