कॉलोनी की हर एक गली में दंगाइयों के नाम पर इस्लामी भीड़ प्रवेश कर चुकी थी, किसी के हाथों में ईंट-पत्थर, किसी के हाथों में सरिया-रॉड तो किसी के हाथों में हथियार लगे हुए थे। गली में घुसने के बाद भीड़ ने मोहल्ले की हर एक ऊँची इमारत पर अपना कब्जा जमा लिया था और इसके बाद वही जो हर एक युद्ध के मैदान में या फिर किसी फिल्मी पर्दे पर होता दिखाई देता है। लेकिन यह कहानी कश्मीरी पंडितों के पलायन पर बनी फ़िल्म शिकारा या फिर ईरान-ईराक युद्ध के मैदान की नहीं बल्कि यह कहानी उस दिल्ली की है, जिसे भारत की राजधानी कहा जाता है।
इस कहानी को अपने शब्दों में उस पीड़ित ने बयाँ किया, जिसकी आँखों के सामने दंगाइयों ने न सिर्फ उसकी ही करोड़ों की सम्पत्ति को आग के हवाले किया बल्कि उसकी ही आँखों के सामने उसके ही दोस्त की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हर किसी की आँखें खोल देने वाली बात यह कि इस घटना से पहले एक कार के नीचे डरे हुए बैठे समुदाय विशेष के तीन बच्चों को और घटना के बाद समुदाय विशेष के चार परिवारों को पीड़ित ने खुद अपनी निगरानी में इलाके से सुरक्षित बाहर निकाला था।
हम दिल्ली में सीएए विरोध के नाम पर हुई हिंदू विरोधी हिंसा के पीड़ितों से बातचीत कर ही रहे थे कि हमारी मुलाक़ात शिव विहार निवासी और दंगा पीड़ित अंकित से हुई। हमसे पहले भी अंकित मीडिया वालों को अपनी व्यथा सुना रहे थे। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि वह अपनी पीड़ा लोगों को बता-बताकर थक चुके थे। वैसे भी अंकित के पास अपना दुःख-दर्द कम करने के लिए दूसरों को अपनी पीड़ा बताने के शिवा कोई चारा नहीं था।
खैर, अंकित पॉल हमारे अनुरोध के बाद अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए बताते हैं,
“हर रोज की तरह बीते सोमवार (24 फरवरी) को मैं शिव विहार स्थित अपनी दुकान पर बैठा हुआ था। चाँद बाग से सीएए विरोध के नाम पर हिंसा शुरू हो गई थी। घड़ी में एक बजते ही मैंने देखा कि मुस्तफाबाद की ओर से हज़ारों की इस्लामी भीड़ हाथों में ईंट-पत्थर, लाठी-डंडे, सरिया-रॉड आदि तमाम तरह के हाथों में हथियार लिए हमारी गली की ओर बढ़ी चली आ रही है। उसे देखते ही मैंने अपने शटर को अंदर से बंद कर लिया। उस समय मेरे साथ बड़े भाई अमित, चचेरा भाई सचिन और पिता जी दुलाचंद थे। हम सब दुकान के अंदर ही छिप गए।”
उन्होंने आगे कहा:
इतने में ही दंगाइयों ने दुकान पर ईंट-पत्थरों से हमला बोल दिया और लोहे की रॉड से दुकान के शटर को तोड़न में लग गए। दंगाइयों को पता था हम दुकान के अंदर हैं वह लगातार निकालो-निकालो, ‘मारो सालों को-मारो’ चिल्ला रहे थे।”
अंकित आगे बताते हैं, “हमें लगा आज हम बच नहीं पाएँगे और सब मारे जाएँगे। इतने में ही देखा कि भीड़ एक दूसरी दुकान पर हमला कर रही रही है और इसी बीच हम मौक़ा पाकर सभी 30 सेकंड के भीतर दुकान से बाहर निकलकर बराबर वाली गली में मौजूद गोदाम के पास मकान की छत पर जाकर छिप गए। इसके बाद दंगाई दुकान से गोदाम की तरफ आए और गेट तोड़कर गोदाम की छत से हमारे (जिस मकान में छिपे थे) ऊपर पत्थरबाजी करने लगे। इतने में ही देखा कि राजधानी की छत पर जमा सैकड़ों की भीड़ ने हमारी ओर पेट्रोल बम फेंकना शुरू कर दिया। और चिल्लाते हुए बोले, रोक सके तो रोक ले हमने तेरी दुकान को आग लगा दी। इसी के साथ हमारे एक गोदाम में आग लगा दी गई।”
अंकित अपनी आपबीती बताते हुए थोड़ा भावुक होते हैं और आगे बताते हैं, “हम वहाँ से भी अपनी जान बचाने के लिए भाग ही रहे थे कि एक कंबल ओढ़े दंगाई ने हमारी दुकान की ओर आ रहे मेरे दोस्त और पड़ोसी राहुल सोलंकी (इंजीनियर) को गोली मार दी, जो कि उसकी गर्दन में जाकर लगी। इससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। उसको नहीं पता था कि घर के बाहर क्या हो रहा है। देर शाम हो चुकी थी हम अपनी जान बचाते घूम रहे थे। इसी बीच दंगाइयों ने फिर से दुकान पर धावा बोल दिया। पहले तो दुकान में जमकर लूटपाट की ओर फिर देखते ही देखते उसे आग के हवाले कर दिया। इसी बीच पता चला कि गोदाम में रहने वाले हमारे कर्मचारी दिलबर नेगी के हाथ पैर काट कर उसे मार दिया गया और फिर दूसरे गोदाम में भी देर रात दंगाइयों नें आग लगा दी।”
अंकित बताते हैं, “दंगाई इतने पर भी थमने का नाम नहीं ले रहे थे उन्होंने गोदाम से निकाले सिलेंडरों में आग लगाकर उसमें ब्लास्ट कर दिया, जिससे गोदाम की पूरी इमारत तबाह हो गई। दंगाई हमारी एक दुकान और दो गोदाम में लूटपाट करने के बाद उसे आग के हवाले कर चुके थे। इसके बाद दंगाइयों से हमारी जो एक मात्र ऑफिस बची हुई थी। लेकिन, उसमें भी देर रात पहले तो लूटपाट की फिर उसमें भी आग लगा दी।”
अंकित पाल के मुताबिक दंगाई दुकान में रखे करीब 40 हजार रुपए कैश और करीब 15 लाख रुपए का दूध, घी, खोवा आदि कीमती सामान लूटकर ले गए। वहीं दंगाइयों द्वारा दुकान में पहले लूटपाट फिर आग, फिर गोदाम में आग और फिर उसके बाद ऑफिस में आग से करीब 3 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। वह कहते हैं, दंगाइयों ने हमारी जीवनभर की कमाई को पलभर में हमारी ही आँखों के सामने आग के हवाले कर दिया। वह यह भी दावा करते हैं कि दंगाइ इसके लिए करीब एक महीने पहले से ही योजना बना रहे थे।