राजधानी दिल्ली में भड़की हिंसा से ना जाने कितने लोग बेघर हो गए। कईयों की दुकानों, गाड़ियों, घरों में आग लगा दी गई। कई के परिवार उन से अलग हो गए। इस हिंसा ने लोगों से उनके अपने छीन लिए। हिंसा ने कई घरों के ऐसे चिराग बुझा दिए जो परिवार में इकलौते कमाने वाले थे। ऐसी कई कहानियाँ अब धीरे-धीरे सामने आ रही हैं। इन्हीं में से एक हैं- प्रेम सिंह की कहानी। मंगलवार (फरवरी 25, 2020) को बृजपुरी इलाके में भड़की हिंसा में मरने वाले प्रेम सिंह भी अपने परिवार का एकमात्र सहारा थे। वह रिक्शा चलाकर गुजारा करते थे। मंगलवार सुबह दूध लेने के लिए निकले प्रेम सिंह की इस्लामी दंगाइयों ने हत्या कर दी।
नवभारत टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक प्रेम सिंह दिल्ली में रिक्शा चलाकर परिवार का भरण पोषण करते थे। उसकी मौत से परिवार में सदमे में है। पत्नी सुनीता गुरु तेग बहादुर अस्पताल के बाहर गोद में बच्चे को लिए अपने पति के शव का इंतजार कर रही हैं। वो कहती हैं कि उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं पता। उन्हें पड़ोसियों ने बताया कि दंगाइयों ने उनके पति की हत्या कर दी। सुनीता के साथ हॉस्पिटल के शवगृह के बाहर इंतजार कर रही उनकी पड़ोसी निशा ने बताया कि प्रेम सिंह का शव वेलकम पुलिस थाने के पास से बरामद हुआ था और शव की पहचान प्रेम सिंह की बहन सविता ने किया था।
पत्नी सुनीता का रो-रोकर बुरा हाल है। बूढ़ी माँ बेटे का शव देख बदहवास है। प्रेम सिंह घर में इकलौते कमाने वाले थे। प्रेम सिंह उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के रजपुरा गाँव के रहने वाले थे। वह 6 महीने पहले ही रोजगार की तलाश में गाँव से दिल्ली आए थे। कोई रोजगार नहीं मिला तो रिक्शा चलाने लगे थे। वह बृजपुरी इलाके में पत्नी, बच्चे, माँ और भाई-बहन के साथ किराए के एक मकान में रहते थे। प्रेम सिंह की तीन बेटियाँ हैं। बेटियों के सिर से पिता का साया उठ गया है। बच्चों के लिए दूध लाने के लिए निकले प्रेम दंगाइयों का शिकार हो गए और उनकी पत्नी इंतजार करती रह गई। पत्नी के आँसू नहीं रुक रहे। उनकी समझ में नहीं आ रहा कि वो तीनों बेटियों की परवरिश कैसे करेगी।
इसी तरह मुस्तफाबाद इलाके के रिक्शा चालक मोइनुद्दीन भी इस हिंसा का शिकार हुए। दंगाइयों ने हिंसा के दौरान उसके घर और रिक्शा को आग लगा दी। वो अब नाले के बगल में सोने को मजबूर हैं। मोइनुद्दीन अपने चार बच्चों और पत्नी के साथ खुशी से रह रहे थे, लेकिन 23 फरवरी को दंगे भड़कने के बाद रातों-रात उनके लिए सब कुछ बदल गया। उनकी पत्नी और चार बच्चे तब से लापता है। अब वह एक नाले के बगल में एक दुकान के बाहर खुले में सोने के लिए मजबूर हैं। उन्हें भोजन और पैसे के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
मोइनुद्दीन नम आँखों से कहते हैं, “मुझे अपने परिवार का पता नहीं है। जब स्थिति तनावपूर्ण होने लगी थी, तो मैंने अपनी पत्नी को बच्चों के साथ सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कहा था। तब से मेरे बच्चों और पत्नी का कुछ पता नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “हर कोई मेरी कहानी जानता है, मैंने पुलिस को सब कुछ बता दिया है लेकिन उन्होंने कहा कि स्थिति सामान्य होने के बाद वो देखेंगे कि क्या किया जा सकता है। कई लोग यहाँ अपने परिवार के सदस्यों की तलाश कर रहे हैं। जिस दिन दंगे शुरू हुए मैं 2,000 रुपए का राशन लाया था, अब सब कुछ समाप्त हो गया है।”
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