उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों के बाद हालात धीरे-धीरे सामन्य हो रहे हैं, लेकिन इसने जो जख्म दिए हैं उससे उबरने में कुछ लोगों की पूरी जिंदगी खप जाएगी। दंगों में लगी आग की तपिश जैसे-जैसे कम हो रही है, राख से एक से बढ़कर एक दर्दनाक कहानियाँ भी सामने आ रही हैं। ऐसी ही एक कहानी शिव विहार की झुग्गियों में रहने वाले एक गरीब परिवार का भी है। सुकून इतना भर है कि परिवार के पाँचों सदस्य अभी भी साँसें ले रहे हैं, लेकिन इसके अलावा उनके पास कुछ नहीं बचा है। कमाई का जो जरिया था वह तबाह किया जा चुका है। ऊपर से कर्ज का पहाड़ सिर पर अलग बोझ बन गया है। बेटी की शादी के लिए पेट काटकर जो पैसे हर रोज गुल्लक में जमा करते थे, दंगाई वो भी ले जा चुके हैं।
शिव विहार की झुग्गियों में रहकर मटके बेचने वाली बबीता की आँखों के सामने अब अँधेरा ही अँधेरा है। पति रामभजन मटका बनाते थे और बबीता उसे बेचकर घर चलाती थी। उसी में से हर रोज कुछ पैसे बचाकर गुल्लक में जमा कर रही थी। डेढ़ साल में इतना पैसा जमा हो गया था कि उम्मीद थी कि बिटिया की शादी के खर्च निकल आएगा। लेकिन, कौन जानता था कि उनके जीवन में 24 फरवरी की काली रात भी आएगी जब उनके गरीब परिवार की जिंदगी भर के सारे सपने देखते ही देखते बर्बाद हो जाएँगे। उस घटना का जिक्र कर बबीता की आवाज थम जाती है और आँसू तो सूखने का नाम ही नहीं लेती। 24 फरवरी की रात दंगाइयों ने उनकी झुग्गी तोड़कर उसमें आग लगा दी। आने वाले गर्मी के मौसम के लिए तैयार सारे मटके तबाह कर गए। दिल्ली को जलाने वालों को जब इतने से भी कलेजा शांत नहीं हुआ तो गरीब की बेटी की शादी के लिए जमा पैसों वाला गुल्लक भी अपने साथ ले गए।
रामभजन का परिवार यूपी के मेरठ का रहने वाला है और रोजी-रोटी की तलाश में शिव विहार तिराहे पर सड़क किनारे ही झुग्गी में रहता था। उस काली रात को याद कर आज भी उसका परिवार का शरीर सिहर जाता है। नारेबाजी हो रही थी। अचानक शिव विहार तिराहे पर पत्थरबाजी होने लगी और पेट्रोल बम फेंके जाने लगे। दंगाइयों के सिर पर खून सवार था। दुकानों-मकानों को जलाते जा रहे थे। दंगाइयों की नजर से इस गरीब की झुग्गी भी नहीं बची और उसे भी आग के हवाले कर दिया। परिवार ने तो किसी तरह भागकर अपनी जान बचा ली, लेकिन उनकी सारी जमा-पूँजी तहस-नहस कर दी गई। आने वाले सीजन की तैयारी हो चुकी थी। राजस्थान से मिट्टी लाकर लगभग 6 गाड़ियों जितना माल तैयार किया था। मटके तो नहीं ही बचे हैं, लेकिन उसके लिए राजस्थान से खरीदी गई मिट्टी का कर्ज बोझ जरूर बन गया है। परिवार में दो बेटे और बेटी शिवानी है। परिवार की दिन भर की मेहनत से इतनी कमाई हो जाती थी कि किसी तरह जीवन की गाड़ी चल रही थी और बेटी की शादी की भी चिंता कम होती जा रही थी। लेकिन, अब बबीता-रामभजन क्या करें?
शिव विहार में ऐसी कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं है। शिव विहार के गली नंबर 12 में नरेश चंद्र अपनी पत्नी मुन्नी देवी और बेटे-बहू के साथ रहते हैं। उनके दो छोटे बच्चे भी हैं। बुजुर्ग दंपती 25 फरवरी का जिक्र करते हुए फूट-फूटकर रोने लगते हैं। उन्होंने अपने जले हुए घर की तरफ इशारा करते हुए कहा कि उपद्रवियों ने सब कुछ खत्म कर दिया। उन्होंने किसी तरह भागकर अपनी जान बचाई। उपद्रवी घर के बाहर खडे होकर गालियाँ देने के साथ जिंदा जलाने की धमकी दे रहे थे।
उन्होंने बताया कि 25 फरवरी की शाम को बाबरपुर की तरफ से बड़ी संख्या में लोग शिव विहार में दाखिल हुए और घरों पर पथराव करने लगे। गेट बंद करके वो अपनी पत्नी, बेटे, बहू, पोती और पोते के साथ घर के अंदर वाले कमरे में घुस गए थे, लेकिन बाहर से ताबड़तोड़ पत्थर चल रहे थे। बाहर से घर में आग लगाई जा रही थी। इसके बाद वो अपने कुछ जानने वालों की मदद से बाहर निकले।
उनकी पत्नी मुन्नी देवी ने बताया कि जब वह घर में थी तब बाहर से लगातार पत्थर आ रहे थे। कोई पत्थर उनके सिर पर लगता तो कोई उनके सीने पर। उन्होंने बताया कि दंगाई उन्हें परिवार के साथ घर में ही जला देना चाहते थे। जब वो लोग किसी तरह घर से बाहर निकल गए तो दंगाइयों ने पहले तो लूटपाट की और फिर घर को फूँक दिया। अब जब वहाँ का माहौल थोड़ा शांत हुआ है तो नरेश चंद्र और उनकी पत्नी तो घर लौट आए हैं, लेकिन उनका बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अभी भी रिश्तेदार के घर पर ही हैं।
इसी तरह दंगाइयों ने इसी इलाके में रहने वाली सुधा के घर को भी निशाना बनाया। घर पर पथराव किया और फिर मुख्य गेट तोड़कर घर में घुस गए। वह पहली मंजिल पर अपने पति राजकुमार के साथ छिप गई और दरवाजा बंद कर लिया। उपद्रवी कपड़े, जेवर व अन्य सामान लूटकर और तोड़फोड़ कर चले गए। शुक्रवार (फरवरी 28, 2020) को ही वापस घर लौटी सुधा ने बताया कि डर के कारण वह उस दिन शाम से रात 11 बजे तक ऊपर ही बैठी रहीं।