दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि सहमति से यौन संबंध बनाते वक्त साथी की उम्र का सत्यापन करने के लिए आधार और पैन कार्ड देखने की जरूरत नहीं होती। अदालत ने यह टिप्पणी कथित हनीट्रैप केस के आरोपित को जमानत देते हुए की। महिला का दावा था कि जब उसे यौन संबंध बनाने के लिए आरोपित ने सहमत किया था तब वह नाबालिग थी।
कोर्ट ने यह भी पाया कि महिला के बयानों में भी विरोधाभास है। इसे देखते हुए हाई कोर्ट ने पुलिस को मामले की विस्तृत जाँच निर्देश दिया है। संदेह है कि खुद को पीड़ित बता रही महिला पेशेवर अपराधी हो सकती है। रेप का मामला पैसे वसूलने को लेकर दर्ज कराया गया हो।
जस्टिस जसमीत सिंह ने हंजला इकबाल को जमानत देते हुए टिप्पणी की, “सहमति से शारीरिक संबंध बनाने पर अपने साथी की जन्मतिथि की न्यायिक जाँच करने की आवश्यकता नहीं है। शारीरिक संबंध बनाने वाले साथी के आधार कार्ड, पैन कार्ड या स्कूल सर्टिफिकेट से उसका जन्मतिथि सत्यापित करने की आवश्यकता नहीं है।”
महिला ने दावा किया था कि जब उसके साथ संबंध बनाया गया, उस वक्त वह नाबालिग थी। पहले उसे सहमति से यौन संबंध बनाने का लालच दिया गया, फिर आरोपित ने उसे धमकाया और बलात्कार किया। आरोपित की ओर से पेश अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि महिला की तीन अलग-अलग जन्म तिथियाँ है। आधार कार्ड के अनुसार, उसकी जन्मतिथि 1 जनवरी 1998 है। लेकिन उसके पैन कार्ड में 25 फरवरी 2004 जन्मतिथि दर्ज है। पुलिस जाँच में उसकी एक और जन्मतिथि जून 2005 मिली।
जस्टिस ने सिंह 24 अगस्त को सुनाए आदेश में कहा, “सच बात यह है कि आधार कार्ड में जन्मतिथि 1 जनवरी 1998 है। यह इस बात को बताने के लिए काफी है कि याचिकाकर्ता किसी नाबालिग से शारीरिक संबंध नहीं बना रहा था।”
इसके साथ ही अदालत ने महिला के बयान में कई विसंगतियाँ पाईं। कोर्ट ने जमानत देते हुए जून 2021 से अप्रैल 2022 तक बड़ी रकम महिला के खाते में ट्रांसफर होने का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि महिला ने लगभग एक साल की अवधि में आरोपित से अपने खाते में 50 लाख रुपए ट्रांसफर करवाए थे। प्राथमिकी दर्ज होने से ठीक एक सप्ताह पहले आरोपित ने अंतिम भुगतान किया था। महिला ने उसके खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज करवाया था।