देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण का मौसम आ गया है। आज से 10 वर्ष पूर्व इसे ठंड का मौसम कहा जाता था, जिसकी शुरुआत रातरानी के फूलों की महक के तेज होने और शरीर में लगने वाली हलकी झुरझुरी से होती थी। अब यह ट्रेंड बदल गया है।
अब यह मौसम अपने आने का ऐलान दिल्ली को धुंध की चादर में लपेट कर और लोगों को सांस लेने दिक्कत और आँख में जलन का उपहार देकर करता है। जब मीडिया और सोशल मीडिया में ‘पराली, स्मॉग, प्रदूषण, विजिबिलिटी और AQI’ जैसे शब्द सुनाई देने लग जाएँ तो समझ जाइए कि कभी ठंड कहे जाने वाले मौसम का आगमन हो चुका है।
दिल्ली में प्रदूषण के साथ ही AQI का रोजनामचा आने लगा है। आज 15 नवम्बर, 2024 है। आज के दिन दिल्ली के आनंद विहार, चाणक्यपुरी और बाकी इलाकों में AQI का स्तर सुबह 400 के पार था जो कि दिन चढ़ते-चढ़ते 300 से नीचे आ गया। अँधेरा होते ही फिर ऊपर चला जाएगा। दिन में दिल्ली के AQI मीटर डाटा तक नहीं दिखा रहे।
दिल्ली-NCR में प्रदूषण को रोकने की खातिर CAQM नाम के सरकारी विभाग ने GRAP-3 नियम लागू कर दिए हैं। इसके तहत अब सड़कों पर BS-III वाहन बिलकुल नहीं चलेंगे जबकि BS-IV स्टैण्डर्ड के डीजल वाहनों के चलने पर भी रोक है। हर प्रकार की निर्माण गतिविधि भी प्रतिबंधित कर दी गई है।
इन नियम कानूनों से प्रदूषण को कितना फर्क पड़ता है, यह सबको पता है। दिल्ली में प्रदूषण कोई नई बात नहीं है। पिछले कम से कम 10 सालों से कमोबेश यही स्थिति चली आ रही है। हर साल इस पर हो हल्ला होता है और फरवरी-मार्च आते-आते लोग वापस निद्रा में चले जाते हैं।
प्रदूषण रोकने के लिए छोड़ना होगा ‘दोगलापन’
यह काफी कठोर शब्द है लेकिन दिल्ली में प्रदूषण रोकना है, तो सबसे पहले उन लोगों को दोगलापन छोड़ना होगा, जो अपने आप को पर्यावरणविद कहते हैं। जब भी आप प्रदूषण को लेकर बहस सुनते हैं तो सबसे पहले नाम दिवाली के पटाखों का आता है। इसके बाद गाड़ियों का और फिर उद्योग धंधों का।
इस जमात के लोग दिवाली के पटाखों पर रोक लगवाते हैं, इसको लेकर याचिकाएँ लगाते हैं। क्योंकि वह हिन्दू त्यौहार का हिस्सा हैं। बता दिया जाता है कि किसी भी शास्त्र में नहीं लिखा दिवाली पर पटाखे जलाए जाएँ। खूब शोर मचाया जाता है। गाड़ियों पर तुरंत रोक लगवा दी जाती है। क्योंकि इसे उपयोग करने वाला मिडिल क्लास है।
वह भी समस्या सह लेगा लेकिन सड़क पर उतर कर हंगामा नहीं करेगा। उद्योग धंधे तो आम तौर पर भारत में हर नेता और बुद्धिजीवी के निशाने पर रहते ही हैं। इस मामले में भी उन्हें दोषी बना दिया जाता है। उनको बंद करने की माँग कर दी जाती है।
लेकिन एक मुद्दा है, जिस पर कभी आपको बुद्धिजीवी वर्ग लेख लिखते, चर्चाएँ और गोष्ठियाँ करते और सोशल मीडिया पर प्रलाप करते हुए नहीं दिखेगा। यह है पराली का जलना। इस पर आपको बुद्धिजीवी वर्ग कभी ना विरोध करता मिलेगा और ना ही इसे दोषी ठहराएगा।
इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि नवम्बर माह में दिल्ली के प्रदूषण में पराली के धुएँ का हिस्सा 30% के पार था। यह दिन के हिसाब से घटता बढ़ता रहता है। यानि हम जो आज दिल्ली में स्मॉग देख रहे हैं इसका बड़ा जिम्मेदार पंजाब-हरियाणा से आने वाली हवा है। इसमें भी पंजाब में कहीं कहीं अधिक मात्रा में पराली जली है।
लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग इस पर नहीं लिखता क्योंकि उसे पता है कि इस पराली जलाने वाले वर्ग के पास स्ट्रीट पॉवर है। वह दिल्ली की सीमाएँ जाम कर सकता है, किसानी के नाम पर लालकिले पर चढ़ सकता है, महीनों तक पंजाब और हरियाणा के बीच सड़कों को बंद कर सकता है।
पंजाब में 2024 में पराली जलाने की 7500 से अधिक घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। यह आँकड़े पंजाब सरकार के ही हैं। एक और आँकड़ा बताता है कि 2023 में पराली जलाने की घटनाओं में पंजाब का हिस्सा 93% था। पंजाब में हरियाणा के मुकाबले कम से कम 15 गुना अधिक पराली जलाई गई थी।
लेकिन फिर भी इसके खिलाफ एक्शन लेने से सरकारें बचती हैं। दिखावे के लिए कुछ लोग पकड़े जाते हैं, कुछ पर जुर्माना लगता है लेकिन कमोबेश स्थिति वही रहती है। इसके पीछे मुद्दा वोट का है। यदि वह एक्शन ले लेंगी तो वोट जाने का खतरा है।
तेरा-मेरा वाली राजनीति भी जिम्मेदार
प्रदूषण क्यों नहीं रुकता, इसके लिए तेरा-मेरा वाली राजनीति जिम्मेदार है। दिल्ली के भीतर प्रदूषण रोकने की सबसे पहली जिम्मेदारी आम आदमी पार्टी सरकार की आती है। लेकिन खुले में जलते कूड़े का प्रबंधन करने, दिल्ली में निर्माण गतिविधि को सही से नियमित करने और कोयला जलना रोकने के बजाय आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त है।
जब पंजाब में AAP की सरकार नहीं थी तब वह पंजाब-हरियाणा पर पूरा दोष डालती थी। जब पंजाब में उसकी सरकार बन गई तो उसके निशाने पर हरियाणा और यूपी की बसें और पराली आ गईं। वह खुद एक्शन लेने के बजाय केंद्र सरकार को अब जिम्मेदार ठहराती है।
IIT कानपुर कि एक रिपोर्ट बताती है कि यदि दिल्ली में 9000 रेस्टोरेंट के भीतर तंदूरों में जल रहे कोयले को रोका जाए, कूड़ा जलाना बंद किया जाए, रेत और मौरंग जैसे मैटेरियल ढंके जाएँ, कंक्रीट बनाते समय पानी छिड़का जाए और कूड़े को जलाने समेत ऐसे ही 10 एक्शन लिए जाएँ तो दिल्ली में प्रदूषण का स्तर 100 के नीचे आ सकता है।
लेकिन यह सब करने के बजाय दिल्ली की AAP सरकार इस बात में ज्यादा विश्वास रखती है कि वह जिम्मेदारी से बच जाए। इसका एक और उदाहरण NGT की एक रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में यमुना नदी 54 किलोमीटर बहती है। इसमें 22 किलोमीटर का हिस्सा पूरी यमुना में मिलने वाली 76% गंदगी का जिम्मेदार है।
ऐसे में यदि दिल्ली सरकार यमुना की ही सफाई पर काम कर ले तो हम हर साल छठ पर झाग की तस्वीरें ना देखें। लेकिन जब आप यमुना पर AAP सरकार से प्रश्न करेंगे तो वह कहेगी कि केंद्र सरकार ने क्या किया, नमामि गंगे का क्या हुआ, यह नहीं बताएगी कि आखिर उसने क्या काम किया।
यदि यह राजनीति ना हो और इस पर केंद्र तथा राज्य सरकार मिल कर काम करें तो हमें दिल्ली में सर्दियों में साफ़ आसमान देखने को मिल सकता है। चीन ने बीजिंग समेत कई शहरों में यह कर दिखाया है। यदि ईमानदारी से काम हो तो दिल्ली भी रहने लायक हो सकती है।