Monday, November 18, 2024
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16 दिसंबर को बस फूँका, 17 को हिंदुओं पर पथराव: दिल्ली दंगों में ताहिर हुसैन के बयान से नए खुलासे

FIR संख्या 59 से संबंधित अपनी ‘फाइनल रिपोर्ट’ में दिल्ली पुलिस ने अदालत में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल किया है, उससे दिल्ली हिंसा में ताहिर हुसैन की संलिप्तता को लेकर नए खुलासे हुए हैं।

ऑपइंडिया ने जुलाई 2020 में ताहिर हुसैन के कबूलनामे पर रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें ताहिर हुसैन ने बताया था कि कैसे उसने दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों की योजना बनाई थी और कैसे उसने कानून की पकड़ से बचने के लिए झूठा पीसीआर कॉल करके ढोंग रचा ताकि वह पीड़ित लगे।

अब दिल्ली पुलिस ने FIR संख्या 59 से संबंधित आरोप पत्र में ताहिर हुसैन द्वारा किए गए एक और खुलासे का जिक्र किया है। यह बताता है कि दिल्ली के दंगों कि योजना कितने बेहतर तरीके से तैयार की गई थी। बीते साल दिसंबर के मध्य से इस पर अमल शुरू कर दिया गया था।

FIR संख्या 59 से संबंधित अपनी ‘फाइनल रिपोर्ट’ में दिल्ली पुलिस ने अदालत में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल किया है, उससे दिल्ली हिंसा में ताहिर हुसैन की संलिप्तता को लेकर नए खुलासे हुए हैं।

ताहिर हुसैन ने अपने बयान में खुलासा करते हुए बताया कि उसी ने 16 दिसंबर को भजनपुरा में बस में आग लगाने वाली भीड़ को इकट्ठा किया था। 17 दिसंबर को हिंदुओं पर पथराव करने के लिए भीड़ जुटाई थी। 15 दिसंबर को जामिया मिलिया इस्लामिया के विरोध और उसके बाद की पुलिस कार्रवाई के बाद से अपनी भूमिका का उसने खुलासा किया है।

ताहिर हुसैन ने बताया है कि 15 दिसंबर को जामिया के विरोध प्रदर्शन और दंगाइयों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई के बाद वह काफी आक्रोश में आ गया था। उसने अपने क्षेत्र के समुदाय विशेष के लोगों से बात करने का फैसला किया कि कैसे नागरिकता संशोधन अधिनियम खास समुदाय के खिलाफ है, इसकी वजह से समुदाय विशेष के लोग अपनी नागरिकता खो देंगे और फिर उन्हें भारत से भागना पड़ेगा।

16 दिसंबर को उसने अपने क्षेत्र के लोगों से बात करना शुरू किया और उन्हें उस दिन 12 बजे फारुखिया मस्जिद, बृजपुरी पुलिया के पास इकट्ठा होने के लिए कहा। ताहिर हुसैन खुद फारुखिया मस्जिद लगभग 12:30 बजे पहुँचा। उसने बताया कि 1 बजे तक कम से कम 1,000 मजहबी लोग उसकी बात सुनने के लिए इकट्ठा हो गए थे।

उसने बताया है कि जब वह 16 दिसंबर को भीड़ से मुखातिब था तभी वहाँ पर अचानक से पुलिस पहुँच गई। पुलिस को देखते ही कई लोग छिपने के लिए मस्जिद के अंदर चले गए और नमाज पढ़ने का बहाना बनाया। वहीं कुछ लोग पास वाली गलियों में छुप गए।

ताहिर हुसैन ने खुलासा किया है पुलिस के चले जाने के बाद लोग जामा मस्जिद के लेन 10 में इकट्ठा हुए और सीएए के ‘मजहब विरोधी’ होने के बारे में फिर से बैठक शुरू की। इन बैठकों के लिए 50-60 लोग मौजूद थे। ताहिर कहता है कि रात के 8 बजे उन लोगों ने आगे की रूपरेखा तय करने के लिए अल हिंद नर्सिंग होम के डॉ. एमएम अनवर से मिलने का फैसला किया।

एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए उसने बताया कि अपने लोगों से अपनी ‘मौजूदगी दर्ज कराने के लिए’ भजनपुरा में एक बस पर पथराव करने के लिए कहा।

Excerpt from the disclosure statement by Tahir Hussain

‘अपनी मौजूदगी दर्ज कराने’ वाला बयान कई चीजों की ओर इशारा करता है। इसका मतलब यह हो सकता है कि वह इस अवसर का इस्तेमाल ताकत दिखाने के रूप में करना चाहता था, ताकि हिंसा के मास्टरमाइंड उसे गंभीरता से लेंगे। उल्लेखनीय है कि पहले हमने बताया था चार्जशीट में पता चला था कि 18 जनवरी को शाहीन बाग में ताहिर हुसैन, खालिद सैफी और उमर खालिद के बीच एक बैठक हुई थी, जिसमें उमर खालिद ने ताहिर हुसैन को दंगों में समर्थन देने का वादा किया था।

ऐसे में यह पूरी तरह से संभव है कि 16 दिसंबर को हिंसा की स्थिति पैदा करके ताहिर हुसैन ‘अपनी ताकत’ दिखाना चाहता था। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि वह योजना के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए ‘अपनी ताकत दिखाना चाहता था’।

हालाँकि ताहिर हुसैन के इस बयान का निहितार्थ उसके बयान से पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।

ताहिर हुसैन का कहना है कि 17 दिसंबर को डॉ. अनवर के साथ उसने नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ एक रैली निकालने की योजना बनाई थी। रैली के दौरान, फारुखिया मस्जिद के सामने ताहिर हुसैन ने 70-80 लोगों से बात करते हुए कहा था कि पीएम मोदी और अमित शाह के रहते हुए अगर सीएए पास हो जाता है, तो समुदाय के सभी लोगों को भारत छोड़कर भाग जाना होगा। ताहिर ने उन्हें यह भी बताया कि यदि वे भारत से भागना नहीं चाहते हैं, तो ‘उन्हें (पीएम मोदी-अमित शाह) उनको घुटनों पर लाने के लिए’ तैयार रहना चाहिए।

ताहिर हुसैन ने खुलासा किया कि उस समय फिर से पुलिस के आ जाने से रैली की योजना रद्द कर दी गई। भीड़ को विभिन्न दिशाओं में तितर-बितर कर दिया गया। उसका कहना है कि रैली रद्द होने के कारण, वह काफी गुस्से में था। 17 दिसंबर की शाम लगभग 8 बजे, उसने तिरपाल फैक्ट्री के पास 200-250 लोगों को इकट्ठा किया और बिजली जाने का फायदा उठाते हुए, भीड़ से हिंदुओं पर पथराव शुरू करवा दिया दिया। उसने कबूल किया कि वो लोग 30 मिनट तक हिंदुओं पर हमला करते रहे और तभी पुलिस ने आँसू-गैस भी छोड़ी थी। जब एक बड़ा पुलिस बल मौके पर पहुँचा, तो भीड़ तितर-बितर हो गई और ताहिर हुसैन भाग गया।

दिलचस्प बात यह है कि चार्जशीट में बताया गया है कि ताहिर हुसैन द्वारा स्वीकार की गई दोनों घटनाओं की पुष्टि स्थानीय पुलिस स्टेशन से की गई थी। 16 दिसंबर 2019 और 17 दिसंबर 2019 को इन दोनों घटनाओं से संबंधित एफआईआर दयालपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई है।

1. 16 दिसंबर: एफआईआर नंबर 510/19 दिनांक 16 दिसंबर।

2. 17 दिसंबर: एफआईआर नंबर 512/90 दिनांक 17 दिसंबर।

ताहिर हुसैन द्वारा दिल्ली हिंसा के संबंध में दिए गए बयान के निहितार्थ

ऑपइंडिया शुरुआत से ही ये कहते आ रहा है कि 24 और 25 फरवरी को भड़की हिंसा को अलगाव के रूप में नहीं देखा जा सकता है। दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगे दिसंबर के बाद से उमर खालिद, ताहिर हुसैन आदि जैसे लोगों द्वारा सुनियोजित और कैलकुलेटेड तरीके से की गई हिंसा का नतीजा था। ताहिर हुसैन का बयान अब केवल इनकी पुष्टि करता है।

’लिबरल’ बुद्धिजीवियों ने ये नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की कि दिल्ली दंगे खास समुदाय के खिलाफ एक योजनाबद्ध “पोग्राम” था। हालाँकि, सामने आए हर डिटेल यही इशारा करता है कि दंगाई हिंदुओं को निशाना बनाने के साथ ही इस ‘सरकार को घुटनों के बल’ लाना चाहते थे।

इसके लिए यह याद रखना भी महत्वपूर्ण है कि ताहिर हुसैन के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर पिछली चार्जशीट में क्या आरोप लगाया गया था।

  1. ताहिर हुसैन ने 8 जनवरी को शाहीन बाग में एक बैठक के दौरान उमर खालिद और खालिद सैफी के साथ दंगों की योजना बनाई थी।
  2. शेल कंपनियों से कई लेनदेन थे, जो संदिग्ध थे। चार्जशीट में ताहिर हुसैन के खाते से कई ऐसे लेनदेन का विवरण दिया गया है जो बताता है कि दंगों के लिए उन्हें पैसे मिलने शुरू हो गए थे। कुछ पैसे शेल कंपनियों के माध्यम से भी निकाले गए थे।
  3. उमर खालिद ने ताहिर हुसैन को आश्वासन दिया था कि आर्थिक रूप से, इस्लामी संगठन पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) दंगों में मदद करने के लिए तैयार था।
  4. पुलिस का कहना है कि हुसैन ने जनवरी में खजूरी खास पुलिस स्टेशन में 100 राउंड के साथ अपनी लाइसेंसी पिस्टल जमा की थी, उसे 22 फरवरी को ही यानी दंगों से पहले निकाला गया था। आरोप-पत्र में कहा गया है कि जाँच के दौरान हुसैन अपने हथियार को छुड़ाने के संबंध में पुलिस को संतोषजनक जवाब देने में विफल रहा। 
  5. 24 और 25 फरवरी की रात हुसैन ने सुरक्षा का हवाला देते हुए अपने परिवार को मुस्तफाबाद में अपने पैतृक घर में स्थानांतरित कर दिया था, जबकि वह खुद वहीं पर रहा, ताकि अगले वह अगले दिन की आपराधिक साजिश के अनुसार पूरी स्थिति पर नज़र रख सके और हिंदुओं के खिलाफ और समुदाय के साथ खड़ा हो सके।
  6. ताहिर हुसैन ने झूठे पीसीआर कॉल किए, ताकि दंगे में उसकी भागीदारी सामने न आए।
  7. ताहिर हुसैन ने सुनिश्चित किया कि सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिए जाएँ ताकि सबूत दर्ज न हों ।

दिसंबर में हुई दंगे की शुरुआत

हिंसा की शुरुआत 15 दिसंबर को हुई जब दंगाइयों ने राष्ट्रीय राजधानी में तोड़फोड़ की। आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक और दिल्ली के सुन्नी वक्फ बोर्ड के प्रमुख अमानतुल्लाह खान को जामिया नगर में हुए दंगों की जगह देखा गया था।

उसी दिन उस इलाके में ‘हिंदुओं से आजादी’ के नारे लगाए गए। उन हिंसक विरोध-प्रदर्शनों के दौरान बसों में भी आग लगा दी गई। उसी रात, दिल्ली पुलिस ने जामिया मिलिया इस्लामिया के परिसर में घुसकर उपद्रवियों को खदेड़ा।

दो दिन बाद सीलमपुर में बड़े पैमाने पर दंगे भड़क उठे। दिल्ली युद्ध क्षेत्र में बदल गई। एक स्कूल बस पर भी हमला किया गया और आग लगा दी गई। भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर भी पथराव किया। 17 दिसंबर को राष्ट्रीय राजधानी में शांति लौट आई, लेकिन यह एक असहज शांति थी। सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए पुलिस की उपस्थिति अभी भी काफी अधिक संख्या में थी। 27 दिसंबर को सीलमपुर में फिर से सुरक्षा बढ़ाई गई और निगरानी के लिए ड्रोन तैनात किए गए। इस सब के बीच, शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों द्वारा सड़क को अवरुद्ध किया जाना जारी रहा।

ताहिर हुसैन के बयान से पता चलता है कि कैसे 15 दिसंबर से ही हिंसा को भड़काने की योजना बनाई गई थी और हिंसा के पीछे का उद्देश्य दोतरफा था- पहला, हिंदुओं पर हमला करना और दूसरा, केंद्र सरकार को अपने घुटनों पर लाना।

(नुपूर जे शर्मा द्वारा मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई यह रिपोर्ट यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं)

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