Sunday, November 17, 2024
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विकलांग, आतंकवादी, गुंडा, दुष्ट, लुटेरा… स्वामी रामभद्राचार्य पर ओछी टिप्पणी कर बनाया वीडियो, राम मंदिर मामले में उनकी गवाही की खीझ या कथाओं में जुटती भीड़ से दिक्कत?

क्या भारत भूमि पर अब भारत की परंपरा और संस्कृति के वाहकों को ही गाली दी जाएगी और वो खुला घूमता फिरेंगे? रामभद्राचार्य के लिए इस तरह की भाषा की निंदा की जानी चाहिए।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स उद्भाग के साथ आम आदमी को अपने बात रखने का और एक बड़े वर्ग तक पहुँचने का मंच मिला। लेकिन, एक किस्म के ब्रीड ने इसे विष-वमन करने का मंच भी बना दिया। कभी मुस्लिमों के ठेकेदार बन कर तो कभी दलितों के ठेकेदार बन कर ये लोग भड़काऊ बातें करते हैं। हिन्दू धर्म को गाली देना इनका पसंदीदा पेशा है। कुछ इसी तरह अब ‘Dhakad TV’ के अरुण गौतम ने स्वामी रामभद्राचार्य को बदनाम करने का प्रयास किया है।

चित्रकूट के रामभद्राचार्य किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। रामभद्राचार्य से वामपंथी और इस्लामी गिरोह की खीझ समझी जा सकती है, क्योंकि उन्होंने राम मंदिर के लिए लंबी लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने 15 जुलाई, 2003 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक एफिडेविट दायर कर बताया था कि गोस्वामी तुलसीदास ने ‘दोहा शतक’ में बाबर की करतूतों और उसके शागिर्द मीर बाक़ी द्वारा राम मंदिर ध्वस्त किए जाने का जिक्र किया है, इसकी निंदा की है।

रामानंदी संप्रदाय के रामभद्राचार्य एक बड़े विद्वान हैं, जिन्होंने कई ग्रंथों पर टीकाएँ लिखी हैं। वो दृष्टिहीन हैं, लेकिन कहा जाता है कि उनके आध्यात्मिक चक्षु खुले हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फिर से विजय की वो भविष्यवाणी कर चुके हैं। अब उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाए जाने की घटना का जिक्र क्या कर दिया, वामपंथी गिरोह को मिर्ची लग गई है। रामभद्राचार्य पर हमले का असली कारण यही है कि हिन्दू उनका सम्मान करते हैं, उनके लाखों अनुयायी हैं।

ये तो सबको पता है कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने ही कारसेवकों पर होली चलाने का आदेश दिया था, जिसके बाद कई रामभक्त मारे गए थे। इसके बाद से ही उन्हें ‘मौलाना मुलायम’ कहा जाने लगा। ये मुस्लिम तुष्टिकरण की हद थी। इसी तरह बसपा संस्थापक कांशीराम और मुलायम ने जब गठबंधन किया था, तब उनके समर्थकों ने ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम’ का नारा उछाल कर हिन्दू धर्म को बदनाम किया था।

अब एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस नारे को हवा दिया है, जिन्होंने रामचरितमानस पर भी ओछी टिप्पणी की थी। इसी धारा को आगे बहाते हुए अरुण गौतम ने रामभद्राचार्य की दृष्टिहीनता का मजाक बनाते हुए उन्हें ‘आँखों से और मानसिक रूप से विकलांग’ बता दिया। वीडियो में उसने रामभद्राचार्य को ‘डर के साए में जीने वाला प्राणी’ बताते हुए ‘गुंडा’ करार दिया और कहा कि मुलायम-कांशीराम के डर से ‘जय श्री राम’ नहीं बोल पा रहे थे।

उसे रामभद्राचार्य के नारे ‘मरे मुलायम-कांशीराम, प्रेम से बोलो जय श्री राम’ के नारे से दिक्कत थी। इससे संत का आशय यह था कि मुलायम सिंह यादव और कांशीराम नहीं रहे, लेकिन ‘जय श्री राम’ आज भी गूँजायमान है। इसे अरुण गौतम ने डर समझ लिया और उनके हिम्मत को चुनौती देने लगा। उसने रामभद्राचार्य को ‘सड़क छाप गुंडा’ और ‘आतंकी’ तक करार दिया। साथ ही उन पर मंच पर नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए उनके अनुयायियों को ‘अक्ल के अंधों’ कहा।

साथ ही उसने रामभद्राचार्य की विद्वता का भी मजाक बनाया। बता दें कि स्वामी रामभद्राचार्य को कई ग्रन्थ याद हैं। जबकि, खुद को दलितों के ठेकेदार मानने वाला अरुण गौतम ने दावा किया कि 7 से 70 की उम्र तक रामायण लगातार सुनने पर किसी को भी याद हो जाएगा। उसने संतों को ‘लुटेरा’ कह कर संबोधित किया और धार्मिक किताबों को उनका हथियार बताया। उसने संतों को शोषक भी करार दिया और पाकिस्तान के आतंकियों से भी गए-गुजरे व खतरनाक बताया।

उसने संतों के लिए ‘दुष्ट’ शब्द का प्रयोग करते हुए OBC समाज के लोगों को ही एक तरह से बेवकूफ बता दिया। उसने OBC और SC/ST वर्ग के लोगों को सबसे बड़ा मूर्ख करार देते हुए उन्हें भड़काया कि वो साधु-संतों के प्रवचन में न जाएँ और न ही उनके लिए कार्यक्रम आयोजित करें। हिन्दुओं को बाँटने की कोशिश करने वाले अरुण गौतम के यूट्यूब चैनल पर कई लोगों ने उसका समर्थन किया, ये बड़े आश्चर्य की बात है।

सबसे बड़ी बात कि रामभद्राचार्य को ‘डरपोक’ बताने वाले अरुण गौतम के वीडियो पर जब लोगों ने पुलिस को टैग करना शुरू कर दिया तो वो ट्विटर से वीडियो डिलीट कर के निकल गया। हालाँकि, उसके यूट्यूब चैनल पर ये वीडियो अब भी मौजूद है। क्या भारत भूमि पर अब भारत की परंपरा और संस्कृति के वाहकों को ही गाली दी जाएगी और वो खुला घूमता फिरेंगे? रामभद्राचार्य के लिए इस तरह की भाषा की निंदा की जानी चाहिए।

तुलसी पीठ के रामभद्राचार्य 73 वर्ष के हैं, ऐसे में अरुण गौतम ने उनकी उम्र का भी लिहाज नहीं किया। दिव्यांगों के लिए वो विश्वविद्यालय चलाते हैं, ऐसे में वो समाज के उत्थान में भी एक बड़ा योगदान दे रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों पर उन्होंने कई टीकाएँ लिखी हैं, रिसर्च पेपर लिखे हैं। रामभद्राचार्य द्वारा लिखे गए पुस्तकों की संख्या 100 से ऊपर है। वो कई भाषाओं के ज्ञाता हैं और रामकथा में पारंगत हैं। मात्र 2 महीने की उम्र में ही उनकी दृष्टि चली गई थी। इसके बावजूद उन्होंने राम मंदिर मामले में अदालत में गवाही दी।

वो समाजवादी पार्टी की ही सरकार थी, जिसने अगस्त 2013 में स्वामी रामभद्राचार्य को हाउस अरेस्ट में डाल दिया था। उन्हें अयोध्या में 84 कोसी परिक्रमा के लिए जाने से रोक दिया गया था। मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए अखिलेश यादव की सरकार ने कानून-व्यवस्था का बहाना बनाया। हालाँकि, न्यायालयने उन्हें रिहा करने का आदेश देकर अखिलेश यादव की सपा सरकार को झटका दिया। खुद अटल बिहारी वाजपेयी भी रामभद्राचार्य की विद्वता और व्याकरण पर उनकी पकड़ के कायल थे।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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