Friday, October 18, 2024
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काँवड़ियों की धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखना और दंगा रोकना उद्देश्य: यूपी सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा, अदालत ने रोक बढ़ाई

राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में आगे कहा है, "शांतिपूर्ण और सौहार्द्रपूर्ण तीर्थयात्रा सुनिश्चित करने के लिए निवारक उपाय करना अनिवार्य है। पिछली घटनाओं से पता चला है कि बेचे जा रहे खाद्य पदार्थों के प्रकार के बारे में गलतफहमी के कारण तनाव और अशांति पैदा हुई है। निर्देश ऐसी स्थितियों से बचने के लिए एक सक्रिय उपाय है।”

उत्तर प्रदेश सरकार ने काँवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों में नाम प्रदर्शित करने के अपने निर्देशों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बचाव किया है। राज्य सरकार ने कहा कि यह निर्देश काँवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को गलती से भी ठेस न पहुँचे तथा शांति बनी रहे, इसे ध्यान में रखकर जारी किया गया था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश पर रोक को बढ़ा दिया।

राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा, “निर्देशों के पीछे का विचार पारदर्शिता और उपभोक्ता/काँवड़ियों की यात्रा के दौरान उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के बारे में सूचित करना था, ताकि गलती से भी उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस ना पहुँचे। ऐसी स्थितियों से जाहिर तौर पर तनाव पैदा होगा, जहाँ लाखों-करोड़ों लोग पवित्र जल लेकर नंगे पैर चल रहे हैं।”

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि ये निर्देश भेदभावपूर्ण नहीं हैं, क्योंकि ये काँवड़ यात्रा मार्ग पर सभी खाद्य विक्रेताओं पर समान रूप से लागू होते हैं। चाहे उनका धार्मिक या सामुदायिक जुड़ाव कुछ भी हो। इसका उद्देश्य काँवड़ यात्रा के दौरान सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था सुनिश्चित करना भी है, क्योंकि बड़ी संख्या में प्रतिभागी होते हैं और सांप्रदायिक तनाव की आशंका बनी रहती है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में आगे कहा है, “शांतिपूर्ण और सौहार्द्रपूर्ण तीर्थयात्रा सुनिश्चित करने के लिए निवारक उपाय करना अनिवार्य है। पिछली घटनाओं से पता चला है कि बेचे जा रहे खाद्य पदार्थों के प्रकार के बारे में गलतफहमी के कारण तनाव और अशांति पैदा हुई है। निर्देश ऐसी स्थितियों से बचने के लिए एक सक्रिय उपाय है।”

सरकार ने कहा है कि काँवड़ियों को दिए जाने वाले भोजन के बारे में छोटी-सी आशंका भी उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचा सकती हैं। इससे मुजफ्फरनगर जैसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाके में अशांति फैलने की आशंका रहती है। सरकार ने कहा है कि ये निर्देश संविधान के अनुच्छेद 51A में निहित नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों के अनुरूप हैं। इसमें सभी लोगों के बीच शांति बहाली की बात है।

दरअसल, हाल में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार के इन निर्देशों पर रोक लगा दिया था। बेंच ने कहा था कि खाद्य विक्रेताओं को ‘मालिकों के नाम/पहचान प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए’। इसके बाद शुक्रवार (26 जुलाई 2024) की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इन पर लगाए गए रोक को बढ़ा दिया है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई 2024 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के काँवड़ रूट पर दुकानदारों एवं वहाँ करने वालों के नाम दर्शाने वाले आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। इसी के साथ ही दोनों राज्यों को नोटिस जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दुकानों को सिर्फ यह बताना होगा कि वे मांसाहार बेचते हैं या शाकाहारी खाना।

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के फैसले के खिलाफ कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका दाखिल की थी। सिंघवी ने दावा किया था कि यात्रा के दौरान नाम दिखाने वाला यह आदेश अल्पसंख्यकों के बॉयकाट का जरिया बनेगा। सिंघवी ने कोर्ट में यह भी दलील दी कि इस संबंध में स्पष्ट आदेश नहीं है, बल्कि आदेश को अस्पष्ट भाषा में लिखा गया है।

इसके बाद कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को स्वेच्छा से अपना नाम दुकान पर बताने को कहा गया है कि तो इसमें क्या समस्या है। कोर्ट ने कहा कि मामले को तूल देने की जरूरत नहीं है। जस्टिस रॉय ने कहा कि वह केरल में एक मुस्लिम द्वारा चलाए जाने वाले मुस्लिम रेस्टोरेंट में जाते थे जबकि हिन्दू द्वारा चलाए जाने वाले में जाने कतराते थे। उन्होंने इसके पीछे साफ़ सफाई का हवाला दिया।

कोर्ट ने कहा कि दुकानों को शाकाहारी या मांसाहारी खाने का प्रकार और उसकी कैलोरी बतानी होगी। साथ ही अपना लाइसेंस भी प्रदर्शित करना होगा। कोर्ट ने कहा था कि अगर दोनों राज्यों के इस आदेश को लागू होने से नहीं रोका गया तो इससे सेक्युलरिज्म और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन होगा। प्रशासन काँवड़ रूट पर शुद्ध भोजन के लिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आदेश जारी कर सकता है। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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