अल्लामा इकबाल के नाम से जाना जाने वाला मोहम्मद इकबाल, जिसने कभी ‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा’ लिखा था, वो देश के विभाजन के लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार था। वो न सिर्फ मुस्लिम लीग, बल्कि जिन्ना के लिए भी अगुवा की तरह था। मोहम्मद इकबाल ने ही मजहबी आधार पर मुस्लिमों के लिए सबसे पहले अलग देश की माँग की थी, लेकिन उसे अब तक देश में काफी इज्जत मिलती रही है। लेकिन अब दिल्ली विश्वविद्यालय ने तय किया है कि मोहम्मद इकबाल से जुड़े चैप्टर्स को डीयू के सिलेबल से हटा दिया जाएगा।
डीयू के कुलपति योगेश सिंह ने कहा, “इकबाल भारत विभाजन की शुरुआत करने वालों में से थे, और पाकिस्तान के संस्थापक माने जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के सलाहकार भी थे। उन्होंने 1904 में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में पढ़ाई करते हुए ‘सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्ताँ हमारा’ लिखा, उन्होंने ताराना-ए-हिंद भी लिखा, लेकिन खुद कभी इसे स्वीकार नहीं किया।” इकबाल उर्दू और फारसी के शायर थे, जिन्होंने हिंदुस्तान को छोड़कर पाकिस्तान को चुना और उसके निर्माण की बैचारिक नींव डाली।
बुधवार (14 अगस्त 2024) को विभाजन विभीषिका दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डीयू के कुलपति योगेश सिंह ने कहा, “इकबाल के बारे में सभी को अपना विचार रखने का अधिकार है, लेकिन डीयू देश की एकता और अखंडता के साथ समझौता नहीं करेगा। डीयू में महात्मा गाँधी, भीमराम आंबेडकर, विनायक दामोदर सावरकर के बारे में पढ़ाया जाएगा, लेकिन देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार इकबाल के बारे में अब नहीं पढ़ाया जाएगा।”
उन्होंने कहा, “शिक्षा और शोध के साथ-साथ विश्वविद्यालयों को ऐसे विचार भी तैयार करना चाहिए, जो राष्ट्र पर कभी संकट आने पर देश के लिए एकजुट खड़े हो सकें।” उन्होंने यह भी कहा कि कोई नहीं चाहता था कि भारत का बंटवारा हो, लेकिन किसी ने भी इसके खिलाफ विरोध नहीं किया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी मौजूद रहे।
बता दें कि इकबाल ने अपनी रचनाओं में इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया है। तराना ए मिल्ली में उसने लिखा है कि “काबा-पहला घर, जिसे बुतपूजकों से मुक्त करा लिया है। हम इसके संरक्षक हैं और यह हमारा रक्षक है।”
इकबाल के लाहौर ने निकल कर ब्रिटेन जाने के बीच साल 1904-1910 के बीच वैचारिक परिवर्तन आए थे। वो इंग्लैंड में जाकर कट्टरपंथी बन गया था और पाकिस्तान के निर्माण की वैचारिक बीज उसी के दिमाग की उपज थी। उसने 29 दिसंबर 1930 को मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण दिया था और साफ कहा था कि वो मुस्लिमों के लिए अलग देश की माँग करता है। उसने कहा था कि हिंदुस्तान में इस्लाम की रक्षा नहीं हो सकती और न ही मुस्लिमों की, ऐसे में अलग देश ही एकमात्र उपाय है।
बता दें कि साल 2023 में ही डीयू की समिति ने एक प्रस्ताव पारित कर बीए-सेकंड ईयर के सिलेबल में शामिल रहे इकबाल पर आधारित सामग्री को हटाने की सिफारिश की थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी एग्जीक्यूटिव काउंसिल के अप्रूवल के बाद इक़बाल को सिलेबस से हटाने की प्रक्रिया चल रही थी, जिसे बाद में हटा दिया गया।