Sunday, December 22, 2024
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काली पूजा पर मंदिर में दी जाएगी 10000 पशुओं की बलि, रोक लगाने से कलकत्ता हाई कोर्ट का इनकार: कहा- पूरे पूर्वी भारत को शाकाहारी नहीं बना सकते

पिछले साल मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ से भी इस संगठन ने 'बोल्ला काली पूजा' के अवसर पर 10,000 बकरियों और भैंसों के वध पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। पीठ ने पशु बलि को रोकने के लिए अंतरिम राहत से इनकार कर दिया था। हालाँकि, पीठ पश्चिम बंगाल में पशु बलि की वैधता के बड़े सवाल पर विचार करने के लिए सहमत हुई।

कलकत्ता हाई कोर्ट की अवकाश पीठ ने काली पूजा” के अवसर पर कोलकाता के बोल्ला काली मंदिर में पशुओं की बलि पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि पूर्वी भारत में धार्मिक प्रथाएँ उत्तर भारत से अलग हैं। इसलिए उन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना सही नहीं होगा। यह कई समुदायों के लिए ‘आवश्यक धार्मिक प्रथा’ हो सकती हैं।

न्यायमूर्ति विश्वजीत बसु और अजय कुमार गुप्ता की खंडपीठ अखिल भारतीय कृषि गो सेवक संघ की दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें याचिकाकर्ताओं ने शुक्रवार (1 नवंबर 2024) को होने वाली पशुओं की बलि को रोकने के लिए तत्काल राहत की माँग की थी। हालाँकि, पीठ ने इस पर पूरी सुनवाई के बिना अंतरिम आदेश देना सही नहीं। है।

हालाँकि, हाई कोर्ट की पीठ ने कहा कि माना कि पशु बलि एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, साथ ही यह भी कहा कि उत्तर भारत और पूर्वी भारत में आवश्यक प्रथा क्या है, इसमें बहुत अंतर है। पीठ ने टिप्पणी की, “यह विवाद का विषय है कि पौराणिक पात्र वास्तव में शाकाहारी थे या मांसाहारी।”

संगठन ने अदालत से भारतीय पशु कल्याण बोर्ड को राज्य के विभिन्न मंदिरों में ‘सबसे वीभत्स और बर्बर तरीके से की जाने वाली अवैध पशु बलि’ को रोकने के लिए तत्काल निर्देश देने की माँग की। जब उनके वकील से पूछा गया कि क्या वे सभी मंदिरों में प्रतिबंध चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि फिलहाल वे दक्षिण दिनाजपुर के एक विशेष मंदिर में प्रतिबंध चाहते हैं।

पीठ ने कहा, “एक बात तो स्पष्ट है, यदि अंततः भारत के पूर्वी भाग को शाकाहारी बनाने का लक्ष्य है तो यह नहीं हो सकता है… महाधिवक्ता हर दिन मछली के के बिना नहीं रह सकते!” इसके बाद राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता ने कहा कि वह पूरी तरह से मांसाहारी हैं।

इस पर जस्टिस बसु ने कहा, “आपको धारा 28 (पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960) की वैधता को चुनौती देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि बलि की प्रथा काली पूजा या किसी अन्य पूजा की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है, जैसा कि भारत के पूर्वी भाग के नागरिक इसका पालन करते हैं। खान-पान की आदतें अलग-अलग होती हैं।”

दरअसल, जस्टिस बसु जिस धारा का उल्लेख कर रहे थे उसमें कहा गया है, “इस अधिनियम में निहित कोई भी बात किसी भी समुदाय के धर्म द्वारा अपेक्षित तरीके से किसी भी पशु को मारना अपराध नहीं बनाएगी।” इसके बाद हाई कोर्ट की पीठ ने राहत देने से इनकार करते हुए आगे की सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध कर दिया।

पिछले साल मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ से भी इस संगठन ने ‘बोल्ला काली पूजा’ के अवसर पर 10,000 बकरियों और भैंसों के वध पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। पीठ ने पशु बलि को रोकने के लिए अंतरिम राहत से इनकार कर दिया था। हालाँकि, पीठ पश्चिम बंगाल में पशु बलि की वैधता के बड़े सवाल पर विचार करने के लिए सहमत हुई।

बोल्ला गाँव बालुरघाट शहर से 20 किलोमीटर दूर बालुरघाट-मालदा राजमार्ग पर स्थित है। इस गाँव में एक ऐतिहासिक मंदिर है, जहाँ श्रद्धालु माँ काली की पूजा करते हैं। मुख्य काली पूजा रास पूर्णिमा के बाद शुक्रवार को होती है। दक्षिण दिनाजपुर जिले के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा के दौरान मंदिर में इकट्ठा होते हैं और प्रार्थना करते हैं। इस दौरन तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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