दिल्ली के शाहदरा जिले में स्थित कड़कड़डूमा कोर्ट में एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत की अदालत ने दिल्ली दंगा के मामले में फैजान खान को जमानत देने से इनकार कर दिया। फैजान खान मोबाइल टेलीकॉम कम्पनी भारती एयरटेल में कार्यरत था। उसने अदालत में खुद पर लगे आरोपों को आधारहीन और झूठा बताया। लेकिन, उसकी असलियत कुछ और है। दिल्ली दंगों में फैजान खान का भी बड़ा रोल है।
दिल्ली दंगों और जामिया से फैजान खान का कनेक्शन जानने से पहले ये जानते हैं कि कोर्ट में उसने वकील के माध्यम से अपने बचाव में क्या कहा। उसने दावा किया कि दिल्ली में दंगे कराने की किसी भी साजिश में वो शामिल नहीं है। बता दें कि फैजान खान को जुलाई 30, 2020 को गिरफ्तार किया गया था। कोर्ट में उसकी तरफ से वही बयान दिए गए, जो अक्सर वामपंथी मीडिया आतंकियों और दंगाइयों को बचाने के लिए प्रयोग में लाता है- सहानुभूति वाली बातें।
उसने कहा कि वो अपने परिवार में इकलौता कमाने वाला है। साथ ही उसने ये भी दलील दी कि जिस दुकान में वो काम करता है, उसके मालिक को गिरफ्तार नहीं किया गया है और यहाँ तक कि एफआईआर में भी उसका नाम नहीं है। लेकिन, स्पेशल प्रॉसिक्यूटर ने कोर्ट में उसकी पोल खोल दी और उस पर लगे आरोपों के बारे में बताया। बता दें कि इस मामले को क्राइम ब्रांच ने दर्ज किया था और इसे 6 मार्च को स्पेशल सेल को ट्रांसफर किया गया था।
दिल्ली पुलिस ये तो कह ही चुकी है कि फ़रवरी 23-25 को दिल्ली में हुए दंगे पूर्व-नियोजित थे और इसमें इसकी साजिश जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद ने विभिन्न संगठनों के लोगों के साथ मिल कर रची थी। ऑपइंडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह साजिश के तहत उमर खालिद ने जगह-जगह लोगों को भड़काते हुए भाषण दिया, जिसमें उसने उन्हें सड़क पर आकर प्रदर्शन करने को कहा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा के दौरान ये सब करने का मकसद था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये दिखाया जाए कि भारत में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता है। इसके बाद जामिया कोआर्डिनेशन कमिटी का गठन हुआ और दिल्ली सहित जगह-जगह दंगे हुए, जिसका परिणाम ट्रांस-यमुना क्षेत्र के नार्थ-ईस्ट दिल्ली में दंगों के रूप में देखने को मिला। मौजपुर, जफराबाद, चाँदबाग़, गोकुलपुरी और शिव विहार में एसिड बोतलों, पेट्रोल बम, बंदूकों और ईंट-पत्थर सहित अन्य हथियारों के साथ हमले किए गए।
इसी साजिश के तहत 23 फ़रवरी को महिलाओं और बच्चों को जफराबाद मेट्रो स्टेशन के सामने वाली रोड को जाम करने के लिए भेजा गया। 50 से ज्यादा लोग मारे गए, सैकड़ों घायल हुए और सार्वजनिक संपत्ति का जबरदस्त नुकसान हुआ। ऑपइंडिया के सूत्रों के अनुसार, गिरफ्तार किए गए आरोपितों के मोबाइल फोन्स को जाँच के लिए भेजा गया था। CERT-In जाँच से पता चला कि कई व्हाट्सप्प ग्रुप्स के जरिए दंगे भड़काने के लिए साजिश रची गई। नीचे संलग्न की गई दंगों से 2 सप्ताह पहले की ट्वीट में आप जामिया कोआर्डिनेशन कमिटी के उपद्रवियों को ओखला में विरोध प्रदर्शन करते देख सकते हैं:
Delhi: Jamia Coordination Committee’s (JCC) protest march against CAA, NRC, & NPR, from Jamia to Parliament, stopped by security forces near Holy Family Hospital in Okhla. pic.twitter.com/McBArSRDOy
— ANI (@ANI) February 10, 2020
ऑपइंडिया के सूत्र बताते हैं कि इसी दौरान जामिया कोआर्डिनेशन कमिटी द्वारा मोबाइल नंबर 9205448022 का धड़ल्ले से प्रयोग किए जाने की बात सामने आई। जाँच में पता चला कि जामिया के ही एक छात्र ने ही इसकी व्यवस्था की थी, जिसके बाद इसे जामिया कोआर्डिनेशन कमिटी के दफ्तर में उसने अपने किसी परिचित के जरिए भेजा था। एयरटेल से इस नंबर का CDR और CAF डिटेल्स निकाले गए। पता चला कि जो फोटो दिया गया था, वो आधार से मैच नहीं कर रहा था।
जाँच में पता चला कि आधार नंबर 942539738556 गुलाम रसूल के बेटे अब्दुल जब्बार के नाम पर है, जो जामिया नगर के जाजी कॉलनी स्थित गफ्फार मंजिल में रहता है। इस नंबर को ओखला विहार के ‘गोल्डन कम्युनिकेशन’ द्वारा जारी किया गया था। अब्दुल जब्बार का पता लगाया गया। पुलिस से पूछताछ में उसने इस सिम कार्ड को जारी करवाने से अनभिज्ञता जाहिर की। इसके बाद असली बात पता चली।
ऑपइंडिया के सूत्रों के अनुसार, 29 जुलाई को फैजान खान को पूछताछ के लिए बुलाया गया, क्योंकि एयरटेल प्रमोटर के रूप में उसने ही इस सिम कार्ड को जारी किया था। मोहम्मद तल्हा की ओखला विहार में स्थित दुकान ‘गोल्डन कम्युनिकेशन्स’ में फैजान एयरटेल कम्पनी के प्रमोटर के रूप में पिछले 1.5 साल से कार्यरत था। उससे विस्तृत पूछताछ हुई। उसने बताया कि जामिया का एक छात्र नेता उसके पास आया था और उसे फेक आईडी से सिम निकलवाने के बदले अधिक रुपए देने का लालच दिया।
इसके बाद उसने उसी दुकान में जिओ के प्रमोटर गौरव की तस्वीर और अब्दुल की आधार आईडी के साथ सिम कार्ड निकाल कर जामिया के उक्त छात्र नेता को दे दिया। उसने रुपए के लालच में ऐसे करने की बात कही। जब उसने ये कबूल कर लिया कि उसने जान-बूझकर ये सब किया है, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। अब इस मामले की जाँच चल रही है, लेकिन इतना साफ़ है कि उसने जान-बूझकर ये सब किया और उसे शुरू से सब पता था।
उसके खिलाफ यूएपीए एक्ट के तहत कार्रवाई की जा रही है। उसे 2 अगस्त को जुडिशल कस्टडी में भेजा गया। 8 अगस्त को जारी किए गए एक आदेश में उसकी जुडिशल कस्टडी को सितम्बर 11 तक बढ़ा दिया गया। इस पर जोर देना ज़रूरी है कि इस मामले में जाँच भी जारी ही है। चूँकि दिल्ली दंगों में कई संगठनों और आरोपितों ने मिल-जुलकर साजिश की, जिससे लोगों की जान गई- इसीलिए इस मामले में पुलिस भी सतर्कता से जाँच कर रही है।
कोर्ट ने भी माना कि लोगों के मन में विभिन्न माध्यमों से डर का माहौल बनाने के लिए ऐसा किया गया। दिल्ली दंगों के मामले में छात्र नेता सफूरा जरगर और कॉन्ग्रेस की पररषद रहीं इशरत जहाँ के खिलाफ भी यूएपीए के तहत ही मामला चल रहा है। कोर्ट ने शुरूआती तौर पर फैजान खान को गलत आईडी-फोटो से सिम कार्ड जारी कर जामिया छात्र नेता को देने का दोषी मना है, जिसका प्रयोग जामिया कोआर्डिनेशन कमिटी ने व्हाट्सप्प ग्रुप्स में किया।
कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी और यूएपीए में जमानत देने के अलग-अलग नियम हैं और Prima Facie रूप में फैजान खान पर लगे आरोप सही प्रतीत हो रहे हैं, इसीलिए उसे जमानत नहीं दी जा सकती है। साथ ही आरोपित के खिलाफ शुरूआती सबूत होने की बात भी कोर्ट ने मानी है। अदालत ने कहा कि सबूतों और आरोपों को देखते हुए फैजान खान को जमानत देने का कोई कारण नहीं दिखता, इसलिए उसकी याचिका ख़ारिज की जाती है।