बीते दिनों देश भर में नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ भड़की हिंसा के पीछे सोशल मीडिया एक बड़ा कारण रहा। लोगों ने इस प्लेटफॉर्म का इस बीच जमकर इस्तेमाल (गलत संदर्भों में) किया और सीएए के खि़लाफ़ लोगों को भड़काने के लिए फर्जी न्यूज फैलाई। अब ऐसी स्थिति में दिल्ली पुलिस ने नागरिकता कानून के बारे में सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार कर रहे लोगों पर लगाम कसने के लिए इस पर बड़ा एक्शन लिया और आरोपितों की शिनाख्त की। दिल्ली पुलिस ने इस पूरे मामले में अब तक 100 ऐसे अकाउंट्स की पहचान की है, जिन्होंने विरोध प्रदर्शन से पहले न केवल सोशल मीडिया पर फेक न्यूज फैलाई बल्कि हिंसा करवाने और दंगे भड़काने का भी काम किया। ऐसा पहली बार हो रहा है कि पुलिस फेक न्यूज फैलाने वालों पर आईटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कर रही है।
गौरतलब है कि पुलिस की रडार में इस समय वे लोग भी हैं, जिन्होंने गैरकानूनी रूप से लोगों को एकत्रित किया और उनको भड़काने का काम किया। खबरों के मुताबिक पुलिस ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को पत्र लिखा है ताकि वे उन 70 अकॉउंट्स को ब्लॉक कर दें, जिन्होंने अपुष्ट खबरों की सच्चाई जाने बिना उसे फैलाने का काम किया और बाद में व्हॉट्सऐप के जरिए प्रदर्शनकारियों को भड़काया। पुलिस का मानना है कि इन्हीं संदेशों के कारण दिल्ली के जामिया नगर और अन्य इलाकों में हिंसा फैली।
अपनी जाँच में पुलिस ने पाया कि सीलमपुर में कम से कम 12 ऐसे व्हॉट्सऐप ग्रुप थे, जिन्हें स्थानीय लोगों द्वारा संचालित किया जा रहा था और जिसमें इंटरनेट से सामग्री कॉपी पेस्ट करके ये संदेश दिया जा रहा था कि पुलिस पर पलटकर हमला करें।
इसके अलावा कई वेबसाइट भी फेक तस्वीर और स्टोरी शेयर करते पुलिस की नजर में आई हैं। इस संदर्भ में पुलिस ने उनके मालिक पर मामला दर्ज किया है। पुलिस ने एजेंसियों ने अपील की है कि वे इस तरह की वेबसाइट्स को ब्लॉक करें।
जानकारी के अनुसार, जामिया नगर में हुई हिंसा के पीछे सोशल मीडिया का बड़ा हाथ था। क्योंकि यहाँ कुछ लोगों ने व्हॉट्सएप के जरिए अफवाह उड़ा दी थी कि पुलिस प्रदर्शनकारियों को जान से मार रही है और हॉस्टल में घुसकर पीट रही है। यही वो कारण था, जिससे लोग जामिया नगर में सड़कों पर उतर आए। वहीं सीलमपुर में भी किसी ने यूट्यूब की एक फर्जी वीडियो को सर्कुलेट कर दिया था, जिसमें प्रदर्शनकारियों के ऊपर पुलिस की बर्बता दिख रही थी। इसके अलाव दरियागंज में हुए दंगों में भी 10,000 लोगों की भीड़ को व्हॉट्सऐप और फेसबुक के जरिए ही भड़काया गया था।
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