गाजियाबाद के लोनी में अब्दुल नामक आलिम की दाढ़ी काटने के मामले को ‘जय श्रीराम’ का एंगल देने पर ट्विटर की मुश्किलें अब तक खत्म नहीं हुईं हैं। खबर है कि पुलिस ने इस मामले में ट्विटर के पूर्व अधिकारी समेत 5 लोगों को फिर नोटिस भेजा है। इससे पहले एक नोटिस 21 जून को भेजा गया था और अब दूसरा 2 जुलाई को भेजा गया है।
जानकारी के मुताबिक, जिन लोगों को नोटिस भेजा गया, उसमें कॉन्ग्रेस नेता शमा मोहम्मद और द वायर के मालिक सिद्धार्थ वर्धराजन का नाम भी शामिल है। इनके अलावा सलमान निजामी, मशकूर उस्मानी और ट्विटर इंक के पूर्व रेजीडेंट ग्रीवांस ऑफिसर फॉर इंडिया धर्मेंद्र चतुर का नाम भी है। इन सबको पुलिस ने इनके बयान दर्ज कराने के लिए नोटिस भेजा है। गाजियाबाद की लोनी पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत ये नोटिस जारी किया है। इसमें आरोपितो को एक हफ्ते के अंदर हाजिर होकर जवाब देने के लिए कहा गया है।
इससे पहले अब्दुल समद की दाढ़ी काटने के मामले में फर्जी एंगल देने पर पुलिस ने 17 जून को ट्विटर इंडिया के एमडी मनीष माहेश्वरी को नोटिस भेजा था। इसमें उन्हें 7 दिन में उनका बयान दर्ज कराने को कहा गया था, लेकिन तब वह पुलिस के समक्ष पेश नहीं हुए थे। बाद में कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी गाजियाबाद पुलिस को माहेश्वरी के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई करने पर रोक लगा दी और आदेश में कहा कि पुलिस डिजिटल तरीके से माहेश्वरी से पूछताछ कर सकती है।
बता दें कि अब्दुल समद के मामले में ट्विटर पर फर्जी कंटेंट को फैलाने का आरोप है। गाजियाबाद पुलिस ने इस संबंध में समाचार वेबसाइट द वायर, पत्रकार मोहम्मद जुबैर और राणा अय्यूब के अलावा कॉन्ग्रेस नेताओं सलमान निजामी, मस्कूर उस्मानी, शमा मोहम्मद और लेखक सबा नकवी के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
उन पर उस वीडियो को शेयर करने का आरोप लगाया गया कि जिसमें एक बुजुर्ग अब्दुल शमद सैफी ने दावा किया था कि कुछ युवकों ने उनकी कथित रूप से पिटाई की थी, जिन्होंने उनसे ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के लिए भी कहा। हालाँकि पुलिस का दावा है कि सांप्रदायिक अशांति फैलाने के लिए वीडियो शेयर किया गया था। पुलिस ने बताया कि हमला इसलिए हुआ क्योंकि आरोपित बुलंदशहर निवासी सैफी द्वारा बेचे गए ‘ताबीज’ से नाखुश था। पुलिस ने इस मामले में सांप्रदायिक एंगल से इनकार किया था।
देश भर में वायरल हुए उस वीडियो में सैफी ने कथित तौर पर कहा था कि उन पर कुछ युवकों ने हमला किया और ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के लिए मजबूर किया। लेकिन जिला पुलिस के मुताबिक घटना के दो दिन बाद सात जून को दर्ज अपनी प्राथमिकी में उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा। 15 जून को दर्ज प्राथमिकी में कहा गया था कि गाजियाबाद पुलिस ने घटना के तथ्यों के साथ एक बयान जारी किया था लेकिन इसके बावजूद आरोपितों ने अपने ट्विटर हैंडल से वीडियो नहीं हटाया।