गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने राज्य वक्फ ट्रिब्यूनल के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें उसने रेलवे (Indian Railway) को दरगाह के निकट पटरियाँ बिछाने से यह कहते हुए मना कर दिया था यह वक्फ की संपत्ति है। हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को पलटते हुए कहा कि यह दरगाह रेलवे की जमीन पर बनी है और रेलवे ने उसे भक्तों के कारण नहीं तोड़ा तो इसका मतलब यह नहीं कि उसके आसपास की जमीन दरगाह की संपत्ति हो गई।
हाईकोर्ट ने कहा कि दावा किया जा रहा है कि यदि रेल पटरियों को बिछाने की अनुमति दी जाएगी तो दरगाह तक लोगों को पहुँचने में बाधी आएगी, क्योंकि पटरियाँ दरगाह के दोनों ओर बिछाई जाएँगी। इस मामले में ट्रिब्यूनल द्वारा दरगाह के ट्रस्टी के पक्ष में दिए गए निर्णय से इस राष्ट्रीय परियोजना पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है। हाईकोर्ट ने दरगाह के ट्रस्टी के पक्ष में दी रेल पटरियाँ बिछाने की दी गई निषेधाज्ञा को रद्द कर दिया।
दरअसल, गुजरात हाईकोर्ट वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए निर्णय को लेकर जिला कलेक्टर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। वक्फ ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में अधिकारियों को रेलवे ट्रैक बिछाने से पहले वक्फ बोर्ड से अनुमति लेने के लिए कहा था। इस दौरान ट्रिब्यूनल ने वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 91 का हवाला दिया।
दरअसल, रेलवे की संपत्ति पर बनी फिरोज साहब नी दरगाह के एक ट्रस्टी ने वक्फ अधिनियम का हवाला देते हुए ट्रिब्यूनल में आवेदन दिया कि वहाँ चार निर्माण किए हैं और वहाँ पर नियमित रूप से मुस्लिम भक्त आते रहते हैं। कई अवसरों पर यहाँ बड़ा आयोजन भी होता है। इसलिए अगर नया ट्रैक बिछाया जाता है तो वह वक्फ की संपत्ति से होकर गुजरेगा और वहाँ नमाज पढ़ने वालों को भी दिक्कत होगी।
वहीं, हाईकोर्ट में याचिका देने वाले अधिकारियों ने दरगाह के ट्रस्टियों से कहा था कि रेलवे लाइन दरगाह से नहीं, बल्कि उसके रास्ते से गुजर रही है और दरगाह से उसकी उचित दूरी भी है। अधिकारियों ने ट्रस्टियों को वैकल्पिक रास्ता निकालने के लिए बातचीत के लिए बुलाया, लेकिन वे नहीं आए और वक्फ ट्रिब्यूनल चले गए।
लाइव लॉ के अनुसार, उधर वक्फ बोर्ड ने कहा कि उसके यहाँ फिरोज साहब नी दरगाह नाम की कोई वक्फ संपत्ति दर्ज नहीं है, लेकिन मुस्लिम ने दस्तावेज के जरिए बताया कि वहाँ दरगाह मिजार-ए-कुतुबी नाम की एक वक्फ संपत्ति है। इसलिए अधिकारी वक्फ संपत्ति के पास पटरी बिछाकर बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता।
न्यायाधिकरण और वक्फ बोर्ड के रुख के बाद अधिकारियों ने मामले को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने कहा कि जब संपत्ति वक्फ के यहाँ पंजीकृत नहीं है तो ट्रस्टी होकर संपत्ति का दावा कैसे किया जा सकता। इसके बाद प्रतिवादी ने खुद को मजार का प्रबंधक बताया। हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायाधिकरण को बिना स्थिति स्पष्ट हुए वक्फ बोर्ड के पास भेजने का आदेश नहीं देना चाहिए।