पिछले दिनों गुरूग्राम में एक हमले की ख़बर सामने आई थी जिसे बाद में साम्प्रदायिक हिंसा का रूप देने की कोशिश की गई। इस घटना में मोहम्मद बरकत आलम, जो कि इस हमले का केंद्रबिन्दु था उसने फोन पर बात करने से मना करते हुए अपना मोबाइल फोन चचेरे भाई मुर्तजा को थमा दिया था। मुर्तजा ने स्वराज मैगज़ीन की पत्रकार स्वाति गोयल को बताया कि 25 वर्षीय बरकत युवा और भोला-भाला है और उसके अभिभावक ने उसे मीडिया से न बात करने की सलाह दी है। उनका मानना है कि मीडिया से बातचीत करके वो किसी भी तरह का कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहते।
कड़ी मशक्कत के बाद मुर्तजा गुरूग्राम में अपने कार्यस्थल पर पत्रकार स्वाति गोयल से इस मामले पर बातचीत के लिए राजी हो गया। लेकिन इस मुलाक़ात के लिए उसने एक शर्त भी रखी और वो शर्त थी कि मुलाक़ात के दौरान किसी तरह की वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं की जााएगी।
पत्रकार स्वाति के अनुसार, मुर्तजा, नई दिल्ली से लगभग 30 किलोमीटर दूर गुरुग्राम के जैकब पुरा में एक सिलाई की दुकान में काम करता है। दुकान ‘याकूब पुरा मीट मार्केट’ नामक एक गली में एक तहखाने में स्थित थी। हालाँकि, एक बंद दुकान के बाहर ‘होलसेल चिकन और रिटेल’ के एक छोटे बैनर के अलावा मीट मार्केट का कोई संकेत नहीं था। आसपास की सभी दुकानें बंद थीं। स्थानीय लोगों का कहना है कि दो साल पहले मीट मार्केट बंद कर दिया गया था।
25 मई को, बरकत ने शहर के पुलिस स्टेशन में अज्ञात पुरुषों के ख़िलाफ़ FIR दर्ज कराई, जिसके अनुसार जब वह करीब 10.15 बजे सदर बाजार में जामा मस्जिद से लौट रहा था, तो कथित तौर पर छः अज्ञात लोगों ने उस पर हमला किया – इनमें से चार मोटरसाइकिल पर थे और दो पैदल थे। वे नशे में थे, उन्होंने बरकत को इस क्षेत्र में टोपी न पहनने को कहा। उन्होंने उसे गालियाँ दीं और दो लोगों ने उसकी पिटाई भी की। इसके अलावा उसे जान से मारने की धमकी भी दी गई।
पुलिस ने धारा 153A (धर्म के आधार पर समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 147 (दंगा भड़काना), 149 (ग़ैर-क़ानूनी विधानसभा), 323 (चोट पहुँचाना) और आईपीसी या भारतीय दंड संहिता की 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया।
अगले दिन यह मामला एक साम्प्रदायिक हिंसा के रूप में सामने आया क्योंकि बरकत ने कई टेलीविजन समाचार चैनलों को बयान दिय कि उसे ‘जय श्री राम’ और ‘भारत माता की जय’ कहने के लिए मजबूर किया गया था। लेकिन, जल्द ही बरकत के इस झूठ का पर्दाफ़ाश हो गया। पुलिस की छानबीन में जब यह बात सामने आई कि मुस्लिम युवक के साथ मारपीट तो हुई थी, लेकिन इस दौरान न तो उसकी टोपी फेंकी गई और न ही उसकी शर्ट फाड़ी गई। यह सब सीसीटीवी फुटेज को खंगालने के बाद सामने आया।
पत्रकार स्वाति गोयल जब बुधवार (29 मई) को बरकत से मिलीं, तो उसे (बरकत) यह नहीं पता था कि उसके कई दावों को गुरुग्राम पुलिस एक दिन पहले ही ख़ारिज कर चुकी थी। दरअसल, 28 मई को गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त मोहम्मद अकिल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की और कहा कि बरकत के कई आरोप FIR में उसके बयान के साथ-साथ सीसीटीवी कैमरों की फुटेज से मेल नहीं खाते।
उदाहरण के लिए, बरकत ने अपनी FIR में छः लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करवाया था, जबकि सीसीटीवी फुटेज में केवल दो ही आदमी दिखाई दे रहे थे, जिसमें से केवल एक ने ही उस पर हमला किया था। इसके अलावा बरकत ने मीडिया को बताया कि उसकी सिर की टोपी को जबरन हटाया गया। वीडियो में दिखाया गया कि जब हमलावर ने उसके सिर पर वार किया था, तो उसकी टोपी अव्यवस्थित हो गई, जिसे बरकत ने ख़ुद अपनी जेब में रख लिया था। बरकत ने मीडिया को बताया था कि उसे ‘जय श्रीराम’ और ‘भारत माता की जय’ बोलने के लिए कहा गया। इस पर पुलिस का कहना था कि अगर वास्तव में ऐसा था तो FIR में इसका ज़िक्र क्यों नहीं किया गया?
पुलिस आयुक्त अकील ने मीडिया को यहाँ तक बताया कि उन्हें लगता है कि जैसे पीड़ित को इस घटना के लिए पहले से ही ट्रेनिंग दी गई हो। अकील ने कहा, “मुझे लगता है कि किसी ने उसे प्रशिक्षित किया है, क्योंकि अगर आप मीडिया में दिए गए उसके बयानों पर ग़ौर करेंगे तो आपको यह महसूस होगा कि उसे सिखाया गया है।”
यदि पूरे मामले को ग़ौर से देखा जाए तो यह समझते देर नहीं लगेगी कि मोहम्मद बरकत ने एक मामूली विवाद को साम्प्रदायिक विवाद बनाने की पूरी कोशिश की। ऐसा लगता है जैसे बरकत को इस घटना के लिए पूरी तरह से समझा-बुझाकर तैयार किया गया हो जिससे समाज में हिन्दुओं के लिए नफ़रत का बीज बोया जा सके।