उदाहरण एकदम ताजा हैं, अतुल सुभाष के सुसाइड मामले के बाद तीन खबरें मीडिया में और आई हैं। दो में महिलाओं के परिजनों ने बताया कि उन्होंने तंग आकर सुसाइड कर ली और तीसरी ने एक ने रेप का केस दर्ज कराया। तीनों केसों में आरोपितों को बाइज्जत रिहाई मिल चुकी है। एक मामले में तो कोर्ट ने ये भी कहा है कि जितनी प्रताड़ना का उल्लेख किया गया है सुसाइड के उकसावे के लिए काफी नहीं लगती।
प्रताड़ना, सुसाइड के लिए उकसाने के लिए काफी नहीं
- पहला मामले में फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में एक महिला ने शादी के 12 साल बाद आत्महत्या कर ली थी, जिसके बाद उसके पिता ने पति और सास-ससुर पर प्रताड़ना देने के आरोप लगाए थे। बाद में इसी मामले में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए अपनी टिप्पणी की।
उन्होंने कहा आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला तब होता जब यह साबित होता कि आरोपित की गतिविधियाँ इतनी गंभीर थीं कि पीड़ित को अपनी जान लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। न्यायालय ने ये भी कहा कि उत्पीड़न की घटनाएँ आत्महत्या मामले से बहुत पहले हुई थीं और उन घटनाओं से ऐसा कुछ नहीं पता चलता कि लगे कि पति ने जानबूझकर पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाया था।
सबूत नहीं, केस खारिज
- इसी तरह एक अन्य मामला फिर कोलकाता हाईकोर्ट का है। हाल में वहाँ जस्टिस अजॉय कुमार मुखर्जी ने एक केस पर सुनवाई करते हुए एक शख्स के खिलाफ दायर शिकायत को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि उसने अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाया।
कोर्ट ने याचिका खारिज करने के दौरान ये कहा कि चूँकि प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से पता नहीं चल रहा कि सुसाइड के लिए महिला को पति ने उकसाया इसलिए ये केस खारिज किया जाता है। इस मामले में शिकायत लड़की के परिजनों ने साफ कहा था कि उनकी बेटी को उत्पीड़ित किया गया और दहेज के नाम पर इतना प्रताड़ित किया गया कि उसने आत्महत्या कर ली। हालाँकि जाँच के बाद कोर्ट को यही फैसला ठीक लगा कि वो आरोपित के खिलाफ दायर केस को रद्द कर दें तो उन्होंने ऐसा किया।
रेप का आरोप या प्रतिशोध की भावना
- तीसरा मामला मध्यप्रदेश से जुड़ा है। एक महिला ने अपने पति और उसके परिजनों के खिलाफ बलात्कार और दहेज के आरोप में एफआईआर दर्ज करवाई। लेकिन जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की अदालत ने इस केस को ये कहकर खारिज कर दिया कि ये मामले प्रतिशोध की भावना से किया गया लगता है।
महिला ने अपनी शिकायत में कहा था कि उसे दहेज लाने के लिए परेशान किया गया। इसके अलावा उसके साथ अप्राकृतिक संभोग किया गया, उसके देवर ने उसके साथ संबंध बनाए, उसके संग दुर्व्यवहार और मारपीट भी हुई। इसके अतिरिक्त पति ने उसकी निजी वीडियो बनाईं, उसे धमकियाँ दी गईं। मामला गंभीर था इसलिए पुलिस ने इस केस में एफआईआर दर्ज की थी। लेकिन पति कोर्ट गया, दलील दी गई, अपने सुशिक्षित होने की बात बताई और न्यायालय ने सोच विचार करके उसकी याचिका को खारिज कर दिया।
इन तीनों ही मामलों में न्यायिक जाँच में क्या सामने आया, क्या नहीं, ये जाँच अधिकारी बेहतर बताएँगे और कोर्ट ने अपने निर्णय किन सबूतों को देखकर दिए ये कोर्ट बता पाएगा… लेकिन इन दोनों चरणों तक पहुँचने से पहले क्या सामाजिक और मानवता के स्तर पर ये सवाल नहीं खड़े होते कि ऐसे मामले में जहाँ पति-पत्नी में से कोई भी अपने साथी से त्रस्त होकर आत्महत्या को गले लगा रहा है तो गलती कहाँ है। ऐसा भी तो संभव है कि आत्महत्या से ठीक पहले शायद वो घटनाएँ न घटी हों कि किसी ने इतना बड़ा कदम उठाया बल्कि ये कदम उन छोटी-छोटी घटनाओं का नतीजा हो जो जीवन में लंबे समय से चली आ रही हैं। हमें ये समझने की जरूरत है कि लोग आत्महत्या जैसा बड़ा कदम अपने जीवन में घटी घटनाओं का हालिया क्रम देखकर नहीं उठाते। कई बार कुछ पुरानी घटनाएँ उनकी मनोस्थिति पर ऐसा असर डालती है कि उनके लिए उस परिस्थिति से निकलना भारी होता है और कानून भी दलीलों और सबूतों के आधार पर असली पीड़ित की पहचान नहीं कर पाता।