इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाथरस घटना को लेकर पीड़िता के परिजनों की तरफ से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया है। पीड़िता के परिजनों ने दाखिल याचिका में प्रशासन पर जबरन घर में कैद करने का आरोप लगाया था। वहीं अब मृतका के परिजनों ने कोरोना टेस्ट कराने से भी मना कर दिया है। बता दें इससे पहले नार्को टेस्ट और सीबीआई जाँच के लिए भी इनकार कर चुके हैं।
हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सुरक्षा दी गई है। ऐसे में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने मृतका के पिता ओम प्रकाश और 6 अन्य की याचिका पर दिया। खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि यदि परिवार को कोई शिकायत है तो वे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर ने के लिए स्वतंत्र होंगे।
कोरोना टेस्ट के लिए सैंपल लेने पहुँची टीम को भी पीड़ित परिवार ने इनकार कर दिया। दरअसल परिवार के पास बिटिया की मृत्यु के बाद से ही नेताओं और मीडिया का आना-जाना लगा हुआ है, जिससे परिवार को कोरोना का खतरा है।
हाल ही में आम आदमी पार्टी के विधायक कुलदीप कुमार कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद पीड़ितों से मिलने पहुँचे थे। जिस कारण संक्रमण का खतरा बढ़ चुका है। यही वजह है कि प्रशासन इनकी कोरोना जाँच कराना चाहता है। साथ ही मृतका की बहन को कुछ दिनों से खाँसी की शिकायत भी है।
हाथरस कांड
गौरतलब है कि 19 वर्षीय पीड़िता का उसके गाँव में 14 सितंबर को चार लोगों द्वारा कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार और हमला किया गया था। हालाँकि, आरोपितो ने इससे इनकार किया था और फोरेंसिक रिपोर्ट में भी यही बात सामने आई है।
मंगलवार (सितम्बर 29, 2020) की सुबह दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पीड़िता की मौत के बाद से हाथरस मामले को लेकर काफी बहस और राजनीतिक उथल-पुथल देखी जा सकती हैं। हाथरस पुलिस ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘जबरन यौन क्रिया’ की अभी तक भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पुष्टि नहीं हो पाई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला घोंटने से मौत को मौत का कारण बताया गया था।