असम के वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि वो असम को दूसरा जम्मू-कश्मीर नहीं बनने देंगे। नागरिकता (संविधान संशोधन) बिल 2016 पर सरमा का कहना है कि राज्य को तभी बचाया जा सकता है जब इस बिल को लागू किया जाए। साथ ही असम अकॉर्ड के क्लॉज़ 6 को लागू करने के साथ छह समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा भी दिया जाए।
हिमंत का कहना है कि यदि नागरिक बिल को पास नहीं किया गया तो आने वाले पाँच सालों में असम में हिन्दू अल्पसंख्यकों की सूची में आ जाएँगे।
सरमा ने इस बात की भी घोषणा की है कि 2021 के बाद वो राजनीति में अधिक सक्रिय नहीं रहेंगे। उन्होंने नागरिकता (संविधान संशोधन) बिल 2016 को उच्च सदन में पास कराने के अपने संघर्ष को ‘पानीपत की अंतिम लड़ाई’ कहा है। सरमा ने अपनी बातचीत में कहा कि जो उन्हें धर्मनिरपेक्षता का पाठ सिखा रहे हैं वही लोग आज जम्मू-कश्मीर में खून-खराबे के लिए ज़िम्मेदार हैं।
सरमा का कहना है कि उन्हें धर्मनिरपेक्ष या सांप्रदायिक होने पर प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है। लोग हिंदुओं को हिंदुओं के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं। हिंदू बांग्लादेशियों का विरोध करने वालों को पता नहीं है कि वे असम के 14 जिलों में निर्णय लेने की शक्ति खो चुके हैं। पहले ही उनकी 30 सीटें जा चुकी हैं, अगर विधेयक आता है तो अभी भी कम से कम 17 विधानसभा सीटें बचा सकते हैं।
बता दें हाल ही में गुहावटी में नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (NESO) के सदस्यों ने रैली निकाली थी जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार को भी इस विधेयक को लागू करने के ख़िलाफ़ चेतावनी दी थी जिसके बाद ही हिमंत का यह बयान आया है। रैली के दौरान छात्रों ने पीएम मोदी और असम मुख्यमंत्री सीएम सर्वानंद सोनोवाल को अवैध आप्रवासियों का रक्षक और संरक्षक बताया।
सरमा ने कहा कि 1971 की गणना के अनुसार असम की जनसंख्या में 71 प्रतिशत हिंदू थे जो कि 2011 आते-आते 61 प्रतिशत हो गए। अगर 2021 तक बांग्लादेश से आए 8 लाख हिंदू बंगालियों को असम से बाहर भेज दिया गया तो ये आँकड़े गिरकर 51 से 52 प्रतिशत ही रह जाएँगे जिसके कारण आने वाले समय में राज्य का मुख्यमंत्री बदरुद्दीन अजमल या फिर सिराजुद्दीन अजमल होगा।
इस मामले का विरोध करने वालों पर सरमा ने कहा: “ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU) के सदस्य बिल का विरोध करने के लिए सोशल मीडिया पर संदेश भेज रहे हैं। हालांकि ये लोग खुद असम में आर्थिक शरणार्थी हैं, वे इस बारे में क्यों बात कर रहे हैं कि नागरिकता किसे मिलनी चाहिए?” सरमा ने यह भी कहा कि उन्हें अपने मोबाइल पर धमकी भरे संदेश मिल रहे हैं।
बता दें कि जिस विधेयक पर इतनी खींचतान की जा रही है वो लोकसभा में पहले ही पास हो चुका है और अब राज्यसभा में भी इसके पारित करने पर चर्चा की जानी है। अगर ये विधेयक लागू हो जाता है तो 12 की जगह पिछले 6 साल से देश में रह रहे बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता दे दी जाएगी।