भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने में लगा हिजबुल मुजाहिदीन का सरगना मोहम्मद यूसुफ शाह उर्फ सैयद सलाहुद्दीन फ़िलहाल पाकिस्तान में छिप कर बैठा हुआ है। वहीं सरकारी नौकरी में उसके दोनों बेटे जम्मू कश्मीर में हवाला के जरिए वित्त जुटा कर गिरोह का भरण-पोषण करने में लगे थे। बिना हथियार उठाए उन्होंने कई कश्मीरी युवकों से बंदूक उठवा दिया और आतंकी हमलों के लिए वित्त भी मुहैया कराया।
ये दोनों लगातार अपने अब्बा और आतंकी संगठन के एजेंडों को आगे बढ़ाने में लगे थे। सलाहुद्दीन के दोनों बेटों सैयद अहमद शकील व शाहिद यूसुफ उन 11 कर्मचारियों में शामिल हैं, जिन्हें राष्ट्रद्रोह का आरोप लगा कर नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है। सलाउद्दीन NIA की मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में शामिल तो है ही, अमेरिका ने भी उसे ग्लोबल आतंकी घोषित कर रखा है। वो 1990 में ही पाकिस्तान भागा था।
ऐसा नहीं है कि सुरक्षा व ख़ुफ़िया एजेंसियों में उसके दोनों बेटों की हरकतों की जानकारी नहीं थी, बल्कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटने से पहले जिन राजनीतिक दलों का राज था, उनका उन्हें संरक्षण प्राप्त था। उसके खिलाफ सबूत भी थे, लेकिन कार्रवाई के लिए भेजी गई फाइलों को दबाया जाता रहा। सैयद अहमद शकील शेरे कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान (सौरा) में 1990 के दौरान चोर दरवाजे से बतौर लैब टेक्नीशियन तैनात किया गया था।
उसने 6 आतंकियों का वित्तीय पोषण किया। वहीं सलाहुद्दीन का दूसरा बेटा शाहिद यूसुफ भी चोर दरवाजे से ही वर्ष 2007 में कृषि विभाग में नियुक्त हुआ था। उसने 9 बार हवाला से रुपए जुटाए। शाहिद युसूफ अपने अब्बा का गलत नाम लिख कर दुबई भी गया था। वो उत्तर कश्मीर के आतंकी नजीर अहमद कुरैशी से भी दुबई मिला था। टेरर फंडिंग मामले में जाँच के बाद सुरक्षा एजेंसियों को पता चला।
BREAKING: Hizb Chief Salahuddin’s sons Syed Ahmad Shakeel and Shahid Yusuf, whose services were terminated by J&K govt, allegedly facilitated terror funding on six and nine occasions respectively while in govt employment, say sources in Central investigation agencies. https://t.co/EcpU9HmkCh
— Bharti Jain (@bhartijainTOI) July 13, 2021
शाहिद को एजाज अहमद बट्ट से भी रुपए मिल रहे थे। एजाज बट्ट उसके अब्बा सलाहुद्दीन का करीबी है। शाहिद उससे फंड्स प्राप्त करने के लिए विभिन्न पहचान पत्रों का इस्तेमाल कर रहा था। एजाज भी 1990 में पाकिस्तान भागा था और वहीं से आतंकियों की फंडिंग करता है। इन दोनों पर सरकारी सेवा में रहते राष्ट्र के खिलाफ युद्ध की साजिश का आरोप है। चूँकि ये सरकारी कर्मचारी थे, ये आसानी से ये सब कर रहे थे।
इन दोनों को बरखास्त किए जाने के विरोध में जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी बयान दिया है। उनका कहना है कि पिता के गुनाहों की सज़ा बेटों को कैसे दी जा सकती है, जब कोई जाँच ही नहीं हुई। सच्चाई ये है कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल से लेकर NIA तक की जाँच में उनकी करतूतें पता चल गई थीं। साथ ही उन्होंने 11 कर्मचारियों को निकाले जाने के फैसले को भी ‘आपराधिक’ करार दिया। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति को बंधक बनाया जा सकता है, पर विचारों को नहीं।