हाल ही में, ऑपइंडिया ने रणजीत सागर बाँध में सरकारी भूमि पर अवैध रूप से बनाए गए दरगाह और दरगाह के माध्यम से हजारों वर्ग फुट जगह पर किए गए कब्जे के बारे में एक रिपोर्ट दी थी। 2022 में, एक सरकारी सर्वेक्षण द्वारा इसे अवैध घोषित कर दिया गया था, इसे हटाने का आदेश देने के बाद भी आज तक कब्जा जारी रहा। 13 मई, 2024 को अवैध कब्जा हटाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ता युवराज सोलंकी की मदद से ऑपइंडिया रणजीत सागर बाँध पहुँचा।
रणजीत सागर बाँध में किए गए कब्जे के वर्तमान समय की परिस्थितियों का जायजा ऑपइंडिया द्वारा लिया गया। ऑपइंडिया ने ग्राउंड जीरो से जो जानकारी जुटाई वह वाकई चौंकाने वाली थी। यह कब्जा हजारों वर्ग फुट सरकारी जमीन पर दरगाह बनवाकर, कब्जेको घेरने के लिए की गई बाड़ लगाकर, अतिरिक्त निर्माण के लिए संसाधन, राजनेताओं के अनुदान से आवंटित बेंच, जहां देखे वहा, इत्र की बोतलें और मजहबी साहित्य … दृश्य वास्तव में चौंकाने वाले थे।
बाहर मुख्य सड़क पर हमें सफेद रंग का एक बोर्ड मिला जिस पर हरे अक्षरों में 786-92 और, ‘हजरत पंजू पीर दरगाह शरीफ’ लिखा था। बोर्ड के ऊपरी दो कोनों में चाँद-तारे के निशान के निशान बने हुए थे। बोर्ड के ऊपर दो चौकोर झंडे, एक हरा और एक लाल, जिस पर इस्लामी चिह्न मुद्रित थे। सीमेंट के पक्के फाउंडेशन में यह बोर्ड मज़बूती से लगाया गया था।
बांध की भूमि के एक बड़े टुकड़े को तारों से घेर कर कब्जाया गया
जब ऑपइंडिया युवराज सोलंकी की मदद से रणजीत सागर बाँध पहुँचा। जैसे ही हम बाँध में पहुंचे, हमें कँटीले तारों के साथ बाड़ लगा कर सुरक्षित की गई जगह देखने को मिली। दरगाह के चारों ओर काँटेदार तार की बाड़ लगाई गई है ताकि कब्जे वाले स्थान को घेरकर सुरक्षित किया जा सके। रणजीत सागर बांध की हजारों वर्ग फीट जगह को इस बाड़ से घेर लिया गया है। आमतौर पर, इस प्रकार की बाड़ लोगों द्वारा अपनी भूमि/स्थान की रक्षा के लिए बनवाई जाती है। रणजीत सागर बांध की सरकारी जमीन को इसी तरह कँटीले तार लगाकर घेरा गया है।
लम्बी-लम्बी मजारें और बहुत बड़ा अतिक्रमण
युवराज सोलंकी के माध्यम से आगे बढ़ते हुए, हमने पाया कि 2022 में किए गए सर्वेक्षण के बाद दिए गए आदेशों के बाद भी अतिक्रमण जारी रहा है। निर्माण वैसा ही है जैसा पहले था। सबसे आगे सीमेंट का एक पक्का चबूतरा बनाया गया है, जिस पर 31 फीट तक लंबी 3 मजार हैं। इस चबूतरें के किनारे पर कॉलम बीम लगाया गया है और ऊपर से पाइप लगाए गए हैं। इस ढाँचे पर छत बनाई गई है। इसके बगल में ईंटों और सीमेंट का एक छोटा आकर बनाया गया है, जिसमें मिट्टी के दीये रखे गए हैं। यहाँ हमें हरे रंग के कागज वाली चॉकलेट का एक पैकेट भी मिला, शायद कोई व्यक्ति कुछ समय पहले इस जगह पर आकर गया था।
इस जगह से थोड़ी ही दुरी पर ऐसी ही एक और संरचना बनाई है। वहाँ पक्के चबूतरें पर 31 फीट लंबी दो मजार देखी जा सकती हैं। यहाँ भी खंभे लगाए गए हैं। यहाँ बस उपर छत लगाना ही बाकी है। इस संरचना के बगल में एक और 6 फुट की मजार भी दिखाई देती है। गौरतलब है कि इस्लाम में बनी मजार (एक प्रकार की कब्र) पाँच से छह फीट तक लंबी होती है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि यहाँ बनी 5 मजार तकरीबन 31 फीट तक लंबी हैं। खास बात यह है कि इन सभी मजारों पर एक ही लंबाई की चादरें लगाई गई हैं।
आमतौर पर पाँच-छह फीट लंबी मजारों पर उतनी ही लंबाई की चादर लगाई जाती है, लेकिन यहाँ चढ़ी हुई वाली चादरें खास लगती हैं। मजार पर पेश की गई चादरों की बात करें तो वे सभी चादरें नई और साफ हैं। क्योंकि अगर बांध के पानी के उतरने के बाद भी वही चादरें होतीं, तो वह गंदगी और कीचड़ से सनी होती। इसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हाल ही में किसी ने यहाँ आकर सफाई की है और नई चादर चढ़ाई है।
जगह-जगह इत्र की शीशियाँ, मजहबी साहित्य और कूड़ा
ऑपइंडिया ने जब आसपास की जगह की जाँच की तो हमें यहाँ अनगिनत इत्र की खाली और भरी हुई शीशियाँ मिलीं। कुछ शीशियाँ गर्मी से सूख चुकी जमीन पर पड़ी थीं और कुछ बाँध के पानी में पड़ी थीं। कुछ खाली और कुछ भरी इत्र की बोतलें ज्यादातर काँच की थीं और कुछ प्लास्टिक की। हमें इन शीशियों को पैक करने वाले रैपर भी पड़े मिले। पूरे इलाके में पानी की नमी और इत्र की तेज गंध भी आ रही थी।
इत्र की बोतलें ही नहीं, हमें यहाँ कुछ इस्लामिक साहित्य भी देखने को मिले। हमें अरबी, कुछ हिंदी और गुजराती में लिखे कागज़ मिले। इन्हीं में से एक साहित्य पर लिखा था, “कायम नमाज़ करो, नमाज़ मोमिन की मेअराज़ है”। एक अन्य कागज़ पर एक और हजरत शालू पीर दरगाह शरीफ लिखा हुआ था। शेख उस्मानशाह जफरशाह मुल्तानी के नाम वाले कागज पर जामनगर में कलावाड रोड का पता लिखा हुआ था।
इतना ही नहीं इसके अलावा ऑपइंडिया को इस जगह पर कई बड़ी चादरों से बँधा सामान भी मिला। यह जानना असंभव था कि इसके अंदर क्या बँधा हुआ था। लेकिन हो सकता है कि यहाँ दी जाने वाली चादरें और पुरानी चढ़ाई सब इसी में रखी हों। इसके साथ ही हमने यहाँ सीमेंट के छोटे-बड़े चबूतरे भी देखे। इस जगह पर हर जगह प्लास्टिक का कचरा भी देखने को मिला।
कॉन्ग्रेसी नेता के नाम वाले बेंच और दरगाह बनाने का सामान
हमें अतिक्रमण की गई भूमि के एक कोने में कुछ मलबा भी मिला। जब हमने वहाँ जाकर जाँच की तो पता चला कि ये वही खंभे हैं जिनका इस्तेमाल दरगाह का शेड बनाने के लिए किया गया था। इस दौरान युवराज ने हमें बताया कि सामान बगल वाली अधूरी दरगाह का है। इसे दरगाह की छत और अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने के उद्देश्य से यहां लाया गया है।
इसी मलबे के बीच हमने कुछ बैठने की बेंच देखी। आमतौर पर इस प्रकार के बेंचों को सांसदों से लेकर नगरसेवकों तक अपना बजट आवंटित कर सोसायटी, उद्यानों और सार्वजनिक स्थानों पर नागरिकों के बैठने के लिए लगाए जाते है। इन बेंच पर लिखे अक्षर कुछ समय तक पानी के अंदर रहने के कारणों से कीचड़ के नीचे दब गए थे। कुछ सफाई करते ही, हमने इन बेंचो पर लिखा पाया “माननीय सांसद श्री विक्रमभाई माडम, जामनगर – वर्ष 2011-12 के अनुदान से, स्वच्छता बनाए रखें”।
गौरतलब है कि विक्रम माडम कॉन्ग्रेस के जानेमाने नेता हैं। विक्रम माडम भानवड़ और खंभालिया से विधायक रह चुके हैं। वह 2004 और 2009 में कांग्रेस के सांसद भी रह चुके हैं। 2014 में विक्रम मडाम बीजेपी नेता पूनम माडम से हार गए थे।
सिर्फ जामनगर के लोगों के लिए ही नहीं, वाइल्ड लाइफ के लिये भी ये बाँध महत्वपूर्ण
गौरतलब है कि जामनगर की भौगोलिक स्थिति वन्यजीवों की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। समुद्री तट से सटे इस जिले में हर साल कई तरह के विदेशी पक्षी लम्बी यात्रा कर के आते है। खिजड़िया पक्षी अभयारण्य रणजीत सागर बांध से मुश्किल से 20/22 किमी दूर होगा। तब स्वाभाविक है की आने वाले देशी-विदेशी पक्षी यह जलाशय में भी आएँगे। इस अवैध दरगाह से बांध का पानी कम होकर महज 100 मीटर दूर चला गया है।
जब ऑपइंडिया यहाँ निरीक्षण कर रहा था, हमारी नज़र फ्लेमिंगो पक्षियों के झुंड पर पड़ी जो बाँध में उतरे थे। आमतौर पर सर्दियों के मौसम में यहाँ आने वाले इन पक्षियों की मौजूदगी हमें उतनी ही हैरान करने वाली थी जितनी आप इसे पढ़ कर महसूस कर रहे हैं। और हमने दूर से ही इन खूबसूरत पक्षियों को मोबाइल फोन के कैमरे में कैद करने का प्रयत्न किया।
इस दौरान युवराज ने हमें बताया कि यह जगह सिर्फ पक्षियों के लिए ही नहीं बल्कि मछलियों और मगरमच्छों के लिए भी महत्वपूर्ण है। बकौल युवराज, मेटिंग सीजन के दौरान मगरमच्छ यहाँ मेटिंग प्रक्रिया के लिए आते हैं। यह सब सुनकर हम सोच में पड़ गए कि जिस तरह से हमें यहाँ बाँध के पानी में इत्र की बोतलें, प्लास्टिक कचरा और अन्य हानिकारक चीजें मिलती हैं, उससे यहाँ के वन्यजीवों को किस हद तक नुकसान हो सकता है?
हर साल पानी में डूब जाने वाली इस जगह को फिर से बनाने का खर्च कौन देता होता होगा?
हर चीज की गहन जाँच के बाद, यहाँ एक बात विचार करने योग्य लगी। यह जगह साल के लगभग 6 महीने पानी में डूबी रहती है। बाँध पहले बारिश से और फिर नर्मदा के नीर से भरा रहता है। बाँध में पानी भरा होने पर यहाँ आना मुश्किल है। लेकिन जब पानी कम हो जाता है, तो जगह मलवे और कीचड़ से ढँक जाती है। यहाँ देखभाल करने आते रहते कासमभाई ने ऑपइंडिया को बताया था कि वो यहां सिर्फ धूप करने मौर माथा टेकने आते हैं, उनकी इस जगह पर खर्च करने की क्षमता नहीं है।
अगर कोई और यहाँ नहीं आता है तो हर साल इस जगह की देखभाल कौन करता है? इसके निर्माण और रखरखाव की लागत कौन प्रदान करता है? यहाँ जिस तरह का सामान पड़ा है, उसे लाने के लिए पैसे किसने निकाले होंगे? प्रशासन को इस दिशा में भी जाँच करानी चाहिए कि सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बनी इस दरगाह की फंडिंग आखिर कहाँ से हुई।