भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अधिकारियों को कतर में दी गई मौत की सजा पर भारत सरकार ने वहाँ की कोर्ट में अपील की है। इसकी जानकारी भारत के विदेश मंत्रालय ने दी है। दरअसल, अक्टूबर में कतर की एक अदालत ने इन सभी को सजा सुनाई थी। ये सभी सितंबर 2022 में जासूसी के झूठे आरोप में गिरफ्तार किया था।
विदेश मंत्रालय ने गुरुवार (9 नवंबर 2023) को कहा, “फैसला गोपनीय है। निर्णय देने वाली अदालत ने हमारी कानूनी टीम के साथ साझा किया गया। सभी कानूनी विकल्पों पर विचार करते हुए अपील दायर की गई है। हम कतर के अधिकारियों के संपर्क में हैं। हमें 7 नवंबर को जेल में बंद भारतीयों के साथ एक और कांसुलर एक्सेस भी मिला।”
विदेश मंत्रालय ने आगे कहा, “हम सभी भारतीयों को कानूनी और कांसुलर समर्थन देना जारी रखेंगे और हम सभी से मामले की संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए अटकलों में शामिल नहीं होने का आग्रह करते हैं।” मंत्रालय ने कहा कि वह कतर में बंद भारतीय अधिकारियों के परिवार के सदस्यों के साथ भी संपर्क में है।
कतर की क्यों कैद में हैं पूर्व अधिकारी
नौसेना के ये सभी पूर्व अधिकारी कतर की राजधानी दोहा की एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे थे। ये कंपनी टेक्नोलॉजी और कंसल्टेंसी का काम करती है। 30 अगस्त 2022 को कतर की खुफिया एजेंसियों ने इन पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाते हुए इन्हें हिरासत में ले लिया था।
शुरुआत में इन पूर्व अधिकारियों पर व्यवसायिक प्रतिद्वंद्विता और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप बताया गया, लेकिन बाद में सामने आया कि इन्हें जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। मिडिल-ईस्ट की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ये सभी पूर्व अधिकारियों को इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में हिरासत में लिया है। हालाँकि, कतर की तरफ से इस बारे में सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है।
भारतीय नौसेना से सेवानिवृत्त ये सभी अधिकारी पिछले 5 सालों से दाहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजी एंड कंसल्टेंसी नाम की एक कंपनी में काम कर रहे थे। यह कंपनी मिडिल-ईस्ट में स्थित एक देश के मिलिट्री अधिकारी की बताई जाती है। यह कंपनी कतर की नौसेना को ट्रेनिंग और कंसल्टेंसी देने का काम करती है।
इन अधिकारियों के साथ ओमान के एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी स्क्वाड्रन लीडर खमीस अल अजमी को भी हिरासत में लिया गया था। हालाँकि, खमीस अल अजमी को 18 नवंबर 2022 को ही रिहा कर दिया गया, बाकी सभी भारतीय अधिकारियों को अभी भी हिरासत में रखा गया है।
भारतीय अधिकारियों पर आरोप
दरअसल, भारतीय नौैसेना के पूर्व अधिकारी कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और नाविक रागेश कतर की एक निजी फर्म दाहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिए काम करते थे।
डिफेंस सर्विस प्रोवाइडर ऑर्गनाइजेशन दाहरा का स्वामित्व रॉयल ओमानी एयरफोर्स के एक रिटायर्ड स्क्वाड्रन लीडर खामिस अल-अजमी के पास है। यह प्राइवेट फर्म कतर के सशस्त्र बलों को प्रशिक्षण और संबंधित सेवाएँ उपलब्ध कराती थी। अजमी को भी भारतीयों के साथ 30 अगस्त 2022 को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्हें फीफा वर्ल्ड कप के पहले नवंबर 2022 में रिहा कर दिया गया।
जानकारी के मुताबिक इन भारतीयों को इजरायल के लिए एक सबमरीन प्रोग्राम की जासूसी करने का दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, कतर ने साल 2020 में इटली में बनी हाईटेक सबमरीन खरीदने के लिए एक समझौता किया था। ट्राइस्टे स्थित जहाज बनाने वाली कंपनी ‘फिनकेंटियरी एसपीए’ के साथ यह समझौता हुआ था।
कतर ने समझौते के तहत चार कॉर्वेट (जहाज़ का एक प्रकार) और एक हेलीकॉप्टर का ऑर्डर भी दिया था। इस प्रोजेक्ट के तहत कंपनी को कतर में नौसेना का एक बेस बनाना था। इसके साथ ही नौसैनिक बेड़े की देखरेख भी करनी थी। इसके लिए कतर ने जिस दाहरा कंपनी को यह काम दिया, उसमें ये सभी भारतीय काम कर रहे थे।
कतर के अधिकारियों का आरोप है कि ये 8 भारतीय अधिकारी इस प्रोग्राम की गोपनीय जानकारी इज़रायल से साझा कर रहे थे। कतर की इंटेलिजेंस एजेंसी ‘कतर स्टेट सिक्योरिटी’ ने दावा किया था कि उसने भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारियों के उस सिस्टम को इंटरसेप्ट कर लिया था, जिससे वो कथित रूप से जासूसी कर रहे थे। हालाँकि, कतर ने भारत के साथ कोई भी सबूत साझा नहीं किया है।