भारतीय इतिहास से छेड़छाड़ सर्वविदित हैं। वामपंथियों ने बड़ी सफाई से इस्लामिक आक्रांताओं और मुस्लिम शासकों के खूनी इतिहास को छिपा कर उनका महिमामंडन किया। हिंदू धर्म को लेकर उनका दुराग्रह भी साफ है। यह सब किस तरह अंजाम दिया गया इस पर IPS अधिकारी एम नागेश्वर राव ने प्रकाश डाला है।
उन्होंने शनिवार (जुलाई 25, 2020) को इस संबंध में ट्वीट किए। साथ ही बताया कि कैसे इस खेल में देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद शामिल थे। दिलचस्प यह है कि अबुल कलाम को उदारवादी के तौर पर पेश किया जाता है।
राव ने बताया है कि भारत के इतिहास को बड़ी सफाई से ‘विकृत’ किया गया। ऐसा करने वाले को शिक्षा मंत्री का नाम दिया गया। शिक्षा मंत्री रहते हुए मुस्लिम नेता 1947-1977 के बीच 20 साल भारतीय मन-मस्तिष्क के प्रभारी बने बैठे थे।
एम नागेश्वर राव ने ट्वीट किया, “मौलाना अबुल कलाम आजाद के 11 साल (1947-58) के बाद, हुमायूँ कबीर, एमसी छागला और फकरुद्दीन अली अहमद- 4 साल (1963-67), फिर नुरुल हसन- 5 साल (1972-77)। शेष 10 साल अन्य वामपंथी जैसे वीकेआरवी राव… ने ये जिम्मेदारी सँभाली।” नागेश्वर राव ने ये लाइनें चार स्लाइड की एक सीरीज से ली, जिसे उन्होंने एक ट्वीट में पोस्ट किया था।
Story of Project Abrahamisation of Hindu Civilization
— M. Nageswara Rao IPS (@MNageswarRaoIPS) July 25, 2020
1.Deny Hindus their knowledge
2.Vilify Hinduism as collection of superstitions
3.Abrahamise Education
4.Abrahamise Media & Entertainment
5.Shame Hindus about their identity
6.Bereft of glue of Hinduism Hindu society dies pic.twitter.com/VM4pLcKKXN
पोस्ट में राव ने अपने लेख को “Story of Project Abrahmisation of Hindu Civilization” नाम दिया है। इसमें नागेश्वर राव ने छह बिंदुओं को सूचीबद्ध किया है,
1: हिंदुओं को उनके ज्ञान से वंचित करना,
2. हिंदू धर्म को अंधविश्वासों के संग्रह के रूप में सत्यापित करना,
3. शिक्षा पर इस्लाम और ईसाइयत का प्रभुत्व (अब्राहमीकरण)
4. मीडिया और मनोरंजन का अब्राहमीकरण
5. अपनी पहचान हिंदू पहचान को लेकर शर्मिंदगी पैदा करना
6. हिंदू धर्म और समाज की मृत्यु हो जाती है
नागेश्वर राव ने रविवार को एक और पोस्ट किया। इसमें उन्होंने लिखा, “क्या हम अपने राष्ट्रीय आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते के लिए असल में प्रतिबद्ध हैं। क्या सत्य अकेले विजय हो सकता है? ज्यादातर नहीं। इसके विपरीत, हम राजनीतिक शुद्धता के नाम पर झूठ बताते हैं, जिसे हम अपनी शिक्षा में ही सीखते है। इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है कि हम पाखंडियों के राष्ट्र हैं, न कि विजेताओं के। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि एक राष्ट्र के तौर पर हम कपटी हैं।”
उन्होंने अपने पोस्ट में दावा किया कि दिल्ली में सड़कों और सार्वजनिक स्थानों का नाम “आक्रमणकारियों” के नाम पर रखा गया है। इसमें दिल्ली के मूल निर्माताओं कृष्ण/पांडवों के बारे में कोई उल्लेख नहीं है।
राव ने पोस्ट में आरोप लगाया कि इस प्रणाली ने वामपंथी शिक्षाविदों को संरक्षण दिया और हिंदुत्ववादी राष्ट्रवादी विद्वानों को दरकिनार कर दिया। आगे दावा किया गया कि 1980 के दशक में, “रामजन्मभूमि द्वार” का उद्घाटन और रामायण और लव कुश जैसे टीवी धारावाहिकों के प्रसारण से हिंदू भावना पुन: जागृत हुई।
वैसे देखा जाए तो वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भारत के वास्तविक इतिहास के साथ की गई छेड़छाड़ गहन चिंता का विषय है। कॉन्ग्रेस नीत केंद्र सरकार के सतत संरक्षण में वामपंथी इतिहासकारों ने ऐतिहासिक साक्ष्यों व घटनाओं में भ्रामक जानकारियाँ डालने का काम किया।
कॉन्ग्रेस सरकार ने देश के स्वाधीन होने के बाद से ही सेकुलरिज्म के नाम पर भारत के स्वर्णिम इतिहास के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी थी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं अपनी पुस्तक ‘भारत की खोज’ में महाराणा प्रताप की अपेक्षा अकबर को महान सिद्ध करने का प्रयास किया था।
स्वाधीनता संग्राम के इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर सुनियोजित ढंग से राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए सर्वस्व समर्पित करने वाले क्रांतिकारियों की घोर उपेक्षा ही नहीं की गई, अपितु उन्हें आतंकवादी और सिरफिरा सिद्ध करने के प्रयास किए गए।
इसी विकृति के कारण नई पीढ़ी बंगाल के क्रूर शासक सिराजुद्दौला से अपरिचित हैं। कम्युनिस्ट इतिहासकार उसे अंग्रेजों से लड़ने वाले महान सेनानी के रूप में प्रस्तुत करते हैं। कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को हर दृष्टि से विकृत करने का प्रयास किया है। औरंगजेब ने हिंदुओं और सिख गुरुओं पर जैसी बर्बरता ढाई, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है। किंतु वामपंथी इतिहासकार औरंगजेब के कुछेक मंदिरों को दान देने का यशगान कर उसके जिहादी चरित्र पर पर्दा डाले रखते हैं।
मुस्लिम आक्रांताओं ने यहाँ के बहुसंख्यकों को मौत या इस्लाम में से एक को स्वीकारने का विकल्प दिया, इसे वामपंथी इतिहासकार भूले से भी उदघाटित नहीं करते। मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग का कम्युनिस्ट खेमा उस मानसिकता के साथ लगातार नरमी बरतता रहा, जिसने हिंदू धर्म को नीचा दिखाने के लिए उनके मंदिरों का विध्वंस किया, उनकी आस्था से जुड़े स्थलों को रौंद कर वहाँ मस्जिदों का निर्माण कराया। स्वतंत्रता के बाद से अब तक वामपंथी इतिहासकारों ने इस परंपरा को आगे ही बढ़ाया है।